गुरुवार, 30 जून 2022

चर्चा ही नहीं वर्ग संघर्ष और जनक्रांति की,

 घर से तो निकले थे जग को खुशियाँ लुटाने,

खरामा खरामा किस वीराने में आ गए हम।
कबीलों में रहा होगा कभी जंगलका क़ानून,
बर्बर आतंकियों की जद में फिर आ गए हम!
हांकते हैं कारवाँ सत्ता के प्यादे जिस दौरमें,
उस पतनशील दौर की फिजामें आ गए हम।
बिल्कुल फर्क ही न रहा जहाँ नीति अनीति का,
खरामा खरामा उस सिस्टम में आ गए हम!!
दाभोलकर,पानसरे,गौरी लंकेश की मौत पर चुप रहे,
अब कन्हैंयाओं की नृशंस हत्याओं पै क्यों रो रहे हम!
चर्चा ही नहीं जहां वर्ग संघर्ष और जनक्रांति की,
ऐंसी रक्तरंजित महफ़िल में क्यों आ गए हम!!
:-श्रीराम तिवारी

हमने पत्थरों से बड़े-बड़े किले व महल नही बनाए,

ख़ालिस मिट्टी व घास-फूस से अपना संसार बसाया है।
हम अदने से भोले-भाले प्रकृति प्रेमी व प्रकर्ति पूजक लोग,
हमारी क्या बिसात कि हम जंगलों व प्रकृति को बनाएं।
प्रकृति एवं जंगलो ने हमें बनाया।
सूखे पत्तों की चरमराहट से जंगल की आहट भांप लेते हैं,
नदीयों में डुबोकर पेड़ों ने लिखी जो इबादत,
पहाड़ो के सीने पर हम उसे बांच लेते हैं।
सहरिया, गोंड, उरांव,मुंडा,भील,बारेला, भिलाला,,
पांचवी अनुसूची तक ही सिमट जाएं,इतनी लघु नही,
विशाल हमारी काया है।
नारी सुरक्षा, नारी सशक्तीकरण सब हमारे लिए व्यर्थ हैं,
हमारे नारी व पुरुष में उतना ही फर्क है जो प्रकर्ति ने बनाया।
आप अपनी रहस्यमयी काया पर बात करने से कतराते हो,
हमारी संस्कृति व सरोकारों के खुलेपन पर भौचक्के रह जाते हो।
फिर भी हम पुरातन एवं आप आधुनिक व काबिल लोग,
क़्योंकि आपकी नजर में आदिवासी मतलब आधे नंगे जाहिल लोग।
क़्योंकि हम तो आपके लिए शोध की वस्तु हैं।
खैर जिस दिन आप हमें जान जाओगे,
खुद को हम जैसे बनने से रोक नही पाओगे।
आपने हमारे जल,जंगल और जमीन छीने हैं,
औऱ अब हमें बचाने की यूँ दिखावटी कोशिशें हैं।
हमारी लेखनी से आपकी ये कोशिशें,कहीं और सियासी न हो जाएं,चलो कुछ देर छोड़ो इस सियासत को।
पढ़िए जंगलों एवं हम जंगलियों को,
प्रकृति में जश्न होगा उस दिन जब,
आप हम सब आदिवासी हो जाएं।।
May be an image of 2 people, people standing, sky, tree and text that says 'Er R.D.Badole Barwani (MP)'

"क्योंकि वह काफ़िर है!

 कातिलों को पहचानिए इन इशारों से

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"मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति अनवर सादात के हत्यारे से न्यायाधीश ने पूछा: “तुमने प्रेजिडेंट को क्यों मारा?"
वो बोला: "क्योंकि वह धर्मनिरपेक्ष था!"
न्यायाधीश ने पूछा, "धर्मनिरपेक्ष का क्या अर्थ है?"
हत्यारे ने कहा, "मुझे नहीं पता!"
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*मिस्र के दिवंगत लेखक नागुइब महफौज़ की हत्या के प्रयास के मामले में न्यायाधीश ने उसके हत्यारे से पूछा:
“तुमने उसे चाकू क्यों मारा?"
आतंकवादी बोला: "उसके उपन्यास
''हमारे पड़ोस के बच्चे'' की वजह से।"
जज ने पूछा, "क्या आपने यह उपन्यास पढ़ा है?"
हत्यारा, "नहीं!"
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*एक अन्य जज ने मिस्र के लेखक फ़राज़ फ़ौदा की हत्या करने वाले आतंकवादी से पूछा: "तुमने फ़राज़ फ़ौदा की हत्या क्यों की?"
आतंकवादी बोला: "क्योंकि वह काफ़िर है!"
न्यायाधीश ने पूछा, "तुम्हें कैसे पता चला कि वह काफिर था?"
आतंकवादी बोला: "उसकी लिखी किताबों के अनुसार!"
जज ने कहा, "उनकी कौन सी किताब ने आपको यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि वह काफ़िर थे?"
आतंकवादी: “मैंने उसकी कोई किताब नहीं पढ़ी है!"
जज: "क्या!?"
आतंकवादी ने जवाब दिया, “मैं पढ़ या लिख ​​नहीं सकता!"
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**घृणा ज्ञान से नहीं बल्कि हमेशा अज्ञानता से उपजती और फैलती है। और कातिल सिर्फ वो नहीं होता जो तलवार चलाता है।
Surya Narayan Tiwari, Anant Drishti and 4 others

