शुक्रवार, 27 नवंबर 2015

"संविधान से छेड़छाड़ करना याने आत्म अहत्या करने जैसा होगा ''। वाह ! मोदी जी वाह !

 लगभग १९  महीने तक देश के राजनितिक छितिज पर सत्ता का  'वन में शो' अभिनीति कर चुकने के बाद जब पीएम श्री मोदी जी ने पाया कि  उनके वटवृक्ष रुपी व्यक्तित्व के कारण देश में  विकास का एक तिनका भी उगने को तैयार नहीं है। उन्होंने पाया कि देश की बौद्धिक हस्तियाँ [मय  वैज्ञानिक ,राष्ट्रपति और रिजर्व वेंक गवर्नर]और अल्पसंख्यक वर्ग उनसे बहुत दूर हो चला है। उन्होंने पाया कि  बिहार में बहुत परिश्रम -लोभ -लालच और विकास के नारे लगाने के वावजूद पिछड़े बिहारियों ने  उन के 'किसी भी कीमत पर विकास' के मुद्दे को बुरी तरह  ठुकराकर लालू  के चरित्रहीन आरक्षणवाद को  गले लगाया है । उन्होंने पाया कि बिहार की करारी हार के बाद चूँकि भाजपा को  राजयसभा में सीटों  के बढ़ने की अब कोई  सम्भावनायें नहीं  हैं। ऐंसे में जीएसटी बिल तो क्या सरकार चलाना  भी मुश्किल है। इसलिए मोदी जी अब एकदम बदले -बदले नजर आ रहे हैं।बेशक इस मौसमी   बदलाव का श्रेय देश के  बुद्धिजीवियों,विचारकों ,लेखकों ,विपक्षियों  और बिहारियों को जाता है।

अंग्रेजी में  दो कहावतें ऐंसी  हैं- जो हमारे वर्तमान प्रधान मंत्री जी के बड़ी काम की हैं। बहुत संभव है कि  वे उन्ही का अनुशरण करने जा रहे हों !

 पहली कहावत  यह है कि - "If you can't defeat, you join them,,!"  अर्थात यदि तुम किसी  को तर्क बुद्धि  से  या रणकौशल से परास्त नहीं कर सकते तो उसे विजेता मानकर उसका अनुसरण करना ही श्रेयष्कर है।

दूसरी कहावत है कि -  "If you don't like any particular thing ,then you  should change it ! If you can't change it then you must change your self  attitude ,,," अर्थात अगर तुम किसी चीज को पसंद नहीं करते हो तो उसे बदल  डालो  ! यदि तुम  उसे बदल नहीं सकते तो अपना  खुद का  रवैया बदल डालो !

 शायद अब इन कहावतों  को  ही चरितार्थ किया जा रहा है। इसीलिये भाजपा कार्यालय पर दीवाली मंगल मिलन के बहाने अब 'एकला चलो रे'  की जिद छोड़कर  मोदी जी अब 'आम आदमी ' के नेता होने का प्रयास कर  रहे  हैं। इससे पूर्व  जीएसटी बिल के लिए पूर्व पीएम मनमोहनसिंह और सोनिया जी को  चाय पर आमंत्रित  कर मोदी जी  ने  मजबूरी में ही सही -अपने  पूर्व निर्धारित अहोभाव से बहुत पृथक 'मोड़' पर आकर नया स्टेण्ड लिया है। 

 संसद के वर्तमान  सत्र  के प्रथम दो दिनों में उपरोक्त कहावतों को  ही चरितार्थ होते देखा गया है। विगत २६-२७ नवंबर -२०१५ का संसद सत्र  इस मायने में ऐतिहासिक रहा कि एक तो संविधान निर्माता बाबा साहिब की १२५ वीं जयंती थी और दूसरी बात सत्ता पक्ष की ओर से  देश के संविधान को तोड़ने-मरोड़ने के अनुचित  प्रयास को स्वयं भारत के प्रधान मंत्री  श्री नरेंद्र मोदी ने भौंथरा कर दिया। संविधान में निहित  धर्मनिरपेक्षता ,समाजवाद जैसे पवित्र और क्रांतिकारी  शब्दों से 'संघियों' को कितनी एलर्जी है ? यह तो राजनाथसिंह और जेटली के उबाऊ भाषणो से पहले ही जग जाहिर था। किन्तु मोदी जी ने  जिस  चतुराई से न केवल कांग्रेस को , न केवल सम्पूर्ण विपक्ष कोनिस्तेज किया ,बल्कि अपने  ही संघी ' गुरु  भाइयों'- गृह मंत्री श्री  राजनाथ सिंह ,ससदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू  और वित्त मंत्री अरुण जेटली के भाषणों को  भी कूड़ेदान में फेंक दिया। वाह! वाह मोदी जी वाह !

