शुक्रवार, 27 मई 2022

#औरंगज़ेब

 संदर्भ: #औरंगज़ेब

सबसे लज्जाजनक बात ये है कि औरंगज़ेब के हुक्म पर जब देश भर में मंदिरों को ध्वस्त किया जा रहा था और भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा क़त्लेआम परोसा जा रहा था...
जब लाखों हिंदुओं का बलात धर्मांतरण हो रहा था...तब देश के अनेक राजे-रजवाड़े औरंगज़ेब के न केवल साथ खड़े थे, अपितु उसकी अधीनता और मनसबदारी क़बूल कर चुके थे!
इससे बड़ी डूब मरने वाली बात ये है कि भारत की राजधानी में औरंगज़ेब रोड़ तो है, लेकिन गुरु गोविन्द सिंह या महाराणा प्रताप रोड़ नहीं है (मेरी जानकारी में)...
आरे से चीरवा देना/ ख़ौलते तेल और उबलते पानी में ज़िंदा डलवा देना/ किसी धर्मगुरु के मासूम बच्चों को दीवार में चुनवा देना/ गुरु तेग बहादुर के शीश को काटकर अंतिम संस्कार भी नहीं करने देना/ माता गुजरी को बेहद यंत्रणा देना/ हज़ारों के सिर क़लम करवा देना...
खौफ़जदा यातनाओं की अनगिनत तालिबानी कहानियां औरंगज़ेब के साथ जुड़ी है जिस पशुता के आगे हिटलर भी बौना लगता है!
**भारत के समूचे इतिहास में औरंगज़ेब से बड़ा दरिंदा,दानव, नर- पिशाच और हत्यारा कोई नहीं हुआ!
तैमूर लंग से भी बड़ा!
अंग्रेज़ इतिहासकार कर्नल टाॅड, फ्रांसीसी इतिहासकार फ्रांस्वा बर्नियर ( जो उस समय दाराशिकोह के बुलावे पर भारत आया) और एक शिया मुस्लिम इतिहासकार रिजवी ने औरंगज़ेब को वहमी, वहशी और अत्याचारी पागल क़रार दिया!
दबी ज़ुबान से कहा ये भी जाता है कि वो आज की सिज़ोफ्रेनिया नामक मानसिक बीमारी से पीड़ित था! जिससे बर्बरता उसके भीतर एक शैतान के रूप में आ जाती थी! जिस जानवरी बर्बरता और क्रूरता से उसने अपने भाई दारा शिकोह, सिखों के गुरु तेग बहादुर, गुरु गोविंद सिंह के पुत्रों,मतिदास और दयालदास सहित हज़ारों सिखों की, संभाजी सहित अनेक मराठों की और दक्षिण के योद्धाओं की निर्ममता से हत्याएं कराई.. उससे ही उसका प्रतिशोध से भरा मानसिक पागलपन साबित होता है!
दारा शिकोह बेहद विद्वान, भारतीय दर्शन के ज्ञाता और इन्सानियत से भरे थे! उन्होंने भारतीय वैदिक साहित्य और उपनिषदों का फारसी में अनुवाद किया!
पहले हाथ-पैर बांधकर, बेड़ियों में जकड़कर दारा शिकोह को दिल्ली में हाथी पर घुमाया गया और फिर उसकी गर्दन को उतारकर उसे झांकी जैसा पूरी दिल्ली में नुमाया किया और फिर बाप को दहलाने के लिए थाली में भेंट किया!
मज़हब के नाम पर जो भीषण क़त्लेआम औरंगज़ेब ने किया.. उसकी तुलना सम्राट अशोक , अजातशत्रु और ऊदा( राणा कुम्भा का बेटा) से करना मूर्खता की पराकाष्ठा है!
इस तरह की हत्याएं तो सत्ता संघर्ष और घर के विवाद में पूरी दुनिया में हुई है और तुर्क-मुगल-अफ़गान इतिहास तो इससे भरा पड़ा है!
लेकिन भारत के हज़ारों सालों के इतिहास में
इससे बड़ा मज़हबी दरिंदा भला कौन हो सकता है?
इन्सानों का नहीं,वो दरिंदों का ही आलमगीर था!
दूसरों से तुलना करके भ्रम पैदा करने से औरंगज़ेब ज़ालिम से ज़हीन नहीं हो जाता!
उसकी जोड़ का कोई ज़ालिम नहीं है भारत के इतिहास में!

