एक विद्वान साथी ने मेरी एक पोस्ट पर बहुत महत्वपूर्ण सवाल उठाया है:-
"कि आप पंडित हैं या वामपंथी?"
मेरा निवेदन है कि मैं जन्म से और कर्म से पंडित ही हूँ,इस पर मेरा कोई कसूर नही! इसे विशुद्ध वंशानुगत परिलब्धि कहा जा सकता है!
किंतु यदि मुझे भारतीय आध्यात्मिक दर्शन के साथ साथ यदि पश्चिम के भौतिकवादी साम्यवादी दर्शन का भी ज्ञान है तो क्या यह मेरा अपराध है?
चूंकि मैने गरीबी मुफलिशी देखी है और मार्क्सवाद के सिद्धांतों पर मुझे पक्का यकीन है कि कमजोर वर्ग संगठित होकर अपने हितों की रक्षा कर सकता है! इसलिये मैं मजदूरों किसानों के लिये सतत संघर्ष करने वाले *वामपंथ* के साथ हो लिया,क्या यह मेरा गुनाह है?
हम विगत 45 साल तक मजदूर किसान के पक्ष में खड़े होकर शोषण की ताकतों से लड़ते आ रहे हैं! किंतु भारत में गरीब और ज्यादा गरीब हुआ है और अमीर और ज्यादा अमीर! आजादी के बाद जनाधार के मामले में भारत में कांग्रेस नंबर वन और कम्युनिस्ट नंबर दो पर थे! 50 साल लगातार संघर्ष करने के बाद परिणाम यह रहा कि सिर्फ केरल में सरकार बची है! किंतु भारत की संसद में आधा दर्जन वामपंथी सांसद भी नही हैं!
वैसे तो हम हर जायज संघर्ष में मजूरों और किसानों के साथ हैं,किंतु 68 साल की उम्र और क्रानिक बीमारी के चलते अपनी क्षमता के अनुसार ही सहयोग कर सकता हूँ!हमें यह भी याद रखना चाहिये कि मार्क्सवादी दर्शन किसी की गुलामी नहीं सिखाता ! हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि हम सार्थक सहयोगी तो बने,किंतु कट्टरपंथी साम्प्रदायिक धर्मांधों की तरह हम भी किसी विचारधारा या राजनैतिक पार्टीके अंधभक्त न बन जाएं! वरना सुसभ्य वामपंथियों और असभ्य नितांत दकियानूसी अंधभक्तों में फर्क क्या रह जाएगा?
वेशक मार्क्सवाद स्वतंत्रता समानता बंधुता का अलमवरदार है,किंतु जो लोग शोषित पीड़ित नही हैं, किंतु मानवता और नैतिकता के कारण वामपंथ के साथ हैं,तो आप उनके वंशानुगत मूल्यों पर सवाल नही उठा सकते !
उदाहरण के लिये वामपंथ से मेरा कोई स्वार्थ सिद्ध नही होने वाला,किंतु फिर भी हम उसके सहयोगी हैं! हम पर किसी का कोई ऐहसान नही है!वामपंथ का भी नही और ईश्वर का भी नही! ईश्वर का यों नही कि बिना कर्म किये वह किसी को कुछ दे ही नही सकता! वामपंथ का यों नही कि देश में अब तक न तो पूंजीवाद कमजोर हुआ और न साम्यवाद की संभावनाएं द्रष्टिगोचरित हुईं!
सर्वहारा क्रांति तो अब इतिहास की वस्तु रह गई है! ऐंसे हालात में कुछ मंदमति जड़मति स्वनामधन्य किताबी मार्क्सवादी केवल धर्म जाति मजहब के घूरे पर फूँक मारते रहते हैं!भारतीय आध्यात्मिक दर्शन और सभी धर्म मजहब की सच्चाईयों को ठीक से जाने बिना केवल थोथा मखौल उड़ाकर, जनता के बीच वामपंथ और मार्क्सवादी दर्शन को बदनाम करते रहते हैं!
दरसल मार्क्सवाद एक सर्वोत्क्रष्ट दर्शन है, किंतु भारत की जनता को वह समझ में नही आ पा रहा है! इसकी वजह हम वामपंथियों का भारतीय दर्शन के बारे में आधा अधूरा ज्ञान भी एक कारण है! यही कारण है कि बंगाल में 40 साल तक वामपंथ का प्रभुत्व रहा है ! किंतु आज वहाँ की विधान सभा में एक भी वामपंथी नही है! जो असली और ईमानदार वामपंथी बच रहे,वे इंसाफ की लड़ाई आज भी लड़ रहे हैं ! किंतु जो नकली थे वे सब त्रणमूल में ममता के पैर धोकर पी रहे हैं! विदेशी घुसपैठियों को वोट के लिये सहन कर रहे हैं! इन हालात में विचारशील और विवेकवान साम्यवादियों का कर्तव्य है कि अपनी आत्मालोचना करें और भारतीय दर्शन का सांगोपांग अध्यन करें!
श्रीराम तिवारी
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