एक हिंदू पंडित,एक ईसाई धर्मगुरू और एक मुस्लिम मौलाना ने ब्रिटेन में एक सीनियर न्यायाधीश से शिकायत की:-
ब्रिटेन में हमारे पवित्र धर्मग्रंथों से अधिक "गुरु ग्रंथ साहब'' को सम्मान क्यों दिया जाता है ? जबकि धर्मनिरपेक्ष देश में सभी शास्त्रों को समान रूप से महत्व दिया जाना चाहिये!
जज ने कहा:-
"मैं जांच करूंगा और आपकी आपत्ति का निराकरण करूंगा,लेकिन क्या आप कृपया अपने संबंधित पवित्र ग्रंथ कल अपने साथ कोर्ट में ला सकते हैं?"
सभी ने हामी भरी और अगले दिन, जज ने उन तीनों से पूछा:-
"क्या आप अपने पवित्र ग्रंथ अपने साथ लाए हैं?"
तीनो ने उत्तर दिया "हां"!
जज ने कहा:-
" मुझे दिखाओ "
हिंदू ने अपनी पवित्र *श्रीमदभगवदगीता*
ईसाई ने बाइबिल और मुसलमान ने अपने पवित्र ग्रंथ क़ुरान को अपने थैले से निकाल कर जज के सामने रख दिया।
जज चुप रहे......
कुछ समय बाद, तीनों समुदायों के सदस्यों ने न्यायाधीश से पूछा,
" मी लॉर्ड आप चुप क्यों हैं ?"
न्यायाधीश ने उत्तर दिया;-
"मैंने एक गुरसिख को अपने पवित्र ग्रंथ *गुरु ग्रंथ साहिब जी*लाने के लिए कहा है,उनके आने के बाद ही मैं आपके सवाल का जवाब दे सकूंगा"
कुछ समय बाद,कोर्ट के बाहर बहुत शोर होने लगा, एक चमचमाती कार आ रही थी! कार के सामने कुछ लोग सड़क की सफाईकर रहे थे और पानी छिड़क रहे थे!
जब गाड़ी रुकी,तो कुछ लोगों ने कोर्ट के दरवाजे के प्रवेश द्वार की ओर जाने वाली कार के आगे कालीन बिछा दिया।
एक आदमी श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को दोनों हाथों में नवजात शिशु की तरह सम्मान से थामें हुए जब कार से निकला,तब एक और दूसरा सेवादार श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के ऊपर छतरी की छतरी लेकर साथ साथ चलने लगा !
और एक तीसरा सिख श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के ऊपर पंखे से हवा कर रहा था।
एक चौथा आदमी रास्ते की अगुवाई करने लगा, जमीन पर पानी छिड़क रहा था।
जब ये सब चल रहा था तब कुछ लोग *सत् श्री अकाल* का नारे लगातै हुए पहले ही कोर्ट रूम में घुस आए!
उन्होंने झटपट पालकी साहिब के साथ एक उच्च सिंहासन तैयार कर दिया!
फिर 8 से 10 सिखों ने सस्वर पाठ करते हुए कोर्ट रूम में प्रवेश किया;
"सतनाम वाहेगुरु",
जबकि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को परम सम्मान के साथ पालकी साहिब में लाकर रखा गया था।न्यायाधीश ने तब हिंदू ईसाई और मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों को देखा।
बिना एक शब्द कहे तीनों ने अपने-अपने पवित्र ग्रंथ उठाए और चले दिये!
यह श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का अपार सम्मान और सम्मान है।
साथ में यह संदेश भी है कि अपने धर्मग्रंथों को पढ़ें और उनका ईश्वरीय संदेश मानकर अपनी विरासत का सम्मान करें ! अपने सामाजिक, नैतिक मूल्यों को बनाए रखें।
स्कूली शिक्षा और कालेज की डिग्री यदि मनुष्य को रोजी रोटी और सम्मान देती है तो पवित्र धर्मग्रंथों के अध्यन से वह श्रेष्ठ मानव बनता है!
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