किन कारणों से भारत बार बार गुलाम बनाया जाता रहा है?

 भारतीय ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम प्रगतिशील छात्रों को यह जानकारी होनी चाहिए कि किन कारणों से भारत बार बार गुलाम बनाया जाता रहा है? वे कौन कौन से प्रमुख नकारात्मक तत्व हैं जो गुलामी का कारण बने और जो घुन की तरह अब भी भारत भूमि को अंदर से खोखला कर रहे हैं? दरसल एक सशक्त राष्ट्र के रूप में यह भूमि हमेशा असुरक्षित रही !

आजादी के पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप का विभाजन क्यों हुआ यह जानकारी भी बिना किसी दुराव छिपाव के नयी पीढ़ियों को दी जानी चाहिए ! इतिहास का विहंगावलोकन। करने पर हम पाते हैं कि:-
1- पुरातन वर्ण व्यवस्था में राष्ट्रवाद का अभाव और अर्वाचींन जातीय संरचना में अस्पृश्यता का विकार उत्पन्न हो जाना!
2-अहिंसा सत्य,अस्तेय,अपरिग्रूह,क्षमा करूँणा ने भारतीय बौद्धिक वर्ग को सदा संतुष्ट ,कायर ,निठल्ला और परजीवी बना डाला!राजे-रजवाड़े,सामंतों,जमींदारों ने समाज को अपना गुलाम बना कर रखा, राष्ट्रीय भावना का लेश मात्र नहीं था!
3-विदेशी आक्रुमणों के समय उनका मुकाबला करने के बजाय भगवान और अवतारवाद के भरोसे बैठे रहे!
4- भौतिकवादी साइंस व युद्ध की नई तकनीक कोई महत्व न देना
5-अध्यात्मवाद और लोक परलोक की फिक्र ज्यादा करना !
6- अतिथि देवो भव :का अंधानुकरण करना !
7- कुछ संत महात्मा कहते चले गए कि:-
अजगर करे ना चाकरी,पंछी करें ना काम।
दास मलूका कह गए,सब के दाता राम।।

गुरुवार, 26 मई 2022

कांग्रेस बरगद के बृक्ष की तरह है ,

 नाममात्र की राजनैतिक समझ रखने वाले नर नारी भी यह मानते हैं कि किसी खास परिवार के भरोसे रहने के कारण ही कांग्रेस की लुटिया डूबी है और लोकतंत्र से महरूम हो गयी है।

