भारत जैसे विकासशील देश में बेरोजगारों की स्थिति सबसे भयानक है और बेहद उलझी हुई है। केवल अशिक्षित अथवा अर्ध शिक्षित युवाओंको ही नहीं बल्कि उच्च शिक्षित तकनीकी ज्ञान से समृद्ध युवा बेरोजगारों को जबरन निजी क्षेत्रकी गुलामी करनी पड़ रही है। भुखमरी दूसरी सबसे बड़ी समस्या है ,तीसरी समस्या 'बेघर'लोगों की है जो अपना सम्पूर्ण जीवन अभावों में गुजारने को बाध्य हैं। यह स्थिति केवल आधुनिक भारत की ही नहीं ,बल्कि विकसित पूँजीवादी दुनिया की भी है। इतनी घोर आपात स्थिति के वावजूद आधुनिक युवाओं को 'वैज्ञानिक कम्युनिज्म' के सिद्धांतों की रंचमात्र भी जानकारी नहीं है। जब आधुनिक एमबीए,एमसीए और तमाम उच्च डिग्रीधारी युवाओं को नहीं मालूम कि कार्ल - मार्क्स ने अपनी पुस्तक 'डास केपिटल' में इन्ही समस्यायों के बरक्स वैज्ञानिक हल खोजेहैं,तो अपढ़ गंवार युवाओं से क्या उम्मीद करें कि वे इंकलाब की मशाल अपने हाथों में थामेंगे।
प्रगतिशील से तात्पर्य यथार्थ और प्रामाणिक वैज्ञानिक सोच वाले सर्व विषय निष्णान्त गुणी व्यक्ति से है।ऐंसे व्यक्ति को देश काल परिस्थिति के अनुसार विषय वस्तु की महत्ता का भान होना जरुरी है। तभी वह व्यक्ति सही निर्णय कर पायेगा। वर्ना सिखाने वाला ही यदि अधकचरा,अपरिपक्व,पक्षपाती और कंजरवेटिव है तो वह यथार्थ निर्णय नहीं दे पायेगा। किसी व्यक्ति,विचार धर्म-मजहब, राजनीति और इतिहास की व्याख्या के तीन नजरिये हैं। पहला-कट्टरपंथी प्रतिक्रियावादी! दूसरा-विज्ञानवादी यथार्थवादी!तीसरा - स्वार्थपूर्ण और पक्षपाती!भारतीय लोकतंत्र में विद्रोह की उचित संभावना है,अत: जनता में राष्ट्रवाद का संचरण बहुत जरूरी है!
प्रगतिशील से तात्पर्य यथार्थ और प्रामाणिक वैज्ञानिक सोच वाले सर्व विषय निष्णान्त गुणी व्यक्ति से है।ऐंसे व्यक्ति को देश काल परिस्थिति के अनुसार विषय वस्तु की महत्ता का भान होना जरुरी है। तभी वह व्यक्ति सही निर्णय कर पायेगा। वर्ना सिखाने वाला ही यदि अधकचरा,अपरिपक्व,पक्षपाती और कंजरवेटिव है तो वह यथार्थ निर्णय नहीं दे पायेगा। किसी व्यक्ति,विचार धर्म-मजहब, राजनीति और इतिहास की व्याख्या के तीन नजरिये हैं। पहला-कट्टरपंथी प्रतिक्रियावादी! दूसरा-विज्ञानवादी यथार्थवादी!तीसरा - स्वार्थपूर्ण और पक्षपाती!भारतीय लोकतंत्र में विद्रोह की उचित संभावना है,अत: जनता में राष्ट्रवाद का संचरण बहुत जरूरी है!
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