जैसे की रेलगाड़ी में हिन्दू,मुस्लिम ईसाई, पारसी,सिख और जैन सभी एक साथ यात्रा करते हैं!एक साथ अपने गंतव्य पर पहुँचते हैं!और दुर्घटना होने पर एक साथ मरते भी हैं। जैसे कुदरत फर्क नहीं करती उसी तरह सच्ची लोकतान्त्रिक व्यवस्था वाले राष्ट्र का नेतत्व भी जनता में फर्क नही करता!और लोकतान्त्रिक राष्ट्र के जनगण भी संविधान से ऊपर किसी को नहीं मानते। उनके लिए संविधान और राष्ट्र पहले है!धर्म मजहब और मंदिर मस्जिद बाद में आते हैं!यदि कोई सत्ता धारी नेता या मंत्री विपक्ष से घृणा करता है, चुनाव में धर्म -मजहब -जाति का दुरूपयोग करता है,सीबीआई-ईडी का दुरुपयोग करता है या अपने आप को देश तथा संविधान से ऊपर मानता है तो उसे सत्ता से बेदखल कर दिया जाना जरूरी है,किंतु जो जनहित के काम करे, जिसका इरादा नेक हो,उसे केजरीवाल के नेतत्व में 'आप' की तरह और ज्योति वसु के नेतत्व में सीपीएम की तरह दुबारा,तिबारा भारी बहुमत से चुना जाना चाहिये!
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