विगत वर्ष अमेरिकी प्रेसीडेंट इलेक्शन के दौरान हारते हारते; ट्रम्प महोदय ने आरोप लगाया था कि "उन्हें हराने में,डेमोक्रेट्स के साथ साथ*वामपंथ और रूस का विशेष हाथ है!" अर्थात डेमोक्रेट्स *जो बायडेन* वामपंथी हैं! अभी फ्रांस में संपन्न राष्ट्रपति चुनाव में विजयी वामपंथी राष्ट्रपति मेक्रान ने जीत का जश्न पूरा भी नही किया; कि यूके से खबर आई कि स्थानीय निकाय के चुनाव में कंजरवेटिव हार रहे हैं और लेबर पार्टी * याने वामपंथी जीत रहे हैं या जीत की ओर अग्रसर है। इससे पहले,उरुग्वे,बेनेजुएला या अन्य लातिनी अमेरिकी देशों के चुनाव में भी वामपंथ की जीत हुई है ! लेकिन भारत के गोदी मीडिया को इनसे कोई सरोकार नहीं; वो तो मंदिर -मस्जिद,हनुमान चालीसा, नमाज़ अजान और भोंगे में अटका हुआ है!
सोवियत संघ विघटन के उपरांत विश्व एक धुव्रीय हो गया ! टूटे फूटे रुसी फेडरेशन को अमरीका,यूरोप और दुनिया भर के दक्षिण पंथी,पूंजीवादी,नव उपनिवेशवादी राष्ट्रों ने सताना नही छोड़ा। अमरीका ने रुस से टूट कर अलग हुए देशों को लोभ लालच से नाटो के झंडे तले भेला किया! जब रुस के सब्र का बांध टूट गया,तब ब्लादिमिर पुतिन का रौद्र रूप सारी दुनिया पर भारी पड़ गया? पुतिन (रूस) ने जैलेंस्की की उद्दंडता का दंड न केवल युक्रेन को दिया; बल्कि परोक्ष रूप से सारी दुनिया को मुसीबत में डाल दिया! इतनी भयंकर बर्बादी के उपरांत यह तय हो गया कि दुनिया अभी भी दो धुर्वीय है! एक दक्षिणपंथी अमेरिकन + यूरोपीय ध्रुव ,दूसरा रूसी फेडरेशन+ चीन का वामपंथी ध्रुव ! अब पुनः सारी धरती दो धुर्वों में बट गई है !
मौजूदा परिदृश्य में भारत की भूमिका बेशक काबिले तारीफ़ रही है! किंतु यह भविष्य के गर्भ में छिपा है कि दोनों ध्रुवों को साधने में मोदी जी सफल रहे कि नहीं !
प्रस्तुत संदर्भ के प्रभाव और आधुनिक विश्व की राजनीतिक समालोचना और क्रांतिकारी विचारधारा,उसकी प्रासंगिकता के मद्देनजर हमारे भारतीय मनीषियों ने अतीत में जो योगदान दिया,प्रगतिशील वामपंथी-साहित्य को जो सम्मान दिया वह काबिले तारीफ है!
बेशक दुनिया के इस अंतर्राष्ट्रीय राजनैतिक घटना विकास का श्रेय वामपंथ को भी जाता है ! किंतु भारत में इसका श्रेय सामन्तयुगींन भक्तिकालीन सौंदर्य साहित्य को भी मिलना चाहिए। हालांकि साम्यवादी दर्शन भी उतना ही पुरातन है जितनाकी महाकाव्योंका भक्ति और दर्शन। इसलिए दोनों ही समान रूप से आदरणीय ,पठनीय और अनुकरणीय है। भाववादी महाकाव्य साहित्य सृजन न केवल भव्य है अपितु वह निरंतर अनुशीलन योग्य भी है। वह किसी भी कोण से प्रतिक्रांतिकारी और यथास्थितिवादि नहीं है। अपितु किसी भी आसन्न क्रांति चेतना के लिए यह जीवंत साहित्य तो पूर्वपीठिका की तरह ही सर्वकालिक है। स्वामी विवेकानंद ,स्वामी श्रद्धानन्द,लाला लाजपत राय , काजी नजरूल इस्लाम ,रवींद्रनाथ टेगोर,अरविंदो ,ईएमएस नम्बूदरीपाद ,श्रीपाद डांगे,राहुल सांकृत्यायन ,बाबा नागार्जुन ,निराला ,राम विलास शर्मा इत्यादि ने भारतीय महाकाव्यों का गहन अध्यन किया था। इन सभी को यूरोप की वैज्ञानिक और भौतिक क्रांतियों का भी पर्याप्त ज्ञान था। यही वजह है कि ये सभी सिर्फ मार्क्सवाद के विद्वान ही नहीं अपितु निर्विवाद रूप से स्वतंत्र भारत के पथप्रदर्शक भी माने जाते हैं।
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