रविवार, 18 नवंबर 2018

रूठों को मनाना भी तो उन्हें नहीं आता .

बुरा बक्त किसी का बतलाकर नहीं आता।
किया गया कुछभी कभी बेकार नहीं जाता।।
दूध के फट जाने पर दुखी होते हैं नादान ,
शायद उन्हें रसगुल्ला बनाना नहीं आता।
न जाने खुदा क्यों देता है उनको खुदाई इतनी,
कि उन्हें अपने सिवा कुछ और नजर नहीं आता।।
बहारों का असर अब भी बहुत है फिजाओं में,
बदकिस्मत हैं कि गुलों से यारी निभाना नहीं आता।
वेशक किसी से कोई गिला शिकवा न हो उन्हें,
लेकिन रूठों को मनाना भी तो उन्हें नहीं आता ।।
खुदा की रहमत से बुलंदियों पर मुकाम है उनका,
लेकिन जमीं पर पाँव ज़माना तब भी नहीं आता।
वे क्या खाक करेंगे नेतत्व,नवनिर्माण और विकास,
जिन्हें सेठोंकी चाकरीके सिवा कुछ नजर नहीं आता।।

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