मौसम नहीं बदलते कभी इंसानी फितरत से ,
जब रवि उदित होता तब हो जाती भोर है।
अगम को सुगम पथ बनाता कोई भगीरथ,
हिमालय से उतरती गंगा और तिरता कोई और है।
संत्रास भोगते हैं क्रांतिवीर संघर्षों के सतत,
किंतु आजादी के फल चखती पीढ़ी कोई और है।
बिजली चमकती कहीं बादल गरजता कहीं और,
दोषी कोई और,गाज गिरती जिसपर वो कोई और है
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