ठेका और आउट सोर्सिंग मजदूर -कर्मचारियों की न तो आजीविका निश्चित है और न ही मेडीकल और पेंशन इत्यादि सुविधाएं तय हैं! इन्ही से मिलता जुलता भविष्य उन युवाओं का भी है जो एन -केन-प्रकारेण ऊँची तालीम हासिल कर लेते हैं और दुर्धर्ष प्रतिस्पर्धा याने कम्पीटीशन से गुजरकर तथाकथित बढ़िया पैकेज पर विभिन्न राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में १० -१२ घंटे खटते हुए अपना भविष्य दाव पर लगाकर अपनी श्रम शक्ति बेच रहे हैं !भले ही इन्हें कहने को लाखों का पैकेज होता है किन्तु इन सभी का जीवन ठेका मजदूरों से जुदा नहीं है !.मालिक का खोफ ,सी ई ओ का खोफ नौकरी से हटा देने का डर,यदि महिला है तो उसे निजी क्षेत्र में चारों ओर संकट ही संकट से जूझना है .! कई घटिया और दोयम दर्जे के ठेकेदार या कम्पनी मालिक अपने कामगारों को समय पर वेतन भी नहीं देते .पी ऍफ़ का पैसा काटने के बाद उसे उचित फोरम में जमा न करने की प्रवृत्ति आम है .आजकल सरकारी और सार्वजानिक उपक्रमों में अधिकांश काम ठेके से ही करवाया जा रहा है .ठेकों /संविदाओं में क्या गुल गपाड़ा चल रहा है ये तो सरकार ,क़ानून मीडिया सभी को मालूम है !किन्तु इन चंद मुठ्ठी भर लोगों की खातिर देश के करोड़ों नौजवानों का भविष्य नेस्तनाबूद किया जा रहा है उसकी किसे खबर है ?यदि जिम्मेदार प्रशासन और सरकार से शिकायत करो तो कहा जाता है की ये तो नीतिगत मामला है .गरज हो तो काम करो वर्ना भाड़में जाओ !
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