दुनिया के मानव इतिहास में ऐंसा कोई भी दर्शन,धर्म-मजहब ,पंथ अथवा विचारधारा नहीं हुआ जिसने अपने आपको स्थापित कराने में या ओरों पर थोपने के लिए शक्ति का इस्तेमाल न किया हो !
भारतके वैदिक मन्त्रदृष्टा ऋषि मुनियों ने बौध्दों,जैनों और वैष्णवों में भले ही 'अहिंसा परमो धर्मः' का मौखिक जाप निरंतर किया जाता रहा हो, किन्तु उनके कट्टर अनुयायी - धर्मावलंवी संरक्षक शासकों और चक्रवर्ती सम्राटों ने [अ ] धर्म* के लिए अपने सहोदर भ्राताओं का खून बहाने में जरा भी परहेज नहीं किया! भले ही बाद में अनगिनत लाशों को देखने के बाद किसी राजा या सेनापति कोआत्म ग्लानि हो गयी हो और वह बौद्ध भिक्षु या अहिंसावादी' हो गया हो !
भारत और यूनान में बहुत सभ्य तरीके से पक्ष-विपक्ष के मध्य ,विद्वान गुरुओं और उनके शिष्यों के मध्य ,प्रश्नोत्तर अथवा शास्त्रार्थ के रूप में आलोचनात्मक मत व्यक्त करने का इतिहास आष्चर्यजनक रूप से बहुत पुराना है।किन्तु आलोचना अथवा 'मतखण्डन' को भाववादी पुष्टिवादियों और परम्परावादी स्वार्थी शासकों ने कभी पसंद नहीं किया।
मौजूदा मोदी सरकार को और संघ परिवार को अतीत के इतिहास से सबक सीखना चाहिए! मोदी जी को भारत और भारत के बाहर मिल रहे,अपार जन समर्थन को वैश्विक संकट मोचक के रूप में देखा जाना चाहिए! भारत का गौरव मस्जिदें गिराने या मंदिर बनाने से नही,बल्कि भारत का गौरव भारत में रोजगार गारंटी योजना लागू करने, अमन और शांति कायम करने और सबका साथ सबके विकास करने से चरितार्थ होगा!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें