#धूमिल: हिंदी कविता का एंग्री यंगमैन
हिंदी कविता के एंग्री यंगमैन-सुदामा पांडे जो हिंदी साहित्य जगत में धूमिल के नाम से मशहूर हुए,जिनकी कविताओं में आजादी के सपनों के मोहभंगकी पीड़ा और आक्रोश की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति मिलती है.व्यवस्था जिसने जनता को छला है,उसको आइना दिखाना मानों धूमिल की कविताओं का परम लक्ष्य रहा है.इसलिए उन्होंने कहा-
"क्या आजादी सिर्फ तीन थके हुए रंगों का नाम है, जिन्हें एक पहिया ढोता है या इसका कोई मतलब होता है?"
धूमिल का जन्म वाराणसी के पास खेवली गांव में हुआ था.धूमिल का जन्म नौ नवंबर, 1936 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के खेवली गांव में माता रसवंती देवी के गर्भ से हुआ था.३८ वर्ष की अल्पायु में ही ब्रेन ट्यूमर से उनकी मृत्यु हो गई.उनके परिजन रेडियो पर उनके निधन की खबर सुनने के बाद ही जाना कि वे कितने बड़े कवि थे.
धूमिल के जीवित रहते 1972 में उनका सिर्फ एक कविता संग्रह प्रकाशित हो पाया था- संसद से सड़क तक. ‘कल सुनना मुझे’ उनके निधन के कई बरस बाद छपा और उस पर 1979 का प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार उन्हें मरणोपरांत दिया गया. बाद में उनके बेटे रत्नशंकर की कोशिशों से उनका एक और संग्रह छपा- सुदामा पांडे का प्रजातंत्र.आज उनके जन्मदिन पर उनकी इस लोकप्रिय कविता को याद करें------
एक आदमी रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूं
यह तीसरा आदमी कौन है
और मेरे देश की संसद मौन है…
आज उनके जन्मदिन पर #शत_शत_नमन
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