एक छोटे मोटे अनुमान के अनुसार दुनिया के 70% 'साइंस के आविष्कार' भौतिकवादी 'नास्तिक' वैज्ञानिकों ने ही किये हैं! नास्तिकों द्वारा ईजाद किए गए तमाम आविष्कारों का उपयोग/दुरुपयोग आस्तिक बंधुऔं को कत्ई नही करना चाहिए! यदि नास्तिकों द्वारा ईजाद विद्युत ऊर्जा, टेलिकॉम, टेलीविजन रेल,बस मोटर और तमाम ऐलोपैथिक/होम्योपैथिक दवाएं आप इस्तेमाल करते हैं, तो आपको अपनी आस्तिकता पर इतराने का हक नहीं।
दुनिया के 10% वैज्ञानिक आविष्कार यहूदी धर्मावलंबी वैज्ञानिकों ने किये हैं! लगभग 10% वैज्ञानिक आविष्कार ईसाई सांइस्टिटों ने किये हैं! 5% आविष्कार वैदिक आर्यों ने किये हैं, २% आविष्कार बौद्ध जैन विद्वानों ने और 2% आविष्कार दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों ने किये हैं । बाकी 1% आविष्कार, दुर्घटनावश/संयोगवश हो गए- जैसै न्यूटन के समक्ष सेवफल के गिरने से गुरुत्वाकर्षण का आविष्कार या चाय की केतली के ढक्कन उचटने से जार्ज स्टीवेंशन को भाप की ताकत का पता चलना।
जो लोग कहते हैं कि दुनिया की सारी खोजों का श्रेय उनके पूर्वजों को जाता है,वे जाहिल अपने ग्रेवान में झांक कर देखें कि उनके पूर्वजों ने दुनिया भर में घोर कत्लेआम,लूट मचाने-मंदिर,गुरुद्वारा,चर्च तोड़ने, हरम में हरामखोरी अय्याशी करने,मकबरे बनाने, तवारीख में अपनी तारीफ लिखाने और आवाम को लूटने के अलावा कुछ भी नहीं किया !
जो हिंदुत्ववादी हैं वे हनुमान जी और गणेश जी के सपने देखना बंद करें! इनके होने या न होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता! और आज उनमें से कोई सामने आकर खड़े भी हो गए तो भी इनकी कोई उपयोगिता शेष नहीं है! सिर्फ अपनी पूंछूं व सूंड हिलाने के सिवा वे कुछ नहीं कर सकते!अब तो जो करना है इंसान को ही करना है, क्योंकि बाबा तुलसीदास भी यही कह गये हैं कि
"कोउ न काउ सुख दुःख कर दाता!
निज कृत कर्म भोग सब भ्राता!!
धर्मांधता का जोर लगाकर आर्य मुस्लिम हिंदु,सिख ईसाई,बौद्ध और जैन अतीत में कभी न कभी गौरवान्वित हो चुके हैं! अब वक्त आ गया है कि मजहबी अतीत का मोह छोड़ कर कानून के राज की छतरी के नीचे आ जाएं और संवैधानिक तौर तरीकों से अपने अपनेे काम धंधे पर लग जाएं...
जय भारत...
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