सोमवार, 12 नवंबर 2018

गरीब सवर्ण कोभी अंबानी या टाटा ही समझते हैं!

इस देश के कुछ लोग एक तरफ तो सवर्णों को पानी पी पीकर कोसते रहते हैं,वे गरीब सवर्ण कोभी अंबानी या टाटा ही समझते हैं!दूसरी ओर किसी पिछड़े वर्ग या दलित वर्ग के व्यक्ति का कलैक्टर कमिश्नर हो जाने पर भी आरक्षण रूपी वैशाखी की खातिर खुद को अनंतकाल तक दलित,पिछड़ा और निम्नजाति का ही मानते रहना कहाँ तक उचित है? इस तरह से तो भारत में जातिवाद खत्म होने के बजाय और ज्यादा मजबूत ही होगा!इस तरह की मानसिकता से कोई भी ऊपर कैसे उठ सकता है? दलित पिछड़े होने का सबूत-देकर और जाति प्रमाणपत्र केनाम पर-आरक्षण का लाभ लेकर कोई ऊंचा कैसे उठ सकता है?
राजनीतिक पटल पर भी जो लोग इस या उस जाति के नाम पर चुनाव लडते़ रहते हैं वे भले ही हारें या जीतें किंतु ये सब लोकतंत्र और संविधान के दुश्मन हैं!बाबा साहिब ने यह सपना नही देखा था कि शोषित दमित जन अनंत काल तक आरक्षण की बैशाखी के सहारे औरों के गुलाम ही बने रहें!

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