ख़ालिस मिट्टी व घास-फूस से अपना संसार बसाया है।
हम अदने से भोले-भाले प्रकृति प्रेमी व प्रकर्ति पूजक लोग,
हमारी क्या बिसात कि हम जंगलों व प्रकृति को बनाएं।
प्रकृति एवं जंगलो ने हमें बनाया।
सूखे पत्तों की चरमराहट से जंगल की आहट भांप लेते हैं,
नदीयों में डुबोकर पेड़ों ने लिखी जो इबादत,
पहाड़ो के सीने पर हम उसे बांच लेते हैं।
सहरिया, गोंड, उरांव,मुंडा,भील,बारेला, भिलाला,,
पांचवी अनुसूची तक ही सिमट जाएं,इतनी लघु नही,
विशाल हमारी काया है।
नारी सुरक्षा, नारी सशक्तीकरण सब हमारे लिए व्यर्थ हैं,
हमारे नारी व पुरुष में उतना ही फर्क है जो प्रकर्ति ने बनाया।
आप अपनी रहस्यमयी काया पर बात करने से कतराते हो,
हमारी संस्कृति व सरोकारों के खुलेपन पर भौचक्के रह जाते हो।
फिर भी हम पुरातन एवं आप आधुनिक व काबिल लोग,
क़्योंकि आपकी नजर में आदिवासी मतलब आधे नंगे जाहिल लोग।
क़्योंकि हम तो आपके लिए शोध की वस्तु हैं।
खैर जिस दिन आप हमें जान जाओगे,
खुद को हम जैसे बनने से रोक नही पाओगे।
आपने हमारे जल,जंगल और जमीन छीने हैं,
औऱ अब हमें बचाने की यूँ दिखावटी कोशिशें हैं।
हमारी लेखनी से आपकी ये कोशिशें,कहीं और सियासी न हो जाएं,चलो कुछ देर छोड़ो इस सियासत को।
पढ़िए जंगलों एवं हम जंगलियों को,
प्रकृति में जश्न होगा उस दिन जब,
आप हम सब आदिवासी हो जाएं।।
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