नरेंद्र दामोदरराव मोदी को संसद में पहली बार प्रवेश करते हुए , संसद की सीढ़ियों को मत्था टेकते हुए जिन्होंने नहीं देखा ,मोदी जी को संसद के केंद्रीय कक्ष में पहली दफा अति-विनम्र होकर -राग -द्वेष से परे होकर-सम्बोधित करते हुए जिन्होंने नहीं देखा , सार्वजनिक तौर से नरेंद्र भाई मोदी को जिन्होंने 'हिचकी' लेते हुए -आँसू रोकते हुए नहीं देखा , उन्हें कोई हक नहीं की वे यह उम्मीद करें कि नरेंद्र मोदी एक दवंग तानाशाह , हिटलर -मुसोलनी या 'बर्बर' -शासक हो सकते हैं। मेरा निवेदन मोदी समर्थकों और विरोधियों -दोनों से है 'नमो नाम केवलम' का नित्य जाप करने वाले 'संघनिष्ठ' अर्थात मोदी भाई के अंध समर्थक यदि मोदीजी से यह उम्मीद करते हैं कि वे खूखार होकर ,निर्मम होकर अल्पसंख्यकों का नाश करेंगे और केवल 'हिंदुत्व' या हिन्दू पद पादशाही के लिए समर्पित होकर क़टटर हिदुत्ववाद का भगवा ध्वज भारत में लहराएंगे तो यह उम्मीद करना छोड़ दें।
मेंरा मंतव्य उनसे भी है जो नरेंद्र भाई मोदी के धुर विरोधी हैं , आलोचक हैं ,मोदीजी का चेहरा देखते ही टी वी बंद कर देते हैं। ऐसे लोग भी रंच मात्र यह उम्मीद करना छोड़ दें कि नरेंद्र भाई मोदी कोई ऐंसा काम करने वाले हैं जिससे उनके आलोचकों को या कि प्रतिपक्षियों को कहने का अवसर मिल सके कि "देखों दुनिया वालो हमने तो पहले ही कहा था कि ये 'नमो' फासिस्ट हैं ,तानाशाह हैं ,नाजी हैं ,चंगेजखान हैं ,दुर्रानी हैं अब्दाली हैं " वेशक वे साम्प्रदायिक परिवेश में पले -बढ़े और आम से ख़ास हुए हैं , हो सकता है कि उनके मन में 'हिन्दू राष्ट्र' की भावना प्रवलता से हिलोरें ले रही हो,किन्तु वे लाख चाहते हुए भी भारत को न तो कभी विशुद्ध हिन्दू राष्ट्र बना पाएंगे और न ही वे भारत में 'निरंकुश शासन' अर्थात अधिनायकवादी शासन स्थापित कर पाएंगे। क्योंकि इस देश की मिट्टी में वे तत्व हैं ही नहीं जिनसे हिटलर ,मुसोलनी ,चंगेज खान ,ईदी अमीन या हलाकू पैदा हो सकें। वेशक नरेंद्र भाई मोदी बहुत सम्भव है कठोर निर्णय लें ,लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उल्लंघन कर अपने वैयक्तिक निर्णयों को तरजीह दें,अपने पूर्ववर्ती प्रधान मंत्रियों से बेहतर सुशासन दें और वैश्विक पटल पर कुछ अनोखा और अद्व्तीय करें. बहुत संभव है कि वे कुछ गंभीर भूलें और अक्षम्य गलतियां भी करें किन्तु इन सभी संभावनाओं के सृजन का मूल में नरेंद्र भाई मोदी का वह सहज स्वभाव ही परिलक्षित होगा जो उन्होंने संसद में पहली बार पेश किया है।
इस अवसर पर भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी ने जब लगभग आंसू बहाते हुए करुण गाथा पेश की ,अपने अतीत के संघर्षों और 'संघ परिवार ' के शुरूआती दौर के साथियों के त्याग-बलिदान की करुण कहानी सुनाई और वर्तमान ऐतिहासिक विजय को 'मोदी जी की 'कृपा' बताकर उन्हें विनम्र प्रणाम' किया तो न केवल भाजपा ,न केवल एनडीए के सांसद बल्कि सारे सुधी दर्शक-श्रोता भी हक्के-बक्के रह गए। किन्तु जब नरेंद्र भाई मोदी ने उन्हें उत्तर देते हुए कहा कि आडवाणीजी आपने जो 'कृपा' प्रणाम ' शब्द मेरे लिए इस्तेमाल किये हैं वे आइन्दा न करें। मैं जिस तरह अपनी माँ को सम्मान देता हूँ ,भारत को अपनी माँ समझता हूँ उसी तरह 'भाजपा' भी मेरी माँ ही है। मैं अपने वरिष्ठों के त्याग-बलिदान को नमन करता हूँ !तभी मुझे लगा कि अभी 'नमो ' का चारित्रिक तथा सार र्रूप में तात्विक मूल्यांकन होना बाकी है। भाजपा को ऐसा विनम्र नेता मिला इस पर मुझे घोर ईर्षा हो रही है किन्तु संतोष की बात है कि जो विराट बहुमत प्राप्त करने में सफल रहा वो अपनी हिमालयी सफलता से मदांध नहीं 'हुआ ,ऐसा नेता कभी हिटलर,मुशोलनी या फासिस्ट तानाशाह कैसे हो सकता है ?प्रायः देखा गया है कि 'प्रभुता पाय काही मद नाहीं'?
