शुक्रवार, 13 मई 2022

मुझे मार्क्स क्यों पसंद है ?

 मेरे कुछ मित्रों,शुभचिंतकों का अरसे से एक मूक प्रश्न रहा है कि श्रीराम तिवारी जी आप सनातनी हिंदू हैं,आपको भारतीय दर्शन परंपरा और अध्यात्म में रुचि है,फिर आप को मार्क्स क्यों पसंद है?

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मेरा ज़बाब:-
१. मार्क्स यह कहने का साहस देता है कि गलती को मानो और सुधार करो !
२. मार्क्स कुछ नया सोचने-समझने की दृष्टि देता है!
३. मार्क्स जागतिक विवेक और वैज्ञानिक दृष्टि देता है!
४. मार्क्स वैज्ञानिक आविष्कारों को मानव कल्याण का नजरिया देता है !
५. मार्क्स बिना प्रमाणों के बात नहीं करता और बिना तर्क-सबूत के बात को मानने की हिमायत नहीं करता !
६. मार्क्स बताता है कि सही क्या है और गलत क्या है और इसे सबूत से साबित करता है !
७. मार्क्स दुनिया की बिडम्बनाओं की बात नहीं करता - वह दुनिया को बदलने की बात करता है ! क्योंकि आज तक कोई दर्शन दुनिया को नहीं बदल सका और न किसी धर्म दर्शन ने बदलने की बात की !
८. मार्क्स सामाजिक इतिहास का विश्लेषण करता है और उसके आधार पर भविष्य का रास्ता दिखाता है - आप उस पर चलें या न चलें समाज और इतिहास अपना रास्ता बनाता चलता है - ठीक उसी तरह जैसे नदी अपना रास्ता बनाती है और उसका आधार पानी होता है - समाज का आधार अर्थ-तंत्र होता है जो विकसित होता चलता है, अपना रूप बदलता चलता है और समाज के रूप को बदलता चलता है !
९. मार्क्स दिमाग को साफ करता है और इतिहास के कचरे को बाहर निकाल फेंकता है - इसीलिये मार्क्स के यहाँ समझ का द्वंद्व नहीं है,क्योंकि वह खुद हर चीज को द्वंद्वात्मकता में परखता है, जांचता है, प्रमाणों-सबूतों की कसौटी पर कसता है और तब बात करता है !
१०. मार्क्स ने किसी भी भारतीय उदात्त धर्म दर्शन,वेद,उपनिषद,आगम,निगम अथवा वेदांत दर्शन को न तो पढा़ था और न कभी अफीम कहा! बल्कि मार्क्स ने तो तत्कालीन यूरोपीय चर्च द्वारा ईसाई समाज पर जबरन लादी जा रही भयानक प्रबंचनाओं को लेकर कहा था:-
"मानवीय चेतना के विकास और शोषण से मुक्ति के मार्ग में, रिलीजन (मज़हब) एक अफीम की तरह है"

मुझे 

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