जब स्वयं नरेंद्र भाई मोदी संसद के केंद्रीय हाल में अपने भाजपाई सांसदों और एनडीए के साथियों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि "ये विजय हमारी पांच पीढ़ियों के बलिदान का परिणाम है ''अर्थात संघ परिवार के १०० साल की 'संघर्ष यात्रा ' का परिणाम है [बल हमारा]तो वे सही कहते हैं। लेकिन इसका यह अर्थ भी तो होता है कि इन चुनावों में बाकई कोई मोदी लहर नहीं थी। वेशक जीतने वालों की जीत और हारने वालों की हार पर अनेक तर्क-वितर्क किये जा सकते हैं। मिथक गढ़े जा सकते हैं। किन्तु जब एनडीए ,भाजपा या नरेंद्र मोदी के बाहरी -भीतरी आलोचक[इनमे आडवाणीजी सुषमाजी को भी शामिल करें ] कहते हैं कि "ये मोदी लहर ही नहीं बल्कि कांग्रेस और सत्तारूढ़ यूपीए तथा अन्य जातिवादी -धर्मनिरपेक्ष दलों के खिलाफ जबरदस्त एंटी इन्कम्बेंसी फेक्टर का भी परिणाम है। तो 'संघ परस्तों' के माथे पर बल क्यों पड़ जाते हैं।सर्व विदित है कि चूँकि आम जनता का बहुमत बहुत नाराज था ,जिसे 'संघ परिवार'ने अपनी अनुषंगी राजनैतिक पार्टी भाजपा के पक्ष में बेहतरीन ढंग से भुना लिया है " वेशक उन्होंने इतिहास में पहली बार बहुसंख्यक हिन्दू आवाम के वोटों की ताकत को एकजुट करने में जबरदस्त सफलता पाई है। 'नमो' नाम केवलम के कटटर अनुयाइयों को ओरों का यह विश्लेषण नागवार क्यों गुजरता है ?जबकि नरेंद्र मोदी जी ने स्वयं अपनी पार्टी की इस पहली संसदीय बैठक में वही सब कहा है जो उनके आलोचक कहते आये हैं। जिन्हे कोई शक हो वे आज दिनांक २०-मई को संसद के केंद्रीय हाल में दिए गए 'नमो'के भाषण की वीडियो रिकॉर्डिंग देख-सुन सकते हैं।
आलोचकों का कहना है कि नमो' के नेतत्व में'संघ परिवार'और भाजपा ने इन आम चुनावों के मद्देनजर जो 'मिशन-२७२' रखा था उसमें 'राम मंदिर 'धारा -३७० ,सामान नागरिक संहिता या दक्षिणपंथी अर्वाचीन अजेंडे पर भले ही कोई विशेष जोर नहीं दिया हो किन्तु उन्होंने खुले तौर पर तो चुनाव प्रचार में जुटे अपने हमदर्द-हमसोच मीडिया सेल ,जरखरीद -समस्त संचार माध्यमों और दुमछल्ले - नेटवर्क को इस प्रोपेगंडा में लगा ही दिया था कि वह समृद्ध भारत, गुजरात विकाश मॉडल , युवाओं के लिए बेहतरीन सुहाने सपने , बेहतर सुशासन , राष्ट्रीय सुरक्षा , एवं 'कांग्रेस मुक्त भारत का तिलस्म पेश करते रहें । इसके साथ- साथ 'संघ' की विशाल सेना को 'लाम' पर आदेश था कि परोक्षतः 'हिन्दुत्व की एकता' को वोटों में बदलने का काम करने में जुटी रही ।प्रकारांतर से श्री मोदी जी ने यह स्वयं अपने उपरोक्त भाषण में स्वीकार किया है।