कुछ महीनों पहु कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने टवीट किया था कि
''कांग्रेस उस बरगद के बृक्ष की तरह है ,जिसकी छाँव हिन्दू,मुस्लिम ,सिख ,ईसाई सबको बराबर मिलती है,जबकि भाजपा तो जात -धर्म देखकर छाँव देती है। ''
बहुत सम्भव है कि खुद कांग्रेस समर्थक प्रबुद्ध जन ही इस थ्योरी से सहमत नहीं होंगे ! इस विमर्श में भाजपा वालों के समर्थन की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती।उन्होंने ऐंसी साम्प्रदायिक घुट्टी पी रखी है कि जिसके असर से उन्हें 'भगवा' रंग के अलावा 'चढ़े न दूजो रंग '! दरसल शशि थरूर ने अपने ट्वीट में जो कहा वह तो कांग्रेस के विरोधी अर्से से कहते आ रहे हैं। इसमें नया क्या है ? कांग्रेस रुपी नाव में ही छेद करने वाले दलबदलू यह भूल जाते हैं कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस महज एक राजनीतिक पार्टी नहीं,बल्कि एक खास विचारधारा का नाम है।
खैर कांग्रेस की चिंता जब कांग्रेसियों को नहीं तो हमारे जैसे आलोचकों को क्या पड़ी कि व्यर्थ शोक संवेदना व्यक्त करते रहें ! किंतु छ.ग. मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह बघेल जैसे सुलझे हुए कांग्रेसी जब तक सक्रिय हैं,तब तक तो कांग्रेस जीवित रह सकती है।
हिंदी की यह मशहूर कहावत है कि ''बरगद के पेड़ की छाँव में हरी दूब भी नहीं उगा करती '' अर्थात किसी विशालकाय व्यक्ति वस्तु या गुणधर्म के समक्ष नया विकल्प पनप नहीं सकता ! कुछ पुरानी चीजें ऐंसी होतीं हैं कि कोई नई चीज कितनी भी चमकदार या उपयोगी क्यों न हो ,किन्तु फिर भी वह पुरानी के सामने टिक ही नहीं पाती। राजनीति में इसका भावार्थ यह भी है कि कुछ दल या नेता ऐंसे भी होते हैं कि उनकी शख्सियत के सामने नए-नए दल या नेता पानी भरते हैं। उनके इस नैसर्गिक प्रभाव का चुनावी जीत-हार से कोई लेना-देना नहीं।
समाज में उक्त कहावत का तातपर्य यह है कि दवंग व्यक्ति या दवंग समाज के नीचे दबे हुए व्यक्ति या समाज का उद्धार तब तक सम्भव नहीं,जब तक वे उसके आभा मंडल से मुक्त न हो जाए । कांग्रेस का दुर्भाग्य तब तक जारी रहेगा,जब तक वह नेहरु गांधी परिवार को तिलांजलि नही दे देती!
हालाँकि गांधी नेहरू परिवार की उपमा बरगद के पेड़ से करना एक कड़वा सच है,किन्तु कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा राहुल गांधी को पुनः अध्यक्ष बनाये जाने की मांग करना एक बिडंबना है। कांग्रेस के लिए *यह आत्मघाती गोल करने जैसा कृत्य है।
यदि कांगेस को कोई बरगद बताएगा तो कांग्रेस मुक्त भारत की कामना करने वालों की तमन्ना पूर्ण होने में संदेह क्या ? वैसे भी आत्म हत्या करने वाले,गरीब मजदूर किसान वेरोजगार युवा,गरीब छात्र,असामाजिकता से पीड़ित कमजोर वर्ग के नर-नारियों की नजर में कांग्रेस और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलु हैं।
लेकिन मेरी नजर में भाजपा और कांग्रेस में बहुत अंतर् है। भाजपा घोर साम्प्रदायिक दक्षिणपंथी पूँजीवादी पार्टी है,जो मजदूरों अल्पसंख्यकों और प्रगतिशील वैज्ञानिकवाद से घृणा करती है,अम्बानियों-अडानियों माल्याओं की सेवा में यकीन रखती है।
कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष उदारवादी पूंजीवादी पार्टी है। एक खास परिवार के भरोसे रहने के कारण वह लोकतंत्र से महरूम हो गयी है। अल्पसंख्यकों के वोट कबाड़ने के लिए वे हिंदूओं को नाराज करते रहते हैं! इसके निमित्त कांग्रेस वालों को बिना जोर -जबर्जस्ती के जो कुछ मिला उसी में संतोष कर लिया करते हैं ।
उन्होंने ईमानदारी या देशभक्ति का ढोंग भी नहीं किया। देशभक्ति का झूंठा हो हल्ला भी नहीं मचाया। जबकि भाजपा वाले कंजड़ों की भांति दिन दहाड़े डाके डालने में यकीन करते हैं। इसका एक उदाहरण तो यही है कि जब घोषित डिफालटर अडानी को आस्ट्रेलिया में किसी उद्द्य्म के लिए बैंक गारंटी की जरूरत पडी तो एसबीआई चीफ अरुंधति भट्टाचार्य और खुद पीएम भी साथ गए थे। क्या कभी इंदिरा जी राजीव जी या मनमोहन सिंह ने ऐंसा किया ? देश के १०० उद्योगपति ऐंसे हैं जो भारतीय बैंकों के डिफालटर हैं और बैंकों का १० लाख करोड़ रुपया डकार गए हैं । कोई भी लुटेरा पूँजीपति एक पाई लौटाने को तैयार नहीं है ,सब विजय माल्या के बही बंधू हैं। जबकि गरीब किसान को हजार-पांच सौ के कारण बैंकों की कुर्की का सामना करना पड़ रहा है ,आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। मोदी सरकार बिना कुछ किये धरे ही अपने दो साल की काल्पनिक उपलब्धियों के बखान में राष्टीय कोष का अरबों रुपया विज्ञापनों में बर्बाद कर रही है। दलगत आधार पर साम्प्रदायिकता की भंग के नशे में चूर होकर हिंदुत्व के ध्रुवीकरण में व्यस्त हैं ,मदमस्त हैं । जबकि मनु अभिषेक सिंघवी,दिग्गी राजा ,थरूर और अन्य दिग्गज कांग्रेसी केवल आत्मघाती गोल दागने में व्यस्त हैं। कांग्रेस की मौसमी हार से भयभीत लोग भूल रहे हैं कि कांग्रेस ने स्वाधीनता संग्राम का अमृत फल चखा है उसे कोई नष्ट नहीं कर सकता , खुद गांधी ,नेहरू,पटेल भी नहीं ! मोदी जी और संघ परिवार तो कदापि नहीं ! श्रीराम तिवारी