 प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी  ने सर्वश्री राजनाथ ,वेंकैया ,जेटली ही नहीं बल्कि पूरे  'संघ परिवार' के ख्वाबों को चकनाचूर कर दिया है । कौन मंदमति नहीं जनता कि 'संघ परिवार' वाले  विगत  ६६ साल से वर्तमान संविधान को बदलकर एक नए  पवित्र [?]  'हिन्दुत्वादी' संविधान की भरसक कोशिश  करते आ रहे हैं । १६ मई-१०१४ को जब भाजपा २८२ कमल खिलाकर संसद में पहुंची तो उनके अति उत्साही प्रवक्ताओं ने  अपनी सरकार को ८०० साल की गुलामी  के बाद की पहली सरकार  घोषित किया था। संघ  प्रवक्ता और शिवसेना वाले अपने मकसद को छिपाते भी नहीं हैं। वे तो नेपाल में भी हिन्दुत्वादी संविधान की आस लगाए बैठे थे। किन्तु हतभाग्य  नेपाल तो अब पूर्णत : लाल हो गया । वह तो हिंदुत्व छोड़कर  धर्मनिरपेक्षता से भी आगे पूरा -साम्यवादी हो चुका  है। जो लोग बारे-बार कहते हैं कि  'कहाँ हैं कम्युनिज्म?' उन्हें नेपाल अब सपने में  चिड़ा  रहा है !

 कटट्रवादियों की  बची खुची आसा  इस २८२ कमलछाप सरकर पर ही टिकी थी। परन्तु  नरेंद्र मोदी जी ने घड़ों पानी उड़ेल दिया है। २७- नवम्वर-१५ को  भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र भाई  मोदी जी ने संसद में ऐंसा  भाषण दिया कि  कोई  'घोर वामपंथी '  भी क्या भाषण देगा ! मोदी जी ने तो  'संघ' की आशाओ पर पानी फेर दिया है। उनका भाषण न केवल गांधी,नेहरू अम्बेडकर के प्रति कृतग्यतापूर्ण था अपितु उन्होंने इशारों में अपने साथियों को भी अच्छी  पटकनी  दी है। अपने वालों को नसीहत देते हुए  मोदी जी ने फ़रमाया  कि "संविधान से छेड़छाड़ करना याने आत्महत्या करने जैसा होगा ''। कुछ लोग कह  सकते हैं कि  यह तो जुमला है ! मोदी जी  कहते हैं वो करते  ही नहीं! किन्तु उपरोक्त  अंग्रेजी कहावते यदि सर्वकालिक और सार्वदेशिक  हैं तो  मोदी  जी  का संसद में दिया गया  यह भाषण  बहुत दूरगामी और समन्वयकारी सावित होगा।  बहुत सम्भव  है कि  वे विकास और सुशासन के प्रति दृणसंकल्पित  हों !  इसीलिये  तात्कालिक चेतना से उतपन्न उनकी यह धर्मनिरपेक्षतावादी    अवधारणा तो  भारत के लिए सुखद ही होगी।  हालाँकि  मोदी जी का यह ह्रदय परिवर्तन ,बिहार' चुनाव परिणाम जनित  भी हो सकता है। उनका यह नेहरूयुगीन  नव  केरेक्टर शायद राज्यसभा में जीएसटी बिल पारित कराने  की  रणनीतिक चतुराई  भी हो सकता है। सब कुछ सम्भव  हो सकता है ,किन्तु मोदी जी का यह नया अवतरण  संघनिष्ठ'  कदापि नहीं हो सकता ।  यदि मेरा अनुमान सही है तो विपक्ष और कांग्रेस के लिए दिल्ली अभी १० साल और दूर है !  श्रीराम तिवारी !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें