गुरुवार, 5 नवंबर 2015



  मैं  सिर्फ उस बात के लिए जिम्मेदार नहीं  हूँ ,जो बात मैंने जाने-अनजाने  कही है। बल्कि मैं उसके लिए भी जिम्मेदार हूँ ,जो बात  मुझे  शिद्द्त से कहनी चाहिए थी किन्तु ,भय,लालच  या  अज्ञानवश मैंने नहीं कही !


मटका प्रसंग ,जीप पर सवार इल्लियाँ ,वर्जीनिया वुल्फ से कौन डरता है ? इत्यादि रचनाओं के मार्फ़त 'शरद जोशी ने तत्कालीन  व्यवस्था  का खूब  मानमर्दन  किया  था । राग दरबारी के मार्फ़त श्रीलाल शुक्ल ने  बुर्जुआ वर्ग की तत्कालीन  खामियों का जमकर उपहास किया है।  काका हाथरसी ने, हरिशंकर परसाई ने ,दुष्यंतकुमार ने, गजानन माधव मुक्तिबोध  और उपन्यास सम्राट  मुंशी प्रेमचंद ने भी अपनी कलम से शासन-प्रशासन की नीति -नियत का सिरसच्छेदन किया है।  आधुनिक दौर के लेखक -बुद्धिजीवी एवं  मूर्धन्य साहित्यकार अपनी कलम का कमाल दिखाने के  बजाय 'सम्मान वापिसी रुपी 'मूँछ का बाल ' वापिस कर रहे हैं। प्रतिरोध का यह तरीका बाकई अभूतपूर्व है।   

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