भारतीय संस्कृति V/S पाश्चात्य दर्शन

 मेरा आब्जरवेशन बताता है कि कोई सभ्य सुशिक्षित साहित्यकार,लेखक,कवि अपने लेखन या कथन में यदि कभी मेगास्थनीज‌ फाह्ययान,ह्वेनसांग,जरथ्रुस्त,पायथागोरस कन्फुशियस,लाओत्से,सुकरात,अरस्तु,प्लेटो,

अलबरूनी,गैलिलियो शैक्सपियर, लाओत्से बायरन,नीत्से,दिकार्ते,रूसो,वाल्टेयर हीगेल, मार्क्स,कांट,ग्राम्सी ब्रेख्त,नेरुदा,ज्यां पाल सात्र,जार्ज बर्नार्ड शॉ,या हर्वर्ट स्पेंशर को उद्घरत करता है,तो आम तौर पर उसे प्रगतिशील कहा जाता है!
किंतु यदि वही विचार या ज्ञान कदाचित हम वेद,स्म्रति उपनिषद,आरण्यक, प्रस्थान त्रयी, भगवदगीता,पाणिनी की अष्टाध्याई कौटिल्य या किसी अन्य भारतीय आगम और नैगम ग्रंथ से लिया गया हो, वेदव्यास,बाल्मीकि, कालिदास या किसी भी भाववादी विद्वान से लिया गया हो,तो कुछ लोग उसके प्रमाण पर ही बहस करने लगते हैं या उद्धरण को अवैज्ञानिक और हेय समझते हैं!
क्रूर धर्मांध बर्बर हमलावर शासकों ने,हमारी पूर्ववर्ती समस्त अपार ज्ञान सम्पदा को बार बार जलाया,अविश्वसनीय बनाया! इसके बावजूद कुछ लोग महान भारतीय संस्कृति को हेय और पाश्चात्य दर्शन को आदर्श मान कर चले जा रहे हैं!

यासीन मलिक को उम्रकैद की सजा

 २४ मई २०२२ :- को कोर्ट में आतंकी सरगना यासीन मलिक की सजा मुकर्रर होने जा रही थी,आतंकी के समर्थन में हरामजादे पत्थर फेंक रहे थे!