बुधवार, 29 जून 2022

छत पे मासूम कबूतर तो गिरफ्तार हुए

 रात को रात कहा और ख़तावार हुए

बैठे - ठाले ही कई लोग गुनाहगार हुए ।
अब ये शाहीन पे ठहरा के झपटना कब है
छत पे मासूम कबूतर तो गिरफ्तार हुए ।
चाहा था चलके चलो कुछ तोड़ के खालेंगे
आम के सारे दरख़्त बिकते ही बाजार हुए ।
है ये ज़रदार ज़माना न सुने कौई किसीकी
मंडियों में भी ज़मीरों के खरीदार हुए ।
कोई शिकवा नहीं कोई शिकायत भी नहीं
तूफां में हाथ उठे जब भी तो पतवार हुए ।
मेह भी बरसेगा धरती भी नहाएगी ज़रूर
प्रेम के झरने थके हैं न वो लाचार हुए ।

अनंत ब्रह्माण्ड की शक्तियां,मेरे होने का यकीन दिलाती हैं !

 सुबह हो या शाम जिंदगी यों ही,

पलपल बदलती चली जाती है।
रूहानी ताकत इस देह की माँग-
पूर्ति में यों ही गुजरती जाती है।।
होगा सर्वशक्तिमान कोई,
होगा सर्वत्र महान लेकिन,
न्यायिकतुला क्यों उसकी,
ताकतके पक्षमें झुक जाती है।
अनंत ब्रह्माण्ड की शक्तियां,
कोटिक नक्षत्र चंद तारे गगन,
निहारती नीहारिकायें विराट,
मेरे होने का यकीन दिलाती हैं !!
किसी समाधिस्थ योगी ने कहा-
होगा कभी शिवोहम् सोहमस्मि,
लेकिन असभ्य बर्बर लुटेरों को,
ये दैवी सम्पदा कहां सुहाती है!
गाज गिरती है सिर्फ कमजोर पर,
बूढ़े दरख्तों पुरातन खंडहरों पर,
सुनामी भी तो अक्सर निर्बलों पर
ही मुसीबत बनकर गजब ढाती है!!

अतीत के इतिहास से सबक सीखना चाहिए!

 दुनिया के मानव इतिहास में ऐंसा कोई भी दर्शन,धर्म-मजहब ,पंथ अथवा विचारधारा नहीं हुआ जिसने अपने आपको स्थापित कराने में या ओरों पर थोपने के लिए शक्ति का इस्तेमाल न किया हो !

भारतके वैदिक मन्त्रदृष्टा ऋषि‌ मुनियों ने बौध्दों,जैनों और वैष्णवों में भले ही 'अहिंसा परमो धर्मः' का मौखिक जाप निरंतर किया जाता रहा हो, किन्तु उनके कट्टर अनुयायी - धर्मावलंवी संरक्षक शासकों और चक्रवर्ती सम्राटों ने [अ ] धर्म* के लिए अपने सहोदर भ्राताओं का खून बहाने में जरा भी परहेज नहीं किया! भले ही बाद में अनगिनत लाशों को देखने के बाद किसी राजा या सेनापति कोआत्म ग्लानि हो गयी हो और वह बौद्ध भिक्षु या अहिंसावादी' हो गया हो !
भारत और यूनान में बहुत सभ्य तरीके से पक्ष-विपक्ष के मध्य ,विद्वान गुरुओं और उनके शिष्यों के मध्य ,प्रश्नोत्तर अथवा शास्त्रार्थ के रूप में आलोचनात्मक मत व्यक्त करने का इतिहास आष्चर्यजनक रूप से बहुत पुराना है।किन्तु आलोचना अथवा 'मतखण्डन' को भाववादी पुष्टिवादियों और परम्परावादी स्वार्थी शासकों ने कभी पसंद नहीं किया।
मौजूदा मोदी सरकार को और संघ परिवार को अतीत के इतिहास से सबक सीखना चाहिए! मोदी जी को भारत और भारत के बाहर मिल रहे,अपार जन समर्थन को वैश्विक संकट मोचक के रूप में देखा जाना चाहिए! भारत का गौरव मस्जिदें गिराने या मंदिर बनाने से नही,बल्कि भारत का गौरव भारत में रोजगार गारंटी योजना लागू करने, अमन और शांति कायम करने और सबका साथ सबके विकास करने से चरितार्थ होगा!

गुरुवार, 23 जून 2022

मासूम कबूतर

 रात को रात कहा और ख़तावार हुए

बैठे - ठाले ही कई लोग गुनाहगार हुए ।
अब ये शाहीन पे ठहरा के झपटना कब है
छत पे मासूम कबूतर तो गिरफ्तार हुए ।
चाहा था चलके चलो कुछ तोड़ के खालेंगे
आम के सारे दरख़्त बिकते ही बाजार हुए ।
है ये ज़रदार ज़माना न सुने कौई किसीकी
मंडियों में भी ज़मीरों के खरीदार हुए ।
कोई शिकवा नहीं कोई शिकायत भी नहीं
तूफां में हाथ उठे जब भी तो पतवार हुए ।
मेह भी बरसेगा धरती भी नहाएगी ज़रूर
प्रेम के झरने थके हैं न वो लाचार हुए ।