सुबह हो या शाम जिंदगी यों ही,
पलपल बदलती चली जाती है।
रूहानी ताकत इस देह की माँग-
पूर्ति में यों ही गुजरती जाती है।।
होगा सर्वशक्तिमान कोई,
होगा सर्वत्र महान लेकिन,
न्यायिकतुला क्यों उसकी,
ताकतके पक्षमें झुक जाती है।
अनंत ब्रह्माण्ड की शक्तियां,
कोटिक नक्षत्र चंद तारे गगन,
निहारती नीहारिकायें विराट,
मेरे होने का यकीन दिलाती हैं !!
किसी समाधिस्थ योगी ने कहा-
होगा कभी शिवोहम् सोहमस्मि,
लेकिन असभ्य बर्बर लुटेरों को,
ये दैवी सम्पदा कहां सुहाती है!
गाज गिरती है सिर्फ कमजोर पर,
बूढ़े दरख्तों पुरातन खंडहरों पर,
सुनामी भी तो अक्सर निर्बलों पर
ही मुसीबत बनकर गजब ढाती है!!
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