अथ योगानुसंधानम् :
बहुत दिनों से इस सवाल का जबाब ढूँड़ रहा हूँ कि जिस आदमी के घर में फांकाकशी का डेरा हो,जिनके परिजन आर्थिक संकट से जूझ रहे हों, उचित पोषण के अभाव में जो अकाल मौत मर रहे हों,जो किसान मानसून की खैंच से डरा हुआ हो,जो कभी अपने सूखे खेत को और कभी रीते बादलों को निहार रहा हो, उसे कौनसा योग करना चाहिये?
भगवान शिवशंकर,योगेश्वर श्रीकृष्ण,महर्षि पाणिनि,महर्षि पतंजलि ने सदियों पहले जो विश्व कल्याणार्थ योग बतलाया था, उसके बारे में भारत में और दुनिया में बहुत कम लोग जानते हैं! उस पुरातन योग को ठीक से जानने के लिए श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय ७-८ का नित्य पाठ करें!
आज जिस योग की ब्रांडिंग की जा रही है,दरसल वह राजयोगियों और हठयोगियों के योग का एक अनिवार्य हिस्सा है! स्थूल रुप में यह शारीरिक व्यायाम ही है, कुछ चतुरे लोग इतने मात्र से धर्म अर्थ काम मोक्ष पा जाते हैं! इस तथाकथित योग की महिमा कुछ इस प्रकार है!
अनुलोभ,विलोम,भस्त्रिका, कपालभाति पेट की अतड़ियों को अन्दर खींचकर उन्हें चक्राकार घुमाने का नाम योग नहीं है! ये भारत के प्राचीन हठयोगियों राजयोगियों की आसन विधियों के कुछ अंश मात्र हैं !
समकालीन राजर्षियों,महर्षियों के अथक प्रयासों से यह योगदिवस हर साल 21 जून को सारी दुनिया में यह मनाया जाने लगा है! इस रोज सब नेता अफसर कैमरे के सामने इसे शिद्दत से करते हैं! कुछ विधर्मी मुल्ले मौलवी इस कसरत में भी हिंदुत्व देखते हैं, जबकि यह एक परम धर्मनिरपेक्ष शारीरिक मशक्कत मात्र है!
बेशक गरीबी,भुखमरी आसाध्य बीमारियों का निदान इसमें नही है! किंतु खाते पीते सम्पन्न लोगों के शारीरिक मानसिक और सामाजिक सौष्ठव के लिए यह सार्थक है !
तो बोलो-अथ योगानुशासनम्,
"योगश्चित्व्रत्ति निरोध:!" :-महर्षि पतंजलि
अर्थ:- चित्त की वृत्तियों के निरोध का नाम योग है!
"प्रकृति (माया) से मुक्त होकर जीवात्मा का विशुद्ध चैतन्य याने *पूर्ण पुरुष* ( ब्रह्मस्वरूप) में लय होने की चेष्टा का नाम योग है" :- सांख्यकारिका
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