बन बाग़ खेत मैढ़ चारों ओर हरियाली ,
उद्भिज गगन अमिय झलकावै है।
पिहुँ -पिहुँ बोले पापी पेड़ों पै पपीहरा ,
चिर-बिरहन मन उमंग जगावै है।।
जलधि मिलन चलीं इतराती सरिताएँ,
गजगामिनी मानों पिया घर जावै है।
झूम-झूम वर्षें आषढ़ा गहन घन,
झूलनों पै गोरी मेघ मल्हार गावै है।।"
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