जम्मू कश्मीर अनंतनाग,जोधपुर में आज हिंसा फैलाने वाले दंगाईयों के तेवर देखकर कोई भी भारतीय असहज हो सकता है । दुनिया में आमतौर पर मुस्लिमों को छोड़कर कोई भी हिंदू सिख,ईसाई बौद्ध, जैन,पारसी यहूदी धर्मावलंबी अपने खुद के धर्म में कट्टर नही होता!और न ही वह दूसरे धर्मावलंबियों के खिलाफ कोई षडयंत्र रचता है और न ही घटिया विषवमन करता है! और कोई इनको कट्टरपंथी सांप्रदायिक नही कहता,क्योंकि वे सहज रूप से धर्मनिरपेक्ष ही हैं!
किंतु जब इस्लामिक आतंकवाद,जैहाद का सैलाब आता है और कसाब जैसे कसाइयों द्वारा निर्दोष हिंदू,जैन, बौद्घ,पारसी,यहूदी मारे जाते हैं, जगह जगह पत्थरबाज और जमाती जुटने लगते हैं,तो तमाम धर्मनिरपेक्ष जनतंत्रात्रिक शांति प्रेमी जनता भी मजबूर होकर अपने अपने धर्म मजहब की शरण में जाकर कट्टरपंथी होने लग जाती है!
धर्मनिरपेक्ष परिवारों में जन्मा हर व्यक्ति जब मुसलमानों की तरह अपने धर्म मजहब को सड़क पर लाता है,धर्मांध भीड़ जुटाता है तब जमाती मरकजी बहाबी तबलीगी लोगों में और इन अहिंसक धर्मावलंबियों में कोई फर्क नही रह जाता है! इन सभी कट्टरपंथी गुटों और समाजों को अमन और शांति का संदेश देने वाले पढ़े लिखे लोगों को दुनिया में 'धर्मनिरपेक्षतावादी' कहा जाता है!
जब कोई ठीक ठाक पढ़ लिख जाता है,विश्व स्तरीय साइंस,लोकतंत्र और मानव समाज के वैज्ञानिक विकास को समझने लगता है, तो वह खुद को मजहबी/धार्मिक पक्षधरता से मुक्तकर 'धर्मनिरपेक्षता' के सिद्धांत का कायल हो जाता है! जब कुछ फासिस्ट और जमाती लोग मजाक में या उपेक्षापूर्ण स्वर में इन्हें 'सेक्युलर' से शब्द से संबोधित करते हैं,तो बड़ी कोफ्त होती है!
किंतु जब कोई मुल्क सऊदी अरब,बेटिकन और इजरायल की तरह साम्प्रदायिक होकर उन्नति करता है और भारत जैसा विशाल देश लोकतंत्र धर्मनिरपेक्षता के मार्ग पर चलकर आंतरिक कलह से ग्रस्त रहता है,तो लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता पर सवाल उठने लगते हैं! ऐंसी विषम परिस्थितियों में फासिस्टों द्वारा धर्मनिरपेक्ष व्यक्तियों और संगठनों पर देशद्रोह के आरोप भी लगने लगते हैं!
इस ओर ध्यान देने के बजाय अरुंधती राय जैसे लेखक लेखिकाएं,नकली धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवी और कुछ विपक्षी नेता एवं दल साम्प्रदायिकता की धधकती आग में घी डालने का काम करते रहते हैं!हिंदू सिख,ईसाई बौद्ध,जैन,पारसी धर्मावलंबी अपने खुद के धर्म में कट्टर नही होता!और न ही वह दूसरे धर्मावलंबियों के खिलाफ कोई षडयंत्र रचता है और न ही घटिया विषवमन करता है! और कोई इनको कट्टरपंथी सांप्रदायिक नही कहता,क्योंकि वे सहज रूप से धर्मनिरपेक्ष ही हैं!
किंतु जब इस्लामिक आतंकवाद,जैहाद का सैलाब आता है और कसाब जैसे कसाइयों द्वारा निर्दोष हिंदू,जैन, बौद्घ,पारसी,यहूदी मारे जाते हैं, जगह जगह पत्थरबाज और जमाती जुटने लगते हैं,तो तमाम धर्मनिरपेक्ष जनतंत्रात्रिक शांति प्रेमी जनता भी मजबूर होकर अपने अपने धर्म मजहब की शरण में जाकर कट्टरपंथी होने लग जाती है!
धर्मनिरपेक्ष परिवारों में जन्मा हर व्यक्ति जब मुसलमानों की तरह अपने धर्म मजहब को सड़क पर लाता है,धर्मांध भीड़ जुटाता है तब जमाती मरकजी बहाबी तबलीगी लोगों में और इन अहिंसक धर्मावलंबियों में कोई फर्क नही रह जाता है! इन सभी कट्टरपंथी गुटों और समाजों को अमन और शांति का संदेश देने वाले पढ़े लिखे लोगों को दुनिया में 'धर्मनिरपेक्षतावादी' कहा जाता है!
जब कोई ठीक ठाक पढ़ लिख जाता है,विश्व स्तरीय साइंस,लोकतंत्र और मानव समाज के वैज्ञानिक विकास को समझने लगता है, तो वह खुद को मजहबी/धार्मिक पक्षधरता से मुक्तकर 'धर्मनिरपेक्षता' के सिद्धांत का कायल हो जाता है! जब कुछ फासिस्ट और जमाती लोग मजाक में या उपेक्षापूर्ण स्वर में इन्हें 'सेक्युलर' से शब्द से संबोधित करते हैं,तो बड़ी कोफ्त होती है!
किंतु जब कोई मुल्क सऊदी अरब,बेटिकन और इजरायल की तरह साम्प्रदायिक होकर उन्नति करता है और भारत जैसा विशाल देश लोकतंत्र धर्मनिरपेक्षता के मार्ग पर चलकर आंतरिक कलह से ग्रस्त रहता है,तो लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता पर सवाल उठने लगते हैं! ऐंसी विषम परिस्थितियों में फासिस्टों द्वारा धर्मनिरपेक्ष व्यक्तियों और संगठनों पर देशद्रोह के आरोप भी लगने लगते हैं!
इस ओर ध्यान देने के बजाय अरुंधती राय जैसे लेखक लेखिकाएं,नकली धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवी और कुछ विपक्षी नेता एवं दल साम्प्रदायिकता की धधकती आग में घी डालने का काम करते रहते हैं!
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