'तुम्हीं ने दर्द दिया तुम्हीं दवा करना' कि तर्ज पर अमेरिकन प्रेजिडेंट मि. ओबामा ने दुनिया के मुसलमानों को नसीहत दी है कि -" अब वक्त आ गया है कि दुनिया भर के अमनपसंद मुसलमान एकजुट होकर इस्लामिक आतंकवाद की निंदा करें !" इसी तर्ज पर भारत के बाचाल प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी ने भी ततकाल विदेशी धरती से ही दुनिया भर के मुसलमानों को 'सच्चे इस्लाम' की परिभाषा बतायी। उन्होंने कहा -"सूफी परम्परा अगर बलवान हुयी होती तो इस्लामिक आतंकवाद इतना भयानक नहीं होता। इस्लाम में जिसने सूफी परम्परा को समझा उसने कभी हथियार नहीं उठाया "! इन नेताओं के समर्थक चाहे जो कुछ व्याख्याएं करते रहें किन्तु इन वयानों से आतंकियों को ही फायदा पहुँच रहा है।
वेशक मि. ओबामा और श्री मोदी जी के इस्लाम विषयक उक्त कथन अपनी जगह अवश्य ही वजूद रखते। वशर्ते ये दोनों नेता इस्लामिक विषयों के अधिकृत विद्वान होते। और ये पूँजीवादी घटिया राजनीति के दल-दल में गले-गले तक न धसे होते ! मि ओबामा का क्या वे तो फिर भी आधे -अधूरे मुसलमान हैं। बराक हुसैन ओबामा का डीएनए अमेरिका की खोज करने वाले कोलंबस या चर्च नियंत्रित यूरोपियन्स से बिलकुल मेल नहीं खाता। बल्कि वह तो इस्लाम में नवदीक्षित माइग्रेटेड अफ़्रीकी नीग्रो के वंशज हैं। अतएव इस्लामिक संसार से उनका कुछ तो वास्ता अवश्य है। किन्तु मोदी जी तो मनसा-बाचा -कर्मणा से उस 'संघपरिवार' के मानस पुत्र हैं जिसका अस्तित्व ही 'इस्लाम विरोध' की धुरी पर टिका हुआ है। जिन्हे मेरी इस स्थापना पर शक हो वे श्री गुरु गोलवरकर रचित 'संघ' की परम पवित्र पुस्तक "बंच ऑफ थाट्स 'अर्थात 'विचार नवनीत' को एक बार अवश्य पढ़ें। असहिष्णुता क्या होती है यदि यह जानना है तो इस पुस्तक को अवश्य पढ़ें। इसी पुस्तक से 'संघ' का संचालन भी होता है। इसी पुस्तक में दर्ज है कि संघ के तीन खास दुश्मन कौन हैं? मुसलमान ,कम्युनिस्ट और ईसाई ! मोदी जी इसी पुस्तक से प्रेरणा लेकर ,संघ के आशीर्वाद से परवान चढ़े हैं। इसीलिये उनके द्वारा इस्लाम विषयक किसी भी वयानबाजी की कोई तुकतान नहीं हो सकती !
वैसे भी भारतीय शास्त्रीय[हिन्दू] परंम्परा का कथन है कि "यद्द्पि शुद्धं लोक बिरुद्धम् न कथनीयम् -न कथनीयम् !"
अर्थात -यद्द्पि हो सकता है कि आप सही कह रहे हों ,किन्तु आपका कथन यदि लोक के विरुद्ध है यानि किसी विराट कौम की भावनाओं के अनुरूप नहीं है तो आपको उसे नहीं कहना चाहिए।
हालाँकि ओबामा को इसका ज्ञान नहीं होगा । किन्तु मोदी जी तो परम संघनिष्ठ होने के कारण हिन्दू दर्शन के अध्येता अवश्य रहे होंगे ! क्या उन्हें उक्त संस्कृत लोकोक्ति का ध्यान नहीं रहा ! ओबामा हो या मोदी हों या कोई और तुर्रमखाँ हों ,यदि वे अपने-अपने राष्ट्रों के सर्वशक्तिमान शासक हैं ,तो उन्हें आतंकवाद के खिलाफ इस तरह उपदेश देने या गाल बजाने के बजाय एकजुट ठोस कार्यवाही करके दिखाना चाहिए ! जैसा कि अब फ़्रांस और रूस मिलकर कर रहे हैं। वैसे भी ओबामा जी को यह याद रखना चाहिए कि अतीत में सोवियत प्रभाव को विफल करने के लिए अमेरिका की सीआईए ने ही इन इस्लामिक आतंकियों को दुनिया भर में हथियार और खाद -पानी दिया था। अब जबकि आतंकी भस्मासुर अमेरिका और यूरोप को मसल रहे हैं तो ओबामा जी अमनपसंद -मुसलमानों को इस्लाम का पाठ याद करा रहे हैं।
उनकी यह उद्घोषणा यूएनओ के उस अवधारणा के अनुकूल नहीं है ,जिसमें यह सिद्धांत स्थापित किया गया है कि कोई भी नेक -ईमान वाला -अमनपसंद और सच्चा मुसलमान आतंकवादी नहीं हो सकता। और जो आतंकवादी हैं ,वे मुसलमान नहीं हो सकते ! इस मूलभूत सिद्धांत की अनदेखी कर मिस्टर ओबामा और श्री मोदी जी ने इस्लाम के अमनपसंद लोगों को ही ज्ञान बाँटने की तकलीफ क्यों उठाई है ? जबकि उन्हें मालूम है कि अमनपसंद मुसलमान तो खुद ही दुनिया में सबसे ज्यादा आतंकी हिंसा का शिकार होते आ रहे हैं। लाखों सीरियाई,इराकी और अन्य शरणार्थी आज जो यूरोप की सीमाओं पर ठण्ड में सिकुड़ कर मर रहे हैं उनमें ९०% मुसलमान ही हैं। क्या ओबामा और मोदी जी की नसीहत उन निरीह -निर्दोष बच्चों के लिए है जो पेशावर में इस्लामिक आतंकियों के हाथों मारे गए ? यदि नहीं तो उनके ये उदगार किनके प्रति होने चाहिए?