उन्होंने पंडित दीन दयाल उपाध्याय जैसे बलिदानियों को याद कर 'चरैवेति-चरैवेति' को याद कर उनका अनुग्रह स्वीकार किया यह उनकी ज़र्रानवाज़ी है। उन्हें याद करते हुए मोदी जी ने कहा- ये चुनाव परिणाम 'संघ' की सालों पुरानी साधना का परिणाम हैं। तो मैं क्यों न कहूँ कि नरेंद्र मोदी तो मात्र "निमित्तमात्र :च भवसव्य साचिन्ह " ही हैं। फिर मेरे कथन पर किसी को आपत्ति क्यों होनी चाहिए ? जो मेरे जैसे छुद्र की टिप्पणी पर एतराज करते हैं वे मोदीजी के इस भाषण का अधीन जोर कर लें। उसका सारांश भी वही है जो उनके आलोचक कहते आये हैं। एक ओसत बुद्धि का आम आदमी भी जानता है कि भारत दुनिया का वो अमीर मुल्क है जहां दुनिया के सर्वाधिक गरीब रहते हैं.भारत को पूंजीपतियों -भूस्वामियों ने बंधक बना रखा है. भारत को इन पूंजीपतियों -बड़े जमींदारों ,भृष्ट ठेकेदारों और कमींन -ऐयाश अफसरों से मुक्त कराने पर ही 'नमो' अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। चूँकि वे इस विषय पर मौन हैं ,उन्हें भारत के भृष्ट अमीरों ने चुनाव में पैसा दकर जकड़ लिया है। उनसे मुक्त हुए बिना केवल लच्छेदार भाषण देकर 'नमो'भारत का उद्धार कैसे कर सकेंगे ?
विगत कुम्भ मेले से लेकर नरेंद्र मोदी की 'वनारसी शोभा यात्रा ' तक जिस समस्त 'संत समाज' ने उनके पक्ष में महती भूमिका अदा की है वो इस भृष्ट व्यवस्था के खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठाता ? जिस विश्व हिन्दू परिषद ने,'संघ ' के तमाम अन्य आनुषंगिक संगठनों ने - प्राणपण से भरपूर चुनावी मदद की और 'नमो' के 'मिशन २७२ ' को मिशन ३२२ तक ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की वो भृष्ट पूँजीपतियों और रिश्वतखोर अफ़सरशाही के खिलाफ मौन क्यों है ? भारत को विश्व पटल पर ससम्मान स्थापित कराने और देश का आगामी ५ साल में कायकल्प करने का संकल्प व्यक्त कर 'नमो' ने अपने पहले ही संसदीय सम्बोधन में यह सन्देश देने में बहले ही सफलता प्राप्त कर ली हो कि उन्हें केवल 'गोधरा काण्ड' वाला मोदी न समझा जाए। हो सकता है कि वे इससे आगे अपना कोई विशेष विजन भी रखते हों ! किन्तु खेद की बात है कि मोदी जी के इस शानदार,भावनात्मक ,कृतग्यतापूर्ण - ऐतिहासिक भाषण में केवल कोरे आदर्शवाद और वितंडावाद का ही बोलबाला रहा। उनके इस भाषण में देश के गरीबों-किसानों की , देश की आर्थिक दुरावस्था की ,मंहगाई की , भृष्टाचार -रिश्वत और कदाचार से निपटने की,ह्त्या -बलाकार -लूट से निपटने की कोई मंशा जाहिर नहीं हो सकी।
श्रीराम तिवारी
आलोचकों का कहना है कि नमो' के नेतत्व में'संघ परिवार'और भाजपा ने इन आम चुनावों के मद्देनजर जो 'मिशन-२७२' रखा था उसमें 'राम मंदिर 'धारा -३७० ,सामान नागरिक संहिता या दक्षिणपंथी अर्वाचीन अजेंडे पर भले ही कोई विशेष जोर नहीं दिया हो किन्तु उन्होंने खुले तौर पर तो चुनाव प्रचार में जुटे अपने हमदर्द-हमसोच मीडिया सेल ,जरखरीद -समस्त संचार माध्यमों और दुमछल्ले - नेटवर्क को इस प्रोपेगंडा में लगा ही दिया था कि वह समृद्ध भारत, गुजरात विकाश मॉडल , युवाओं के लिए बेहतरीन सुहाने सपने , बेहतर सुशासन , राष्ट्रीय सुरक्षा , एवं 'कांग्रेस मुक्त भारत का तिलस्म पेश करते रहें । इसके साथ- साथ 'संघ' की विशाल सेना को 'लाम' पर आदेश था कि परोक्षतः 'हिन्दुत्व की एकता' को वोटों में बदलने का काम करने में जुटी रही ।प्रकारांतर से श्री मोदी जी ने यह स्वयं अपने उपरोक्त भाषण में स्वीकार किया है।