नरेंद्र भाई मोदी के इस भाषण में ऐंसा कुछ भी नहीं था जो अलोकतांत्रिक हो,गर्वोक्तिपूर्ण हो , तानाशाहों वाला हो,तुनुक मिजाज वाला हो,पूरे भाषण में 'मोदीजी ' ने जो भावात्मकता ,कृतज्ञता और आशावादी दृष्टिकोण पेश किया उसमें भारतीय नैतिक मूल्यों की झलक अवश्य थी किन्तु किसी तरह के फासिज्म की अंध हिन्दुत्ववाद की दूर-दूर तक कहीं -कोई अनुगूँज नहीं थी। वेशक संघ के प्रतिगामी एजंडे के अलावा भाजपा और मोदी जी की आर्थिक नीतियां घोर पूँजीवादी और सर्वहारा विरोधी भी हैं ,वे कार्पोरेट लाबी के चहेते हैं , फिर भी उन्हें धनबल वाले -प्रचार-प्रशार के मैनेजमेंट ने इस मर्तबा हिन्दू वोटों को एकजुट कर भाजपा को , एनडीए को बम्फर जीत दिलाई है। फिर भी इतना तो अवश्य ही उनको श्रेय दिया जाना चाहिए कि कांग्रेस के कुशासन से तो बहरहाल उन्होंने अभी -अभी देश को मुक्त कराकर कोई बुरा काम नहीं किया है।
मेरा मानना है कि संसद के हॉल में दिया गया 'नमो' का अश्रुपूर्ण -प्रथम भाषण किसी भी तरह से नाटकीय नहीं था। इसीलिये उपहास या आलोचना के लिए भी वह मौजू नहीं है।इस अवसर पर भावुक 'नमो' को देखकर मन ही मन गुनगुनाना पड़ा -की ''नहीं मैं नहीं देख सकता तुझे रोते हुए " वेशक चुनाव के दरम्यान और अन्य कई मौकों पर वे जुबान से बार-बार फिसले हैं. उन्होंने गुजरात विकाश का झूंठा प्रचार किया है। मैने हर बार उनके हर झूंठ का निरंतर पुरजोर विरोध किया है। कभी भी 'नमो' के किसी अवांछित वक्तव्य या कृतित्व का समर्थन नहीं किया। मैं उनके तानाशाह-साम्प्रदायिक स्वरूप को लोकतंत्र के खतरे के रूप में देखा करता था . लेकिन संसद के इस प्रथम भाषण में उनकी आँखों में आये वास्तविक आँसुओं की अनदेखी मैं नहीं कर सका !दिल के किसी कोने से आवाज आई कि संशय मत करो -यही मोदी की असल तस्वीर है! जो उनकी आँखों में विनम्रता और कृतज्ञता के साथ अश्रुपूरित है। संसद में उनका यह विशुद्ध भारतीय और विनम्र रूप यदि वास्तविक ,निर्मल ,पवित्र और निष्पाप है तो उनके तमाम समर्थकों और विरोधियों -दोनों को ही नरेंद्र भाई मोदी के बारे में अपनी स्थापित 'अवधारणा' पर पुनर्विचार करना पडेगा !
जब भारत के बहुमत जन को उम्मीद है कि नरेंद्र भाई मोदी - न केवल प्रधानमंत्री के रूप में बल्कि एनडीए के नेता के रूप में -भारत के लोकतंत्र की प्राणपण से रक्षा करेंगे,तो इसमें किसी को शक तब तक नहीं करना चाहिए जब तक कोई ठोस कारण मौजूद न हो। इसीलिये मुझे यकीन है कि मेरे देश में अभी तो कम - से -कम - निरंकुश तानाशाही का बहरहाल कोई खतरा नहीं है । वेशक दक्षिणपंथी कटटर पूंजीवाद के ,मंहगाई के ,शोषण के ,उत्पीड़न के भयावह राक्षस मुँह बाए खड़े हैं। भारत के करोड़ों मेहनतकशों के हितों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं ,अतएव लड़ाई केवल 'नमो' बनाम शेष नहीं बल्कि'शोषित जनता वनाम शोषक शासक' की होनी चहिये !लड़ाई व्यवस्था परिवर्तन की होनी चाहिए। यथास्थतिवादियों को मुबारकवाद ! क्योंकि नरेंद्र भाई मोदी जी वर्तमान व्यवस्था के बेहतरीन पहरुए सावित होंगे ! इसका संतोषजनक अर्थ यह भी है कि पूँजीवादी संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम रखने को मोदीजी मजबूर रहेंगे। तब उन पर तानाशाही की तोहमत या अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की बात बेमानी है ! चूँकि भारतीय मानसिकता ही लोकतांत्रिक है। इसके मूल्य ही जनतातंत्रिक हैं,तब भारत में नरेंद्र भाई मोदी तो क्या कोई भी,कभी भी तानाशाह नहीं बन सकता !
श्रीराम तिवारी
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