२५ मई -२०२२:- इस्लामिक आतंकियों ने अमरीन भट और उसके भतीजे को गोलियों से भून डाला । अब सारे पत्थरबाजों को सांप सूंघ गया है, जो कल तक आतंकवाद की पैरवी कर रहे थे,आज एक मासूम की मौत पर वे सब चुप हैं । छि:

यह संभावना सही थी कि हजारों बेकसूर हिंदुओं की हत्या के गुनहगार JKLF नेता यासीन मलिक को फांसी की सजा मिलनी थी! किंतु यासीन मलिक ने बड़ी चतुराई से पहले तो अपना गुनाह कबूल करके जांच एजेंसी का साथ दिया।फिर उसने परोक्षरूप से भारतीय न्यायपालिका पर यकीन जता कर दुनिया को और पाकिस्तान को आईना दिखा दिया कि वह भारतीय न्यायपालिका पर यकीन करता है,मतलब अलगाववादी होना उसकी तात्कालिक नासमझी थी! मजबूरी में ही सही,वह कश्मीर को भारत का अंग मानता है! तभी तो अपने बचाव में उसने दावा किया कि:-
"मैंने भारत के ७ प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है"
तमाम बिंदुओं को मद्देनजर रखते हुए विद्वान न्यायधीश ने यासीन मलिक को उम्रकैद की सजा मुकर्रर करके सही और सामयिक निर्णय दिया! यह फैसला राष्ट्र हित में है।

अवतार हर युग में होते रहे हैं

 सनातनधर्म की परिभाषा में मान्यताओं, विश्वासों,कर्मकांडों का भी समावेश है।

और ये सतत परिवर्तित होती रही हैं क्योंकि परिवर्तन का सनातनता से विरोध नहीं है।जब जब धर्म stagnant हुआ है,उस परमसत्ता ने अवतार लेकर इस stagnant state को खत्म किया है(ऐसा अवतारवादी कहते हैं)।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानि:भवति भारत....तदा आत्मानं सृजामि अहं।।
अवतार हर युग में होते रहे हैं। अंशावतार,कलावतार,
आवेशावतार इत्यादि अवतारत्व के स्तर हैं।समाजसुधारक भी मेरी दृष्टि में अवतार हैं।दूसरे धर्म के लोग इनको पैगंबर बोल देते हैं।इस्लाम अंतिम पैगंबर की बात करता है और सिखधर्म दशम गुरु की बात करता है-ये मान्यताएं truth of evolution के अनुरूप नहीं हैं।

बुधवार, 18 मई 2022

जमदूत बुलाने वाले हैं।

 बाकई मेरे देश के अच्छे दिन आने वाले हैं।

नेता आसमान से तारे तोड़कर लाने वाले हैं।
छल कपट से चुनाव जीतने वाले ढ़पोरशंखी,
सात-रेसकोर्स से जादुई छड़ी घुमाने वाले हैं।
समर्थक खुशहैं कि होंगे खुशहाल मालामाल,
नंगे-भूंखे -निर्धन सब 'अडानी' होने वाले हैं।
कोई नहीं करता शिकायत अब भृष्टाचार की,
क्योंकि रिश्वतखोर खुद सत्तामें आने वाले हैं।
अब कौन बचाएगा महिलाओं अबलाओं को,
जब रक्षक ही भक्षक सत्ता में चढ़ने वाले हैं।
अब झंझट नहीं महंगाई-बेकारी जीवनरक्षा की,
जीवन संध्या वेला में जमदूत बुलाने वाले हैं।
जगाई थी आशा 'इंकलाब' की बरसों पहले जिनने
उनके सिद्धांत नीतियां हम कहाँ समझने वाले हैं।

ज्ञानवापी मस्जिद में मिले साक्ष्य पर आपकी क्या राय है?

 एक मित्र ने पूछा है कि ज्ञानवापी मस्जिद में मिले साक्ष्य पर आपकी क्या राय है?

तत्संबंधी प्रकरण में मेरा अभिमत है कि जिस तरह नर्मदा का हर कंकड़ शिवस्वरूप मान्य है,उसी तरह काशी बनारस का कण कण विश्वनाथस्वरूप ही है।कथित ज्ञानवापी मस्जिद वजू दायरेमें पर्यवेक्षकों को जो मुख्य पाषाण आकृति मिली उसका फैसला तो *आर्किलाजिकल सर्व आफ इंडिया* और माननीय न्यायालय ही करेंगे।किंतु इतना तो कोई भी कह सकता है कि जहां नंदी जी विराजमान हैं, जहां मां गौरी और पूरा शिव परिवार मौजूद हैं,वहां शिव शंकर मौजूद न हों यह असंभव है। मंदिर भंजकों ने या तो शिवलिंग तोड़ दिया है,या मुस्लिम बिरादरी जिसे फब्बारा बता रही है,वही खंडित अवशेष बाबा विश्वनाथ है। इसके अलावा वहां मिले अन्य साक्ष्य चीख चीखकर कह रहे हैं कि काले अतीत के दौर में ज्ञानवापी मस्जिद निश्चित ही बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़कर बनाई गई है।

