मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

मैं जग पालन और तारनहार!

अनवरत वैज्ञानिक अविष्कार!
मोटर-ट्रक जहाज रेल दूर-संचार!!
फितरती मनुष्य की रचनाधर्मिता,
हरयुग में मेरे द्वारा होती रही साकार!
मैं ही जग का सृष्टा सेवक श्रमिक,
मैं ही जग पालन और तारनहार!!
खेतों खदानों राष्ट्र की सीमाओं पर,
आतप बर्षा शीत जंग के मैदान में!
सेवा सुरक्षा सकल संचालन तंत्र में,
वनों में बागों में सौंदर्य के निर्माण में!!
मेरा ही श्रमस्वेद लेता रहता प्रतिपल,
अवनि अंबर गिरि कंदराओं में आकार!
मेरी ही दमित आत्मा होती रहती है,
निरंतर मानवीय सभ्यता में साकार!!
अनगिनत पीरों,पैगम्बरों,अवतारों में,
धर्म मजहब में न मिला अपना कोई !
इसीलिये मानव इतिहास के पन्नों में,
कहीं भी कभी भी मेरा नाम नहीं कोई!!
श्रीराम तिवारी

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