धर्मनिरपेक्षता का स्वांग भी अजीब है ,
धर्मभीरु जनता पाखंडियों के करीब है।
हिन्दू -राष्ट्रवाद का सिद्धान्त भी अजीब है ,
पिछडा -दलित 'मनुवाद' के करीब हैं ।
मुसीबतों से घिरा मुल्क लोकतंत्र पस्त है ,
जनता ही मांगे तानाशाही की सलीब है।
भारतीय लोकतंत्र कुटा -पिटा -धनतंत्र ,
दलाल जो अमीरों के वो सत्ता के करीब हैं।
गणतंत्र गुम हुआ हुड़दंगियों की भीड़ में ,
जात -पाँत -मजहब जिनको मुफीद है।
नहीं कोई नीतियां न ही कोइ कार्यक्रम ,
सोलहवीं संसद के चुनाव कुछ अजीब है।
श्रीराम तिवारी
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