मूर्तिभंजकों की नियत अजीब है

 आतंकी जाहिल हैं और हिंदू दयालु जीव है!

भारत में साम्प्रदायिक दौर बड़ा बदनसीब है!!
दुष्टों ने लूटा हर मंदिर किया ध्वस्त भारत,
जाहिल मूर्तिभंजकों की नियत अजीब है!!
नापाक इरादों से लैश बर्बर कौम के वंशज
दिल दिमाग जिनका विनाश के करीब है !
देशने लुटाये अरबों कष्मीर के विकास पर,
हरामखोर पत्थरबाजों की हरकतें अजीब है !!

सोमवार, 16 मई 2022

"कोउ न काउ सुख दुःख कर दाता!

 क छोटे मोटे अनुमान के अनुसार दुनिया के 70% 'साइंस के आविष्कार' भौतिकवादी 'नास्तिक' वैज्ञानिकों ने ही किये हैं! नास्तिकों द्वारा ईजाद किए गए तमाम आविष्कारों का उपयोग/दुरुपयोग आस्तिक बंधुऔं को कत्ई नही करना चाहिए! यदि नास्तिकों द्वारा ईजाद विद्युत ऊर्जा, टेलिकॉम, टेलीविजन रेल,बस मोटर और तमाम ऐलोपैथिक/होम्योपैथिक दवाएं आप इस्तेमाल करते हैं, तो आपको अपनी आस्तिकता पर इतराने का हक नहीं।

दुनिया के 10% वैज्ञानिक आविष्कार यहूदी धर्मावलंबी वैज्ञानिकों ने किये हैं! लगभग 10% वैज्ञानिक आविष्कार ईसाई सांइस्टिटों ने किये हैं! 5% आविष्कार वैदिक आर्यों ने किये हैं, २% आविष्कार बौद्ध जैन विद्वानों ने और 2% आविष्कार दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों ने किये हैं ‌। बाकी 1% आविष्कार, दुर्घटनावश/संयोगवश हो गए- जैसै न्यूटन के समक्ष सेवफल के गिरने से गुरुत्वाकर्षण का आविष्कार या चाय की केतली के ढक्कन उचटने से जार्ज स्टीवेंशन को भाप की ताकत का पता चलना।
जो लोग कहते हैं कि दुनिया की सारी खोजों का श्रेय उनके पूर्वजों को जाता है,वे जाहिल अपने ग्रेवान में झांक कर देखें कि उनके पूर्वजों ने दुनिया भर में घोर कत्लेआम,लूट मचाने-मंदिर,गुरुद्वारा,चर्च तोड़ने, हरम में हरामखोरी अय्याशी करने,मकबरे बनाने, तवारीख में अपनी तारीफ लिखाने और आवाम को लूटने के अलावा कुछ भी नहीं किया !
जो हिंदुत्ववादी हैं वे हनुमान जी और गणेश जी के सपने देखना बंद करें! इनके होने या न होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता! और आज उनमें से कोई सामने आकर खड़े भी हो गए तो भी इनकी कोई उपयोगिता शेष नहीं है! सिर्फ अपनी पूंछूं व सूंड हिलाने के सिवा वे कुछ नहीं कर सकते!अब तो जो करना है इंसान को ही करना है, क्योंकि बाबा तुलसीदास भी यही कह गये हैं कि
"कोउ न काउ सुख दुःख कर दाता!
निज कृत कर्म भोग सब भ्राता!!
धर्मांधता का जोर लगाकर आर्य मुस्लिम हिंदु,सिख ईसाई,बौद्ध और जैन अतीत में कभी न कभी गौरवान्वित हो चुके हैं! अब वक्त आ गया है कि मजहबी अतीत का मोह छोड़ कर कानून के राज की छतरी के नीचे आ जाएं और संवैधानिक तौर तरीकों से अपने अपनेे काम धंधे पर लग जाएं...
इतिहास निरंतर गतिशील है,जो कौम कभी हमलावर और डॉमिनेंट हुआ करती है, वक्त आने पर वो रक्षात्मक होने लगती है। इसी तरह इतिहास में जिस किसी कौम का कभी उत्पीड़न-दमन हुआ होता है, वह ताकतवर होकर शासक की भूमिका में होती है, वह अतीत के दुर्दिनों को याद रखते हुए अपने अस्मिता स्वाभिमान और सम्मान को पुनः स्थापित करते हुए रिजुवनेट करता है।#ज्ञानवापी विवाद

