सनातनधर्म की परिभाषा में मान्यताओं, विश्वासों,कर्मकांडों का भी समावेश है।
और ये सतत परिवर्तित होती रही हैं क्योंकि परिवर्तन का सनातनता से विरोध नहीं है।जब जब धर्म stagnant हुआ है,उस परमसत्ता ने अवतार लेकर इस stagnant state को खत्म किया है(ऐसा अवतारवादी कहते हैं)।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानि:भवति भारत....तदा आत्मानं सृजामि अहं।।
अवतार हर युग में होते रहे हैं। अंशावतार,कलावतार,
आवेशावतार इत्यादि अवतारत्व के स्तर हैं।समाजसुधारक भी मेरी दृष्टि में अवतार हैं।दूसरे धर्म के लोग इनको पैगंबर बोल देते हैं।इस्लाम अंतिम पैगंबर की बात करता है और सिखधर्म दशम गुरु की बात करता है-ये मान्यताएं truth of evolution के अनुरूप नहीं हैं।
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