रात को रात कहा और ख़तावार हुए
बैठे - ठाले ही कई लोग गुनाहगार हुए ।
अब ये शाहीन पे ठहरा के झपटना कब है
छत पे मासूम कबूतर तो गिरफ्तार हुए ।
चाहा था चलके चलो कुछ तोड़ के खालेंगे
आम के सारे दरख़्त बिकते ही बाजार हुए ।
है ये ज़रदार ज़माना न सुने कौई किसीकी
मंडियों में भी ज़मीरों के खरीदार हुए ।
कोई शिकवा नहीं कोई शिकायत भी नहीं
तूफां में हाथ उठे जब भी तो पतवार हुए ।
मेह भी बरसेगा धरती भी नहाएगी ज़रूर
प्रेम के झरने थके हैं न वो लाचार हुए ।
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