स्पष्ट जनादेश , भरपूर बहुमत , आधुनिक भामाशाहों के -तन -मन -धन की स्वाभाविक उत्तराधिकारणी नयी भारत सरकार ने,शायद ज्योतिष्यों की सलाह पर ही शपथ ग्रहण की होगी !लेकिन इस सरकार को उसके हर कदम पर अपशकुन से सामना हो रहा है। वेशक देश की अवाम याने आम जनता को तो इस सरकार से और खास तौर से मोदी जी से बहुत सी उम्मीदें हैं। लेकिन बदकिस्मती से उन अनचाही घटनाओं ने बिल्ली बनकर रास्ता काटना शुरूं कर दिया है जो इस सरकार की 'वैचारिक' कोख से ही उत्पन्न हो रहीं हैं। कश्मीर से संबंधित धारा ३७० पर पक्ष-विपक्ष की अप्रिय बयानबाजी से दुनिया भर में, भारत के नए नेत्तव की अपरिपक्व छवि बड़ी तेजी उभरने लगी है। सकारात्मक सन्देश और बेहतरीन अभिनन्दन से गदगद - पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और अन्य दक्षेश नेताओं के अपने-अपने देश वापिश पहुँचने के २४ घण्टे के अंदर ही भारतीय नेतत्व की यह अनिष्णांत छवि दरपेश होने लगी है।कि जनता का एक-एक क्षण युगो-युगो के बराबर बीत रहा है। चूँकि पूर्ववर्ती सरकार ने जनता का कचूमर निकाल दिया था ,और नयी सरकार से लोगों को अनेक आशाएं बंधी हुई हैं। किन्तु कुछ अप्रत्याशित दुर्घटनाओं और राजनीतिक फैसलों से जनता में ,मीडिया में नकारात्मक सन्देश पहुंचा है। नयी सरकार और नेतत्व की सफलता पर संदेह के बादल मंडराने लगे हैं।
विगत ४८ घंटों के अंदर न केवल जमीन पर ,न केवल आसमान में ,न केवल समुद्र में बल्कि नयी सरकार के प्रभा मंडल पर भी 'अप्रिय' हादसे की अनुगूंज ध्वनित हुई है।३६ घंटे पूर्व उत्तरप्रदेश में -गोरक्षधाम एक्सप्रेस -भयानक रेल दुर्घटना में भीषण जान-हानि , २४ घंटे पूर्व बहरीन और दुबई के बीच समुद्री लुटेरों द्वारा -भारतीय युद्धपोत पर हमला, ४० घंटे पूर्व -आसमान से मिग-२१ का धरती पर भूलुंठित होना,२४ घंटे पूर्व -बरेली के पास बहराइच से दिल्ली जा रही प्राइवेट बस का दुर्घटनाग्रस्त होना और बीसियों लोगों की अकाल मौत । घायल और अंग-भंग की हालात दयनीय। इन हादसों की और शायद सरकार का ध्यान हो किन्तु यह बहुत मर्मान्तक है कि उस नेत्त्वकारी क्षमता का नितांत अभाव परिलक्षित हो रहा है जो चुनावी सिंह गर्जना के रूप में देखी -सुनी गई है। इन बदतरीन हालात को देखकर कहा जा सकता है कि मनमोहनसिंह सरकार शायद इससे अच्छी थी।यदि मनमोहनसिंह या किसी और की सरकार में इतने हादसे ३६ घंटों में हुए होते तो अब तक भाजपा वालों ने १० बार त्यागपत्र मांग लिया होता।
केवल मानवीय या प्रशासनिक अक्षमताओं का ही मसला नहीं है। मसला ये भी है कि 'गाँव वसा नहीं और मांगने वाले पहले पहुँच गए' याने अभी से शिवसेना की नाराजगी या उनके सामने झुकने की खबरें आने लगी हैं। भाजपा में अनेक सुशिक्षित -संस्कारित और अनुभवी नेतत्व उपलब्ध होते हुए भी मंत्रीमंडल में कम अनुभव या कम शैक्षणिक योग्यता वाले चहरों को किस फार्मूले पर तरजीह क्यों दी गई यह भी आम चर्चा और आलोचना का विषय बन गया है। वेशक नयी सरकार को उचित समय दिया जाना चाहिए।उसके रिपोर्ट कार्ड का आधार ७२ घंटे नहीं हो सकते। किन्तु यह भी जरूरी है कि जो वादे किये हैं उन्हें आप भले ही पूरा न कर सकें किन्तु कम से कम दुर्घटनाओं को ,हिंसा को ,बलाकार को और मंहगाई को रोकने की कोशिश करते हुए तो दिखाई दीजिये । 'गुड गवर्नेस ' की कुछ तो मिशाल पेश कीजिये हुजूर ! अब कांग्रेसी प्रवक्ता अजय माकन क्या कहते हैं,उमर अब्दुल्ला क्या कहते हैं ,दिग्विजयसिंह क्या कहते हैं , इससे बौखलाने की क्या जरुरत है ? याद रखिये अब आप सत्ता पक्ष में हैं.आपको विपक्ष जैसा व्यवहार नहीं बल्कि सत्ता पक्ष की गंभीरता दिखानी है। विपक्ष की आलोचना तो लोकतंत्र की प्राण वायु है उससे प्रेरणा या नसीहत लेना ही समझदारी है । प्रत्याक्रमण की जरुरत उनके खिलाफ है जो लोकतांत्रिक दायरे से बाहर हैं।आप अपनी रेखा बड़ी करके दिखाएँ न कि हारे हुए लोगों से तुलना करें। हारने वाले तो हारे ही इसलिए हैं कि उन्होंने आपको बेहतर माना।
अब आप ही सरकार हैं ,आप ही सर्वशक्तिमान हैं ,आप ही की बारी है कि कुछ बेहतर करके दिखाएँ !
ताकि जनता जनार्दन कह उठे 'बढियां सरकार -मोदी सरकार ! 'अबकी बार -बेहतर सरकार '
श्रीराम तिवारी
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