जबसे केंद्र में मोदीजी की और यूपी में योगी जी की भाजपा सरकार सत्तामें आई है तबसे कुछ उत्साही सवर्ण बंधु कुछ ज्यादा ही जातिवादी हो रहे हैं,जो राणाप्रताप,महाराजा छत्रसाल पूरे भारत के थे,उनपर अब केवल क्षत्रियों का पेटैंट हो गया है! ब्राह्मण समाज ने भगवान परशुराम,महाबली पुष्यमित्र शुंग, आचार्य चाणक्य,पाणिनी,पतंजली और शंकराचार्यों पर कब्जा कर लिया है! जबकि ये सभी ब्राह्मण पूरे हिंदू समाज के और पूरी मानवता के शभचिंतक रहे हैं!
यदि ब्राह्मण ठाकुर वैश्य और अन्य हिंदु भाई एकजुट होकर अपने समाज की और देश की भलाई के लिये काम करते,तो यह उनका प्रशंसनीय दायित्व निर्वहन कहा जाता ! और सभी इसका समर्थन करते ! किंतु भारत की अपरिपक्व चुनावी राजनीति ने हिंदू समाज का बेड़ा गर्क कर दिया! सभी समाज और जाति वाले अपने हक की बात तो करते हैं, किंतु आपसी एकता के लिये अपने अहं को कोई नही छोड़ना चाहता!
पौराणिक कहानियों के आघार पर किसी देव अवतार,ऋषि मुनि,संत महात्मा या मर्यादित राजा की महिमा का बखान,उनके शौर्य और सद्गुणों का बखान गलत नही है! उनसे अपनी जातिय स्वाभिमान स्थापित करना भी गलत नही है! किंतु जातीय आरक्षणवादियों की भांति राजनीतिक लाभ के लिये ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य या अन्य हिंदू समाज अलग अलग झंडे गाड़ें,अपने पूर्वजों के नाम पर हिंदू समाज को बांटें ये पूँजीवादी राजनैतिक हथकंडा है !
जो भगवान परशुराम को क्षत्रिय संहारक बता रहे हैं,वे ब्राह्मण नही हो सकते! क्योंकि ब्राह्मण तो हिंदू कौम का ध्वजवाहक है,सच्चे ब्राह्मणका कर्तव़्य है कि सभी जाति वर्ण का सम्मान करे,खुद गीता के सिद्धांतों पर चले और सभी वर्णों और जातियों को गैर राजनीतिक मंच पर एकजुट कर हिंदू समाज और अपने मुल्क की हिफाजत करें!
प्रत्येक हिंदू को मालूम हो कि यदि उसे हिंदू होने पर गर्व है,तो उसे भगवान श्रीकृष्ण द्वारा परिभाषित चातुर्वर्ण व्यवस्था और वर्णाश्रम धर्म का पालन करना ही होगा! सिर्फ संघी हो जाना,भाजपा को वोट देना,जय श्रीराम, जय परशुराम का नारा लगाना- यह आदि शंकराचार्य या स्वामी विवेकानंद का संदेश नही है! सच्चा ब्राह्मण ,सच्चा क्षत्रिय,सच्चा वैश्य और सच्चा हिंदू वह है जो सभी जाति समाजों के बीच सौहाद्र और एकता कायम करे!
जो कहे कि सिर्फ हम श्रेष्ठ हिंदू हैं,बाकि सब बेकार हैं ! वह समाज द्रोही,हिंदू विरोधी और भारत विरोधी है! हिंदुओं में आपसी फूट डालने की हरकत हिंदू विरोधी मानसिकता है,कोई षडयंत्र भी हो सकता है!ब्राह्मण द्वारा क्षत्रिय को टारगेट करना,क्षत्रिय द्वारा किसी और को नीचा दिखाना या किसी जाति विशेष के लोगों द्वारा जरूरत से ज्यादा बड़बोलापन दिखाना,यह हिंदू समाज के हित में नही है !
इतिहास साक्षी है ब्राह्मणों की श्रेष्ठता को कभी किसी क्षत्रिय ने नही नकारा ! केवल सहस्त्रबाहू और परशुराम की आपसी शत्रुता को ब्राह्मण बनाम क्षत्रिय सिद्ध किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है! भगवान परशुराम ने केवल कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन और उसके सामंतों को मारा था! परशुराम जी ने तो शांतनु पुत्र भीष्म जैसे हजारों क्षत्रियों को शस्त्र विद्या सिखाई थी! वे क्षत्रिय विरोधी नही ,दुष्टों के विरोधी थे!उन्होंने किसी ब्राह्मणको नही बल्कि यदुवंशी क्षत्रिय भगवान श्रीक्रष्ण को सुदर्शन चक्र दिया! परशुरामजी को क्षत्रिय विरोधी या क्षत्रियों का हत्यारा साबित करना गलत है!दरसल वे तो जनता के महानायक थे ! वे उस सामंतयुग के क्रांतिकारी थे,उन्होंने जिन जिन को मारा वे सब पापी थे!
महापंडित ब्राह्मण रावण ने क्षत्राणी सीता का हरण किया तो अयोध्या के निर्वासित राजकुमार श्रीराम ने उसे मार डाला ! अब कोई कहे की राम ने ब्राह्मण को मारा,यह गलत है! उन्होने किसी निर्दोष ब्राह्मण को नही मारा,बल्कि पराई नारि का अपहरण करने वाले बदमास़ राक्षस का बध किया!
उसी तरह महर्षि जमदग्नि के पुत्र भगवान परशुराम ने अपनी माता रेणुका का हरण करने वाले दुष्ट सहस्त्रबाहु को मार डाला! बदला लेने का अभिप्राय क्षत्रिय संहार नही बल्कि यह एक आततायी दुष्ट का संहार कहा जाना चाहिये!
श्रीराम तिवारी
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