यहूदियों ,यज़ीदियों,शियाओं और पत्रकारों के ही नहीं बल्कि अधिकांस अमनपसंद मुसलमानों के कातिल आतंकी - कभी अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को उड़ा रहे हैं ,कभी रूसी विमान को ध्वस्त कर रहे हैं , कभी भारत के मुंबई - यूपी- कश्मीर और सीमाओं पर निर्दोष भारतीय नागरिकों के खून की होली खेल रहे हैं।इन हिंस्र आंतकियों का ह्रदय परिवर्तन ओबामा और मोदी के ज्ञान से कदापि नहीं होगा। इसकी आशा करना उतना ही भोलापन है ,जितना कि यह गलतफहमी पाल लेना कि हर मुसलमान अज्ञानी और हिंसक है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस्लाम के अलावा अन्य सभ्यताओं और कौमों में भी बुराइयाँ और उनमें भी हर किस्म की हिंसा का तांडव कम नहीं है। दुनिया में सर्वाधिक मौतें गरीबी ,असमानता,कुपोषण , भुखमरी और शोषण के कारण होरही हैं। यह दुहराने की जरूरत नहीं कि इसके लिए हथियारों के उत्पादक ,तेल के उत्पादक - राष्ट्र ही जिम्मेदार हैं। इन देशों के मुनाफाखोर -कारोबारी, मल्टीनेशनल कंपनियों के निष्ठुर अमानवीय कर्ता -धर्ता क्या आईएसआईएस से कम गुनहगार हैं ? क्या ओबामा और मोदी जैसे नेता इन मल्टीनेशनल्स के हाथों की कठपुतली नहीं हैं ?इनकी भयानक लूट और संहारक प्रवृति पर कोई बयान देने के बजाय केवल इस्लाम के बारे में ही अंट -शंट बकना मजहबी रिफॉर्म की बातें करना -शेख -चिल्ली के सपनों जैसा है।
इस्लाम के सच्चे अनुयायी तो हर दौर में हिंसा और आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष करते आ रहे हैं। कर्बला के मैदान में ही नहीं बल्कि उससे भी पहले से अमनपसंद मुसलमानों ने इंसानियत और ईमान को ही वरीयता दी है। वेशक प्रेजिडेंट ओबामा की नसीहत या पीएम मोदी की सीख कोई गैर बाजिब बात नहीं है ! किन्तु सवाल इस बयानबाजी की पात्रता का है। ये दोनों महाशय न तो इस्लाम के विद्वान हैं। न कोई आलिम-उलेमा हैं। बल्कि उनके बोल-बचन से इस्लाम के प्रति असहिष्णुता का भाव ही अभिव्यक्त हुआ है। बेहतर होता की इस्लाम पर विवेचना करने के बजाय ये नेता लोग कुछ जमीनी ठोस कार्यवाही करते। जिस तरह फ़्रांस के राष्ट्रपति फ़्रंकवा ओलांद ने आईएसआईएस के हमलों का सीरिया में घुसकर जबाब दिया। जिस तरह रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने तमाम इस्लामिक देशों के अमनपसंद नेताओं को विश्वाश में लेकर आतंकवादियों से लड़ने के लिए अपने जंगी बड़े रवाना कर दिए हैं , उसी तरह भारत के पीएम मोदी जी को भी पीओके और पाकिस्तान में छिपे बैठे आतंकियों पर अपने जौहर दिखाने चाहिए थे। यदि मोदी जी दाऊद ,हाफिज सईद ,जेयूडी या पाक प्रिशिक्षित नापाक आतंकियों को नेस्तनाबूद करते तो वे न केवल भारत के बल्कि सारे अमनपसंद सन्सार के नेता होते। वे अमेरिका ,फ़्रांस और यूरोप के भी हीरो होते !लेकिन हतभाग्य भारत के सत्तारूढ़ नेता केवल 'बोल -बचन' में ही माहिर हैं। जब तक विपक्ष में रहते हैं तभी तक शूरवीर हैं ,सत्ता में आने के बाद अम्बानियों -अडानियों के खैरख्वाह बन जाते हैं ! जनता के सवालों पर या आतंकी उन्माद पर धार्मिक ज्ञान बांटने लगते हैं।
जबकि फ़्रांस के राष्ट्रपति ओलांद ,रूस के राष्ट्रपति पुतिन ,चीन के शी जिन पिंग और अमेरिका के ओबामा बोलते कम और करते ज्यादा हैं। वे विश्व आतंकवाद के खिलाफ कुछ न कुछ तो कर ही रहे हैं। किन्तु भारत के वर्तमान महाबली सूरमा सिर्फ 'बोलता ज्यादा है करता कुछ नहीं '! श्रीराम ':-
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