मानवजाति के समक्ष सदा से ही अनेक अगोचर प्रश्न मुँह बाए खड़े रहे। मानवीय शोषण -उत्पीड़न की वजह क्या है ? पृथ्वी पर प्रत्येक मनुष्य का हक क्या है ? भौतिकवाद क्या है ?अध्यात्मवाद और तत्सम्बन्धी दर्शन क्या है ? ये मजहब-रिलिजन और 'धर्म-अधर्म'' क्या हैं? इन सब में अंतरंग सम्बन्ध और फर्क क्या है ? ईश्वर क्या है ? इत्यादि सवालों के हल खोजे बिना न तो भौतिकवादी दर्शन को नकारा जा सकता है,न ही 'ईश्वर' अध्यात्मवाद और धर्म-दर्शन को नकारा जा सकता है। धर्मप्राण जनता को चाहिए कि वह 'भौतिकवादी दर्शन को भी अवश्य पढ़े। जिस आधुनिक साइंस के भौतिक उपादानों मोबाइल -इंटरनेट को वह सीने से लगाए हुए है ,उसी साइंस के तर्कशील क्रांतिकारी अर्थशास्त्र और 'मनोविज्ञान'को ह्र्दयगम्य क्यों नहीं करना चाहिए। इसी तरह सभी धर्म-मजहब और अध्यात्म का उचित अध्यन किये बिना तर्कवादी -अनीश्वरवादी मित्र भी भाववादी दर्शन में अनावश्यक हस्तक्षेप ना करें। वैसे भी असत्य आलोचना का कोई औचित्य नहीं हो सकता। आस्तिक और भाववादी लोगों को भी धर्मान्धता के गटरगंग में डुबकी लगाने के बजाय भृष्ट सिस्टम को दुरुस्त करना चाहिए। यदि दुरुस्ती सम्भव न हो तो बलात उखाड़ फेंकना चाहिए !
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