बल पौरुष सार्थक बुद्धिमत्ता तुम्हारी
यदि किसी मुफलिस के काम न आए !
जवानी यदि आक्रांताओं के खिलाफ,
राष्ट्र के अंदर बाहर साहस न दिखलाए !!
तो धिक्कार है ऐंसी बेगैरत तरूणाई को
जो मजहब के नाम पर पत्थर बरसाए!
यदि बाकई ईमान वाले हो तो करो न्याय,
शंखनाद आह्वान सर्वहारा क्रांतियों का !!
शालीनता से सुलझा लो झगड़े तमाम ये,
धो डालो मन मैल अतीत की भ्रांतियों का !
छोड़ दो बर्बरतापूर्ण हिंश्र इतिहास का मोह,
यह वो धरती है जहां प्रेम गीत गाए जाते हैं !!
अपने श्रमश्वेद का देते हैं खेतों को जो अर्घ्य,
उन्ही के पुत्र सीमापर बल पौरुष दिखलाते हैं!
जो संघर्षों में धीर वीर झंझावत में अविचल,
नकली संकट कहाँ उन्हें विचलित कर पाते हैं !!
लोभी-लालची भृष्ट मुनाफाखोर है सिस्टम,
मीडिया लेखक कवि इसके पुर्जे बन जाते हैं!
जो मानवता का इतिहास पढ़ाते हैं जग को,
वे युगांधर ही सच्चे क्रांति वीर कहलाते हैं !!
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