गुरुवार, 26 मई 2022

भारतीय संस्कृति V/S पाश्चात्य दर्शन

 मेरा आब्जरवेशन बताता है कि कोई सभ्य सुशिक्षित साहित्यकार,लेखक,कवि अपने लेखन या कथन में यदि कभी मेगास्थनीज‌ फाह्ययान,ह्वेनसांग,जरथ्रुस्त,पायथागोरस कन्फुशियस,लाओत्से,सुकरात,अरस्तु,प्लेटो,

अलबरूनी,गैलिलियो शैक्सपियर, लाओत्से बायरन,नीत्से,दिकार्ते,रूसो,वाल्टेयर हीगेल, मार्क्स,कांट,ग्राम्सी ब्रेख्त,नेरुदा,ज्यां पाल सात्र,जार्ज बर्नार्ड शॉ,या हर्वर्ट स्पेंशर को उद्घरत करता है,तो आम तौर पर उसे प्रगतिशील कहा जाता है!
किंतु यदि वही विचार या ज्ञान कदाचित हम वेद,स्म्रति उपनिषद,आरण्यक, प्रस्थान त्रयी, भगवदगीता,पाणिनी की अष्टाध्याई कौटिल्य या किसी अन्य भारतीय आगम और नैगम ग्रंथ से लिया गया हो, वेदव्यास,बाल्मीकि, कालिदास या किसी भी भाववादी विद्वान से लिया गया हो,तो कुछ लोग उसके प्रमाण पर ही बहस करने लगते हैं या उद्धरण को अवैज्ञानिक और हेय समझते हैं!
क्रूर धर्मांध बर्बर हमलावर शासकों ने,हमारी पूर्ववर्ती समस्त अपार ज्ञान सम्पदा को बार बार जलाया,अविश्वसनीय बनाया! इसके बावजूद कुछ लोग महान भारतीय संस्कृति को हेय और पाश्चात्य दर्शन को आदर्श मान कर चले जा रहे हैं!

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