जब रोम जल रहा था, पीट्सबर्ग से लेकर डायमंड हार्वर तक और हिरोशिमा से लेकर नागासाकी तक परमाणुविक आग की लपटें आसमान छू रहीं थीं ,तब यूरोप -अरब के धर्म-मजहब क्या कर रहे थे ? तब गॉड अल्लाह, ईश्वर और आस्तिकता सो रहे थे ?शायद इन जघन्य घटनाओं से प्रेरित होकरही प्रगतिशील लेखकों ने मार्क्स के 'धर्म एक अफीम है' वाले सिद्धांत में नास्तिकता का बीजारोपण कर डाला। जबकि वास्तव में कार्ल मार्क्स का यह तातपर्य कदापि नहीं था कि,धर्म -मजहब गलत हैं या ईश्वर का अस्तित्व ही नहीं है। दरसल मार्क्स ने धर्म -मजहब के उसी विकृत रूप और विचलन पर कटाक्ष किया था जो आज भी दुनिया को भरमाने में जुटा है।
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