ज्ञातव्य है कि चंद रोज पहले ही केरल में स्थानीय निकाय के चुनाव सम्पन्न हुए हैं । इस चुनाव में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट [एलडीएफ] को अपेक्षित सफलता मिली है । दो-तिहाई महानगर पालिकाओं ,नगर -निगमों और ग्राम पंचायतों पर एलडीएफ का कब्जा हो गया है। जबकि कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो चुका है। भाजपा को भी केरल के स्थानीय निकाय चुनावों में कुछ स्थानों पर मामूली सफलता मिली है। इस आंशिक सफलता को मीडिया ने बहुत बढ़ा चढ़ाकर पेश किया है। मानों केरल में भाजपा रुपी चुहिया को चिंदी क्या मिल गयी ,कपडे का थान मिल गया ! वेशक उन्हें कहीं -कहीं कांग्रेस से कुछ ज्यादा वोट मिले हैं। लेकिन सिर्फ इससे मीडिया को वामपंथ की विराट सफलता की अनदेखी करने का सर्टिफिकेट नहीं दिया जा सकता। अभी-अभी बिहार में वामपंथ को २३% मिले हैं ,यह एक बड़ी उपलब्धि है किन्तु मीडिया ने उसे बार-बार 'अन्य' बताकर इग्नोर किया। वामपंथ के रूप में ये 'अन्य' ही हैं जिसके कारण नीतीश -लालू मात्र ४३ % वोटों के बलबूते पर १७८ सीटें पा गए। और ३५% वोट वाला एनडीए ५८ पर ढेर हो गया। यदि मोदी जी और एनडीए २३ % वाले 'अन्य' के वोट जोड़ने में कामयाब हो जाते तो क्या लालू -नीतीश का जादू चल पाता ? किसी भी चैनल ने यह तथ्य कहीं भी कभी भी नहीं दिखाया। लालू-नीतीश और नरेंद्र मोदी के अलावा भारतीय मीडिया ने अन्य किसी पार्टी - व्यक्ति या विचार धारा के बारे में सोचना भी उचित नहीं समझा। क्योंकि उनके आकाओं का हुक्म है कि केवल कार्पोरेट के चाटुकारों -कांग्रेस,भाजपा ,जदयू,राजद ,सपा और उनके अलायन्स के बारे में ही चर्चा होनी चाहिए। यही कारण है कि जब केरल में वामपंथ को बम्फर जीत मिल रही थी तब मीडिया चुप रहा किन्तु मात्र कुछ स्थानों पर भाजपा की आंशिक सफलता पर वह उसके विजय गीत गाने लगा।
विहार विधान सभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान के दौरान जब एक्जिट पोल में कुछ चैनल भाजपा की जीत सुनिश्चित बता रहे थे ,तभी केरल के स्थानीय निकायों के रुझानों को भाजपा के पक्ष में बता आरहे थे। अधिकांस चेनल्स पर मोदी जी की बिहारी विशाल आम सभाओं को लाइव दिखाया जा रहा था। इसी बीच कुछ 'सबसे तेज' चेनल्स ने केरल के स्थानीय निकाय के चुनावों की खबरें भी प्रसारित की थीं।अधिकांस टीवी चेनल्स पर एक ही खबर आ रही थी कि केरल के स्थानीय निकायों में भाजपा को भारी सफलता मिलने जा है। एक चैनल विशेष पर तो बड़ा मजेदार सीन देखने को मिला। हजारों लोग हंसिया हथौड़ा वाले लाल झंडे अपने हाथों में लिए हर्ष उल्लास के साथ खुशियां मनाते दिखाए जा रहे थे ,जबकि एंकर महोदय बार-बार बके जा रहे थे कि 'केरल में कमल खिला '। साथ में तुकतान ये भी कि 'आप सबसे पहले ये खबर हमारे सबसे तेज चैनल पर ही देख रहे हैं '। जब स्क्रीन पर सिर्फ हंसिया हथौड़ा वाले लाल झंडे ही चारों ओर नजर आ रहे थे। तभी एंकर जी का आप्त वाक्य सुनाई दिया कि 'आप केरल में भाजपा कार्यकर्ताओं की जीत का जश्न लाइव देख रहे हैं "! इतना झूंठा और शर्मनाक प्रोपेगंडा जब आक्रामक पूँजीवादी की ओर से हो र्हा हो तब
