सिर्फ पैदायश से नहीं बन जाता कोई भला -बुरा आदमी।
देश काल परिश्थितियोँ का भी गुलाम होता है आदमी।।
यह तय होता है सभ्यताओं के विकास की फितरत से ,
कि कौन होगा आदमखोर और कौन होगा सिर्फ आदमी।
कानून का राज न हो दुनिया में कदाचित दुनियावालो ,
जिन्दा शेर-चीतों को भी कच्चा चबा जाएगा आदमी।।
मिल जाये किसी पिद्दे को अगर कभी वजीर का ओहदा ,
गर्दिशों के दौर में आड़ा -तिरछा चलने लगता है आदमी।
मिल जाए यदि किसी चूहे को चिंदी इत्तफ़ाक़न जब कभी-,
कपडे का थान ही समझ बैठता है,मानों बन गया हो आदमी।
देते हैं इंसानियत के लिए युग-युग में कुर्बानी कुछ लोग,
शहीदों के आदर्शों पर चले, असल में वही होता है आदमी।
बेबसों पर जुल्म ढाने में जुटे हैं मजहबी मरजीवड़े पागल ,
ढेर लाशों के लगाकर बहशी खुद को समझता है आदमी।।
श्रीराम तिवारी
जिनके अवदान हमेशा याद रखना चाहिए ,उन्हें ही भूलने की हमें बीमारी है।
जिनके बलिदान से देश आजाद हुआ , उन्हें रुसवा करने की हमें बीमारी है।।
विदेशी आक्रान्ताओं बर्बर ताकतों द्वारा निरंतर लतियाये जाने की बीमारी है।
साहित्य-कला -संगीत के मर्मज्ञों का ,मजाक उड़ाए जाने की बीमारी है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें