,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ,,,,,,ग़ज़ल,,,,,,,,,,,,,,,,,,
तख़य्युल की नवाज़िश हो रही है!
ग़ज़ल की तेज़ बारिश हो रही है!!
अमीरे शह्र के दौलत-क़दे में,
ग़रीबों की नुमाइश हो रही है!
सूखा अकाल है दिल के अन्दर,
मगर आंखों से बारिश हो रही है!
है शायद रास्ते में ग़म की दौलत,
मिरे हाथों में ख़ारिश हो रही है!
कभी सहरा में सोया जा रहा है,
कभी वन में रिहाइश हो रही है!
मुझे बर्बाद करने की ऐ साहिल,
मिरे ही घर में साजिश हो रही है!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें