शनिवार, 10 नवंबर 2018

कार्ल मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत*


मार्क्सवाद वर्ग संघर्ष के लिए सर्वहारा में स्वयं में वर्ग के बाद स्वयं के लिए वर्ग की चेतना के विकास को प्राथमिकता देता है।
पूंजीवादी व्यवस्था में एक तरफ पूंजीपति वर्ग की तो दूसरी तरफ सर्वहारा वर्ग की निर्णायक भूमिका को स्वीकार करता है।
पूंजीवादी व्यवस्था में लाभ पाने वाले छोटे बड़े कई वर्ग ,संघर्ष में पूंजीपति वर्ग के पक्ष में चले जाते हैं या उनके चले जाने की अधिक संभावना रहती है।
इस व्यवस्था मै शोषण दमन के शिकार सर्वहारा के अतिरिक्त छोटे बड़े दूसरे वर्ग भी होते हैं किन्तु वह कुछ देर से सर्वहारा वर्ग के नेतृत्व में संघर्ष करने के लिए तैयार होते हैं।
छोटा और मझोला किसान सर्वहारा का सबसे अच्छा दोस्त होता है।
खुद सर्वहारा और निम्न मध्यम वर्ग के अनेक ऐसे भी होते हैं जिनका चारित्रिक पतन इतना अधिक हो जाता है कि वह लंपट बन कर पूंजीपति वर्ग के लिए काम करने लगता है।यह पूंजीपति वर्ग के फेंके हुए टुकड़ों पर पलता है और मजदूरों पर आक्रमण करने,नेताओं की हत्या करने ,हड़तालों के समय अराजकता फैलने का काम करता है।
कुछ पूंजीवादी पार्टियों की सरकारें इन पर काफी खर्च करती हैं।
पूंजीपति वर्ग ने जिस सामंत वर्ग को सत्ता से बेदखल किया उसकी बहुत सी संताने पूंजीपतियों की लठैत बन जाने को अपना सौभाग्य समझ ती हैं।यह भी लम्पटों की कतार में खड़ी हो जाती हैं।
बीते दिनों के सामंतों की अधिकतर संताने तो पूंजीपतियों के यहां उनकी नौकरी करती हैं और इस तरह सर्वहारा बन जाती हैं।

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