मंगलवार, 6 मई 2014

मोदी ऐसे 'रत्नाकर' नहीं हैं जो बाल्मीकि हो जाए ।




   ज्यों -ज्यों १६ मई  नजदीक आती जा  रही है , त्यों-त्यों नरेंद्र  मोदी  तेजी से बदलते जा  रहे हैं। यूपीए,कांग्रेस  या गैर भाजपाई गैर एनडीए वाले ही नहीं खुद उनके ही 'रामा दल'  वाले भी यत्किंचित आश्चर्यचकित हैं कि ये   'नमो' को क्या हो गया  है ? सब कुछ  उगल देने-बक देने  के बाद ,भरपूर विषवमन  कर चुकने के बाद, वे अब ऐंसे पेश आ रहे हैं मानो साक्षात देवदूत धरती पर उतर आया हो ! उनके टीवी इंटरव्यू  और  चुनाव के उत्तरार्ध्र  की तकरीरें  बहुत 'संशयपूर्ण ओर छद्मवाग्मिता से भरपूर हैं। जब  वे फरमाते हैं कि मै तो  जनता का  सेवक हूँ , सेवा का एक मौका मुझे  देकर देखो , मैं  भारत की तस्वीर ही नहीं तकदीर  भी बदल  डालूँगा, यदि मैं हार गया तो सब कुछ छोड़कर पुनः 'चाय बेचने' लग जाऊंगा! तो  मोदी जी  की इस एक्टिंग पर मर-मिटने को जी चाहता है।  लेकिन  जब वे कहते हैं कि  मैं तो मजदूर का  बेटा हूँ ,एक कम्बल मैं  भी  गुजारा कर्ता  हूँ! तो  उनकी यह मासूम अदा ओर  यह पाखंडी स्वरूप देखकर मतली आने लगती है।
               नरेंद्र मोदी जी की मेराथॉन आम सभाओं में , राष्ट्रीय -अंतर्राष्ट्रीय विज्ञापनों में , मीडिया को खरीदने में ,भाजपा के खजाने को  भरने  में,ऐयाश बाबाओं -ढोंगी साधुओं को खरीदने में , बिकराल परजीवी 'संघ परिवार ' को पालने में  और स्वयं 'नमो' के शाही-  हवाई खर्चों में  जिन अम्बानी-अडानी ,बजाज या बिड़लाओं का सफ़ेद  -  'कालाधन'  पानी की तरह बहाया जा रहा है ,वे भी शायद  मोदी जी की इस मासूम  अदा पर [कि मैं एक मजदूर हूँ ]  शरमा  गये  होंगे। [यदि शर्म बाकि होगी तो!] उनकी  असली  और  बिकराल सूरत देख-समझकर  तो यह किसी को भी नहीं लगता   कि यह कायाकल्प वास्तविक है।  यह बहुत सम्भव  है कि शायद मोदीजी अभी भी  भारत की जनता को-मतदाताओं को  उल्लू   ही  समझते हैं।  यदि  'नमो' का कायाकल्प हो  जाएगा,उनमें इंसानियत जाग जाएंगी  तो १६ मई के बाद  उनके नाम का जाप करने वाले कट्टरपंथी  'वेसहारा ' हो जाएंगे.   इसीलिये एन चुनाव के अंतिम चरण में  वे भले ही परम-पवित्र और  पाक-साफ़  योगीश्वर हो चले  हों किन्तु ' इतिहास' उनका पीछा नहीं छोड़ने वाला।  मोदी  ऐसे 'रत्नाकर' नहीं हैं  जो बाल्मीकि हो जाए । वे जाहिल  अंगुलिमाल  भी नहीं हैं जो कहे कि 'धम्मं शरणम् गच्छामि' . वे एक  ऐंसे बेहतरीन इंसान  जो  किसी से बैर नहीं रखता ! किसी से घृणा नहीं करता !कोई कामना नहीं रखता ! बदले की भावना नहीं रखता ,सबको  समान  [हिन्दू-मुस्लिम,ऊंचनीच] समझता है! तब तक नहीं बन सकते जब तक राजनीति से संन्यास नहीं ले लेते।

      श्रीराम तिवारी 

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