इंसान को ही करना है,

 एक छोटे मोटे अनुमान के अनुसार दुनिया के 70% 'साइंस के आविष्कार' भौतिकवादी 'नास्तिक' वैज्ञानिकों ने ही किये हैं! नास्तिकों द्वारा ईजाद किए गए तमाम आविष्कारों का उपयोग/दुरुपयोग आस्तिक बंधुऔं को कत्ई नही करना चाहिए! यदि नास्तिकों द्वारा ईजाद विद्युत ऊर्जा, टेलिकॉम, टेलीविजन रेल,बस मोटर और तमाम ऐलोपैथिक/होम्योपैथिक दवाएं आप इस्तेमाल करते हैं, तो आपको अपनी आस्तिकता पर इतराने का हक नहीं।

दुनिया के 10% वैज्ञानिक आविष्कार यहूदी धर्मावलंबी वैज्ञानिकों ने किये हैं! लगभग 10% वैज्ञानिक आविष्कार ईसाई सांइस्टिटों ने किये हैं! 5% आविष्कार वैदिक आर्यों ने किये हैं, २% आविष्कार बौद्ध जैन विद्वानों ने और 2% आविष्कार दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों ने किये हैं ‌। बाकी 1% आविष्कार, दुर्घटनावश/संयोगवश हो गए- जैसै न्यूटन के समक्ष सेवफल के गिरने से गुरुत्वाकर्षण का आविष्कार या चाय की केतली के ढक्कन उचटने से जार्ज स्टीवेंशन को भाप की ताकत का पता चलना।
जो लोग कहते हैं कि दुनिया की सारी खोजों का श्रेय उनके पूर्वजों को जाता है,वे जाहिल अपने ग्रेवान में झांक कर देखें कि उनके पूर्वजों ने दुनिया भर में घोर कत्लेआम,लूट मचाने-मंदिर,गुरुद्वारा,चर्च तोड़ने, हरम में हरामखोरी अय्याशी करने,मकबरे बनाने, तवारीख में अपनी तारीफ लिखाने और आवाम को लूटने के अलावा कुछ भी नहीं किया !
जो हिंदुत्ववादी हैं वे हनुमान जी और गणेश जी के सपने देखना बंद करें! इनके होने या न होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता! और आज उनमें से कोई सामने आकर खड़े भी हो गए तो भी इनकी कोई उपयोगिता शेष नहीं है! सिर्फ अपनी पूंछूं व सूंड हिलाने के सिवा वे कुछ नहीं कर सकते!अब तो जो करना है इंसान को ही करना है, क्योंकि बाबा तुलसीदास भी यही कह गये हैं कि
"कोउ न काउ सुख दुःख कर दाता!
निज कृत कर्म भोग सब भ्राता!!
धर्मांधता का जोर लगाकर आर्य मुस्लिम हिंदु,सिख ईसाई,बौद्ध और जैन अतीत में कभी न कभी गौरवान्वित हो चुके हैं! अब वक्त आ गया है कि मजहबी अतीत का मोह छोड़ कर कानून के राज की छतरी के नीचे आ जाएं और संवैधानिक तौर तरीकों से अपने अपनेे काम धंधे पर लग जाएं...
जय भारत...