उन्होंने पंडित दीन दयाल उपाध्याय जैसे बलिदानियों को याद कर 'चरैवेति-चरैवेति' को याद कर उनका अनुग्रह स्वीकार किया यह उनकी ज़र्रानवाज़ी है। उन्हें याद करते हुए मोदी जी ने कहा- ये चुनाव परिणाम 'संघ' की सालों पुरानी साधना का परिणाम हैं। तो मैं क्यों न कहूँ कि नरेंद्र मोदी तो मात्र "निमित्तमात्र :च भवसव्य साचिन्ह " ही हैं। फिर मेरे कथन पर किसी को आपत्ति क्यों होनी चाहिए ? जो मेरे जैसे छुद्र की टिप्पणी पर एतराज करते हैं वे मोदीजी के इस भाषण का अधीन जोर कर लें। उसका सारांश भी वही है जो उनके आलोचक कहते आये हैं। एक ओसत बुद्धि का आम आदमी भी जानता है कि भारत दुनिया का वो अमीर मुल्क है जहां दुनिया के सर्वाधिक गरीब रहते हैं.भारत को पूंजीपतियों -भूस्वामियों ने बंधक बना रखा है. भारत को इन पूंजीपतियों -बड़े जमींदारों ,भृष्ट ठेकेदारों और कमींन -ऐयाश अफसरों से मुक्त कराने पर ही 'नमो' अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। चूँकि वे इस विषय पर मौन हैं ,उन्हें भारत के भृष्ट अमीरों ने चुनाव में पैसा दकर जकड़ लिया है। उनसे मुक्त हुए बिना केवल लच्छेदार भाषण देकर 'नमो'भारत का उद्धार कैसे कर सकेंगे ?
विगत कुम्भ मेले से लेकर नरेंद्र मोदी की 'वनारसी शोभा यात्रा ' तक जिस समस्त 'संत समाज' ने उनके पक्ष में महती भूमिका अदा की है वो इस भृष्ट व्यवस्था के खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठाता ? जिस विश्व हिन्दू परिषद ने,'संघ ' के तमाम अन्य आनुषंगिक संगठनों ने - प्राणपण से भरपूर चुनावी मदद की और 'नमो' के 'मिशन २७२ ' को मिशन ३२२ तक ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की वो भृष्ट पूँजीपतियों और रिश्वतखोर अफ़सरशाही के खिलाफ मौन क्यों है ? भारत को विश्व पटल पर ससम्मान स्थापित कराने और देश का आगामी ५ साल में कायकल्प करने का संकल्प व्यक्त कर 'नमो' ने अपने पहले ही संसदीय सम्बोधन में यह सन्देश देने में बहले ही सफलता प्राप्त कर ली हो कि उन्हें केवल 'गोधरा काण्ड' वाला मोदी न समझा जाए। हो सकता है कि वे इससे आगे अपना कोई विशेष विजन भी रखते हों ! किन्तु खेद की बात है कि मोदी जी के इस शानदार,भावनात्मक ,कृतग्यतापूर्ण - ऐतिहासिक भाषण में केवल कोरे आदर्शवाद और वितंडावाद का ही बोलबाला रहा। उनके इस भाषण में देश के गरीबों-किसानों की , देश की आर्थिक दुरावस्था की ,मंहगाई की , भृष्टाचार -रिश्वत और कदाचार से निपटने की,ह्त्या -बलाकार -लूट से निपटने की कोई मंशा जाहिर नहीं हो सकी।
श्रीराम तिवारी
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