यह सर्विदित तथ्य है कि इस दौर में केवल भारत का ही नहीं बल्कि अधिकांस वैश्विक मीडिया ही कार्पोरेट -आवारा पूँजी से संचालित है। निसंदेह मीडिया में काम करने वाले अधिकांस युवक -युवतियाँ अवश्य समाज के बेहतरीन प्रतिभा सम्पन्न व्यक्त्तिव होते हैं। लेकिन मीडिया मालिकों के बाजारू आचरण के सामने इनकी शख्सियत लाचारी में बदल जाती है। अपने मालिकों की खब्त के कारण उनकी मुखरता और व्यक्तिगत सोच पर ताले लग जाते हैं। यही कारण है कि केरल स्थानीय चुनाव हो ,तुर्की के चुनाव हों या पाकिस्तान में जान आंदोलन की खबरने हों वे नाज अंदाज की जातीं हैं। झूंठ का शर्मनाक नग्न नर्तन विभिन्न चैनलों पर अवश्य देखा जा सकता है।
अभी -अभी तुर्की के जनमत संग्रह में वामपंथ को पुनः भारी जीत मिली है। म्यांमार में आंग सांग सु की वाम लोकतान्त्रिक विचारधारा की पार्टी सत्ता के नजदीक पहुंच चुकी है। नेपाल के नए प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति दोनों कम्युनिस्ट हैं। बेनेजुएला में कम्युनिस्टों को बार-बार जीत मिल रही है। इटली में विगत दिनों लेफ्ट विंग की ताकत बढ़ी है। भारत के बिहार में भले ही वामपंथ को विजय न मिली हो किन्तु दक्षिण पंथ भी तो बुरी तरह हारा ही है। केरल में वाम को भारी सफलता मिली है। इन तमाम खबरों को छोड़कर भारत का मीडिया रात-दिन केवल पीलिया पुराण ही गाता रहता है। यही वजह है कि फेसबुक ,गूगल ,ट्विटर और तमाम इलक्ट्रॉनिक डिजिटल मीडिया से जुड़े युवाओं को भी यह नहीं मालूम कि दुनिया में एक मात्र कम्युनिस्ट विचार धारा ही है ,जिसके आधार पर दुनिया के १५० से ज्यादा देशों में या तो कम्युनिस्ट पार्टियाँ का सीधा वर्चस्व है ,या वहाँ सशक्त मजदूर संगठन -किसानों-मजदूरों और सर्वहारा के हितों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। चीन ,रूस ,वियतनाम,बेनेजुएला ,क्यूबा या तुर्की तो बहुत आगे हैं। किन्तु अमेरिका ,पाकिस्तान ,ईरान इराक सीरिया में वामपंथ की मौजूदगी क्या इस लायक नहीं कि मीडिया उसका संज्ञान भी न ले ?श्रीराम तिवारी
विहार विधान सभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान के दौरान जब एक्जिट पोल में कुछ चैनल भाजपा की जीत सुनिश्चित बता रहे थे ,तभी केरल के स्थानीय निकायों के रुझानों को भाजपा के पक्ष में बता आरहे थे। अधिकांस चेनल्स पर मोदी जी की बिहारी विशाल आम सभाओं को लाइव दिखाया जा रहा था। इसी बीच कुछ 'सबसे तेज' चेनल्स ने केरल के स्थानीय निकाय के चुनावों की खबरें भी प्रसारित की थीं।