हिंदुओं के पवित्र स्थल उनके हवाले कर दें

 "यदि कोई व्यक्ति किसी बाह्य कारण से परेशान है,तो परेशानी उस कारण से नहीं जिसे वो समझ रहा है,अपितु उसके द्वारा तत्संबंधी तथ्य का गलत अनुमान लगाने से होती है हम भूल जाते हैं कि हमारे पास इसे किसी भी क्षण बदलने का सामर्थ्य है।"इसमें कोई शक नहीं कि अतीत में हजारों हिंदु मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गई हैं ! किंतु उस घातक दौर के लिए आज की वह मुस्लिम बिरादरी जिम्मेदार नहीं है, जो भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में 'गंगा जमुनी तहजीब' का सम्मान करती है।

मुस्लिम बंधुओं को चाहिए कि वे इस सत्य को स्वीकार कर लें कि मध्ययुगीन खूंखार बर्बर इस्लामिक हमलों के दौरान हजारों हिंदू मंदिर तोडे़ गए‌ और करोड़ों हिंदू मारे गए ।‌‌ अतः हर बात का विरोध करने के बजाय, खुद ही आगे आकर काशी,मथुरा,धार जैसे कुछेक विवादास्पद धर्मस्थलों का मोह छोड़ कर हिंदुओं के पवित्र स्थल उनके हवाले कर दें । तभी भारत में अमन चैन कायम हो सकेगा। धरोहर के रूप में भावी पीढ़ियों के लिये इतना तो वे कर ही सकते हैं।

शुक्रवार, 13 मई 2022

ये कम तो नहीं

 जो भी चाहा वो नहीं मिला ,

फिर भी कोई कोई गम नहीं है!
बिना किसी वैशाखी के चले,
यह भी कुछ कम तो नहीं है !!
कदम जब भी आगे बढ़े और
अनजानी राहों पर तन्हा चले,
कई बार ठोकरें भी खाईं होंगी,
जिंदा बचे रहे ये कम तो नहीं है!
संकल्पों की ऊँची उड़ानों पर
बज्रपात हुआ बार-बार गिरे-उठे,
पर हौसले बुलंद रख्खे हमेशा
हार नहीं मानी ये कम तो नहीं है!!
वक्त ने जब जो चाहा करवाया
जमाने ने जमकर कहर बरपाया ,
जद्दोजहद में इंसानियत नहीं भूले
बंधु!यह भी कुछ कम तो नहीं है!
अब हवा ने ऐंसा रुख बदला है,
कि मन बाकई कुछ डरने लगा है ,
अब यदि पत्ता भी खडकता है तो,
चौंक उठता हूँ कि कोरोना तो नही है!!
श्रीराम तिवारी

सोते हुये जागते रहैं

 मानव अधिकार आ्योग को तब भी तो कानून और न्याय की दुहाई देनी चाहिये, जब जम्मू कश्मीर में सरेराह वेचारे 'निर्बल' पुलिस वालों की कुछ आतंकी तत्व हत्या कर देते हैं जब यूपी में सत्तापक्ष के नेता,सरे आम किसानों पर कार चढ़ा देते हैं,मार कुटाई करते रहते हैं ! एतद द्वारा भारत के हर आम ओ खास को सूचित किया जाता है कि वह बहरहाल पुलिस और व्यवस्था के भरोसे ना रहे !क्योंकी इन दिनों पुलिस वाले विभाग और आर्मी वाले खुद संकट में हैं !वे कभी नक्सलवादियों के हाथों,कभी मज़हबी आतंकियों, कभी पथ्थरबाजों के हाथों,कभी भ्रस्ट दबंग नेताओं के हाथों मारे जाते हैं।

मेरे शहर इन्दौर में तो आये दिन मामूली चोरों,प्यार मोहब्बतमें असफल असामाजिक तत्वों के हाथों जिंदा जलाऐ रहे हैं !
इसीलिये एतद द्वारा जन साधारण को और आम जन को आगाह किया जाता है ‌कि‌‌ वे सोते हुये भी जागते रहैं !