कबीर पर सात दोहे
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मन तरकश,अनुभव धनुष,कथनों के कटु तीर!
कबिरा के परिहास में, चर्चा है गंभीर!!
सपने में कबिरा कहे,"खींचो नहीं लकीर"!
बंधन में रहते नहीं, सूफ़ी, संत, फ़क़ीर!!
जग में रहकर भी कभी,किया न जग से प्यार!
कबिरा को भाया नहीं, यह नश्वर संसार!!
कबिरा आकर चल दिए, सागर के उस पार!
युगों-युगों से आजतक, राह तके संसार!!
अखिल जगत में एकमत, हैं सारे कविराज!
कविता संत कबीर की, प्रासंगिक है आज !!
लगते थे सबको सदा, निर्धन और फ़क़ीर।
मिलते हैं जग में कहाँ, कबिरा तुल्य अमीर।
कबिरा केवल रूह है, कबिरा नहीं शरीर।
कहता है हर आदमी, मेरे संत कबीर।
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