आजाद भारत के संविधान निर्माताओं को कार्ल मार्क्स की शिक्षाओं का ज्ञान था,उन्हें मालूम था कि 'धर्म'-मजहब' के नाम पर सामन्त युगीन इतिहास में किस कदर क्रूर और अमानवीय उदाहरण भरे पड़े हैं। वे इतने वीभत्स हैं कि उनका वर्णन करना भी सम्भव नहीं ! धार्मिक -मजहबी उन्माद प्रेरित अन्याय और उससे रक्तरंजित धरा के चिन्ह विश्व के अनेक हिस्सों में अब भी मौजूद हैं !
अपने राज्य सुख वैभव की रक्षा के लिए न केवल अपने बंधु -बांधवों को बल्कि निरीह मेहनतकश जनता को भी 'काल का ग्रास' बनाया जाता रहा है । कहीं 'दींन की रक्षा के नाम पर, कहीं 'धर्म रक्षा' के नाम पर, कहीं गौ,ब्राह्मण और धरती की रक्षा के नाम पर 'अंधश्रद्धा' का पाखण्डपूर्ण प्रदर्शन किया जाता रहा है। यह नग्न सत्य है कि यह सारा धतकरम जनता के मन में 'आस्तिकता' का भय पैदा करके ही किया जाता रहा है।यह दुष्कर्म तथाकथित नवयुग या वेज्ञानिकता के युग में भी जारी है!
इस क्रूर इतिहास से सबक सीखकर भारतीय संविधान निर्माताओं ने भारतको एक विशुद्ध धर्मनिरपेक्ष -सर्वप्रभुत्वसम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य घोषित किया, यह भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थिति है।हमें हमेशा बाबा साहिब अम्बेडकर और ततकालीन भारतीय नेतत्व का अवदान याद रखना चाहिए ! उनका शुक्रिया अदा करना चाहिए। भारत के राजनैतिक स्वरूप में धर्मनिपेक्ष लोकतंत्र ही श्रेष्ठतम विकल्प है।
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