अधिकांस टीवी चेनल्स पर एक ही खबर आ रही थी कि केरल के स्थानीय निकायों में भाजपा को भारी सफलता मिलने जा है। एक चैनल विशेष पर तो बड़ा मजेदार सीन देखने को मिला। हजारों लोग हंसिया हथौड़ा वाले लाल झंडे अपने हाथों में लिए हर्ष उल्लास के साथ खुशियां मनाते दिखाए जा रहे थे ,जबकि एंकर महोदय बार-बार बके जा रहे थे कि 'केरल में कमल खिला '। साथ में तुकतान ये भी कि 'आप सबसे पहले ये खबर हमारे सबसे तेज चैनल पर ही देख रहे हैं '। जब स्क्रीन पर सिर्फ हंसिया हथौड़ा वाले लाल झंडे ही चारों ओर नजर आ रहे थे। तभी एंकर जी का आप्त वाक्य सुनाई दिया कि 'आप केरल में भाजपा कार्यकर्ताओं की जीत का जश्न लाइव देख रहे हैं "! इतना झूंठा और शर्मनाक प्रोपेगंडा जब आक्रामक पूँजीवादी की ओर से हो र्हा हो तब
यह सर्विदित तथ्य है कि इस दौर में केवल भारत का ही नहीं बल्कि अधिकांस वैश्विक मीडिया ही कार्पोरेट -आवारा पूँजी से संचालित है। निसंदेह मीडिया में काम करने वाले अधिकांस युवक -युवतियाँ अवश्य समाज के बेहतरीन प्रतिभा सम्पन्न व्यक्त्तिव होते हैं। लेकिन मीडिया मालिकों के बाजारू आचरण के सामने इनकी शख्सियत लाचारी में बदल जाती है। अपने मालिकों की खब्त के कारण उनकी मुखरता और व्यक्तिगत सोच पर ताले लग जाते हैं। यही कारण है कि केरल स्थानीय चुनाव हो ,तुर्की के चुनाव हों या पाकिस्तान में जान आंदोलन की खबरने हों वे नाज अंदाज की जातीं हैं। झूंठ का शर्मनाक नग्न नर्तन विभिन्न चैनलों पर अवश्य देखा जा सकता है।
अभी -अभी तुर्की के जनमत संग्रह में वामपंथ को पुनः भारी जीत मिली है। म्यांमार में आंग सांग सु की वाम लोकतान्त्रिक विचारधारा की पार्टी सत्ता के नजदीक पहुंच चुकी है। नेपाल के नए प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति दोनों कम्युनिस्ट हैं। बेनेजुएला में कम्युनिस्टों को बार-बार जीत मिल रही है। इटली में विगत दिनों लेफ्ट विंग की ताकत बढ़ी है। भारत के बिहार में भले ही वामपंथ को विजय न मिली हो किन्तु दक्षिण पंथ भी तो बुरी तरह हारा ही है। केरल में वाम को भारी सफलता मिली है। इन तमाम खबरों को छोड़कर भारत का मीडिया रात-दिन केवल पीलिया पुराण ही गाता रहता है। यही वजह है कि फेसबुक ,गूगल ,ट्विटर और तमाम इलक्ट्रॉनिक डिजिटल मीडिया से जुड़े युवाओं को भी यह नहीं मालूम कि दुनिया में एक मात्र कम्युनिस्ट विचार धारा ही है ,जिसके आधार पर दुनिया के १५० से ज्यादा देशों में या तो कम्युनिस्ट पार्टियाँ का सीधा वर्चस्व है ,या वहाँ सशक्त मजदूर संगठन -किसानों-मजदूरों और सर्वहारा के हितों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। चीन ,रूस ,वियतनाम,बेनेजुएला ,क्यूबा या तुर्की तो बहुत आगे हैं। किन्तु अमेरिका ,पाकिस्तान ,ईरान इराक सीरिया में वामपंथ की मौजूदगी क्या इस लायक नहीं कि मीडिया उसका संज्ञान भी न ले ?श्रीराम तिवारी
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