यदि आप अल्पज्ञ हैं,धर्मभीरु हैं,तो बेधड़क किसी धर्म मजहब के आस्थावान हो जाइये। यदि आप तन-मन-धन और बुद्धि से बलिष्ठ हैं,आपमें फ्रांसीसी क्रांति के मानवतावादी मूल्यों को ह्र्दयगम्य करने की कूबत है, तो आप बेधड़क सेक्युलर हो जाइये!अथवा वेदांत के ऋषि की तरह शिवोहम् का गगन भेदी महानाद कीजिये।
सुप्रसिद्ध लेखिका मार्निया रॉबिन्सन ने उक्त अवधारणा को कुछ दूसरी तरह से समझाया है। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'क्यूपिड्स पायजनस एरो' में यह वैज्ञानिक तरीके से समझाया है कि ''आप आस्तिक -नास्तिक कुछ भी न हों तो भी आपको कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन सुखी जीवन के लिए,खुशियाँ पाने के लिए हर मनुष्य जो कुछ भी करता है,उसमें सहज प्राकृतिक बोध एवं मानवीय संवेदनाओं का होना बहुत जरूरी है।
यह मनुष्य की वैचारिक क्षमता पर निर्भर करता है कि उसे मानवीय सम्वेदनाओं के संचरण का और मानवीय सुख-दुख के भावों की अन्योंन्याश्रित स्थिति का कितना ज्ञान है ? ''
यह मनुष्य की वैचारिक क्षमता पर निर्भर करता है कि उसे मानवीय सम्वेदनाओं के संचरण का और मानवीय सुख-दुख के भावों की अन्योंन्याश्रित स्थिति का कितना ज्ञान है ? ''
मार्निया रॉबिन्सन दुहराती हैं कि ''जब आप अपनी निजी ख़ुशी के लिए कुछ करते हैं तो 'डोपामाइन हार्मोन' निस्रत होता है,जो एक तेज इच्छा-कामना पैदा करता है,किन्तु वह संतोष नही देता। आंतरिक अतृप्त वासनाओं को जगाता है। किंतु दूसरों की ख़ुशी या हित के लिए सोचने पर आक्सीटोसिन हारमोन निश्रित होता है.यह निः स्वार्थभाव,दयालुता और प्राणी मात्र के प्रति प्रेम उत्पन्न करता है। यदि यह हार्मोन पर्याप्त मात्रा में न निकले तो मनुष्य अवसाद की ओर अग्रसर होता जाता है!इसलिए यदि आप आस्तिक/नास्तिक न होकर केवल एक बेहतरीन इंसान हैं तो आप को बारम्बार नमस्कार!आपका मानव जीवन धन्य हो गया ! यही वास्तविक और निर्पेक्ष जीवन सत्य है!"
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