जबसे होश संभाला,राजनीति का ककहरा जाना,तबसे लेकर अब उम्र के इस पड़ाव पर और आजादी के अमृत महोत्सव तक, मैंने विगत आधी शताब्दी तक कांग्रेस को कभी भी सम्मान की नजर से नही देखा ! जब कभी कांग्रेस हारी तो मुझे कोई अफसोस नही हुआ !
लेकिंन जब देखा कि कुछ भ्रस्ट अवसरवादी कांग्रेसी दलबदलू सांप्रदायिक तत्वों के साथ गलबहियां डाले सत्ताधारियों के चरण छू रहे हैं,सौहाद्र नष्ट कर रहे हैं,लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया का मज़ाक उड़ा रहे हैं, तो मेरे मन में उन सभी शेष बचे खुचे जीवट कांग्रेसियों के प्रति सम्मांन का भाव उत्पन्न हो गया जो बुरे दिनों में भी शिद्दत से कांग्रेस पार्टी का झंडा थामे हुए हैं !
भले ही कांग्रेस अभी कुछ साल तक केंद्र की सत्ता में न आ सके,भले ही कांग्रेस के इससे भी बुरे दिन आ जाएं,किन्तु प्रशांत किशोर की तरह मेरा भी मानना है कि भारतीय लोकतंत्र तभी तक अक्षुण है,जब तक विपक्ष मजबूत है! कांग्रेस के बिना राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत विपक्ष की संभावनाएं दूर दूर तक नजर नहीं आ रही है!
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि गांधी नेहरु परिवार कबतक सर्वाइव करता है?किंतु जब तक कांग्रेस का एक भी कार्यकर्ता जीवित है,तब तक सत्ता में विराजमान अमीरों के चौकीदार अपनी कोई मनमानी नहीं कर सकेंगे! वे भले ही विकास और हिंदुत्व के नाम पर आगामी १५-२० साल तक सत्ता में बनें रहें,किंतु लोकतंत्र अक्षुण रहेगा! कांग्रेस का हारना और पुनः सत्ता में आना भारतीय लोकतंत्र की अवश्यंभावी नियति है!यही वजह है कि भारत में फासिज्म के चांसेज बहुत कम हैं! लोकतंत्र फलेगा फूलेगा।
जय हिंद ... श्रीराम तिवारी
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