पुरवा हुम -हुम करे ,पछुवा गुन -गुन करे ,
ढलती जाए शिशिर की जवानी हो।
आया पतझड़ का दौर ,झूमें आमों में बौर ,
कूँकी कुंजन में कोयलिया कारी हो।
उपवन खिलने लगे ,मन मचलने लगे ,
ऋतु फागुन की आई सुहानी हो।
करे धरती श्रृंगार ,दिन वासंती चार,
अली करने लगे मनमानी हो।
फलें -फूलें दिगंत ,गाता आये वसंत ,
हर सवेरा नया और संध्या सुहानी हो।
श्रीराम तिवारी
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