सोमवार, 16 नवंबर 2015

  यदि  कभी -कभार किसी  रिक्सा चालक का बेटा /बेटी ,किसी मजदूर या चपरासी का बेटा /बेटी आईआईटी ,  आईएएस , आईपीएस  की परीक्षा बिना किसी महँगे कोचिंग के 'टॉप ' कर लेते हैं  तो मध्यम  वर्गीय युवक  - युवतियाँ  उन्हें  ईर्षा या हेय  दॄष्टि से देखते  हैं। जबकि  इन निर्धन और संघर्षशील  सफल  चेहरों को तो वर्तमान आधुनिक पीढ़ी का  प्रतिमान अर्थात  'आइकॉन ' होना चाहिए !  हालाँकि भारत की आधुनिक शिक्षा पद्धति को  मैकालेवादी कहकर सभी कोसते रहते हैं। किन्तु उसी मैकालेवादी  नजरिये के उपनिवेशवादी क्रूर  इतिहास  के कूड़ेदान से  घटिया  'आइकॉन'  उठाकर इन दिनों जन -संचार माध्यमों और सोशल मीडिया पर आधुनिक पीढ़ी को  दिखाया जा रहा है। अर्थात भूतपूर्व  निरंकुश -सामंतों ,शोषणकर्ताओं और निर्मम  हत्यारों  को  अब आदर्श प्रतिमान -आइकॉन बनाकर  आधुनिक युवा पीढ़ी के समक्ष  प्रस्तुत किया जा रहा है। 


  भारत में  विगत डेड दो साल से गलत प्रतिमान या 'आइकॉन' बनाने की परम्परा जोरों पर है। आजकल कुछ लोगों  को सही जानकारी के अभाव में  महात्मा गाँधी  का हत्यारा - नाथूराम  'गोडसे ' हीरो  नजर आ  रहा है । दूसरी ओर राजनैतिक स्वार्थों के मद्दे-नजर कुछ लोगों को पौने तीन सौ साल पहले मर चुका एक  भूतपर्व रक्त पिपासु सामंत -'टीपू सुलतान' हीरो नजर आने लगा है। गनीमत है कि  जन संचार माध्यमों , टीवी सीरियलों या सोशल मीडिया से सरोकार रखने  वाले युवक-युवतियां  को इन  क्रूर सामंती शासकों या गढ़े  मुर्दों में कोई खास दिलचस्पी नहीं है ! लेकिन यह भी चिंतनीय है कि  बदनाम - पैसा बटोरू  नेता -अभिनेता ही अब वर्तमान युवा पीढ़ी  के  नए  'आइकॉन' बनते जा रहे हैं।   

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