शुक्रवार, 13 मई 2022

दिग्भर्मित भीड़ का जनादेश:-

लोकतंत्र में चुनावी राजनीति के चोंचले,

आपसी छींटाकशी धूर्तो की चालाकी है!
न्याय आधारित वास्तविक स्वराज और
समाजवाद की स्थापना अभी बाकी है !
भारतके भाल पर लिखी है जुल्मों की दास्तां,
विश्व पटल पर प्रकाशित होना अभी बाकी है!
अनेकों तूफानी लहरों,आँधियों,सुनामियों के,
साथ बर्बादियों का हिसाब अभी बाकी है!
जाति धर्म मजहब के आधार को ध्वस्त कर,
सिस्टम आर्थिक आधार पर बनाना बाकी है!
दिग्भर्मित भीड़ को भेड़िया धसान न बनाएं,
क्यों कि मनुष्य में बौद्धिक विकास बाकी है।
जब तक होता रहेगा मानव मूल्यों का पतन,
तब तक जाति धर्म की पूँछ -परख बाकी है!
फासिज्म की पदचाप सुनाई दे जब कभी,
समझो बलिदानों की कीमत अभी बाकी है!
हो सकता है यह वैचारिक परिकल्पना हो,
बेशक सैद्धांतिक अनुप्रयोग अभी बाकी है !
मानव संवेदनाओं के बरक्स कुछ खास बातें,
और कानून का राज भारतमें अभी बाकी है!
गंगा जमुनी तहजीब धर्म निरपेक्षता और
सहिष्णुता का विस्तार होना अभी बाकी है!
आँधियाँ मगरूर दरख्तों को गिरा सकतीं हैं,
उनका कुछ न बिगड़ेगा जिनमें लचक बाकी है।
:-श्रीराम तिवारी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें