रविवार, 11 मई 2014

सोलहवीं संसद के चुनाव कुछ अजीब है।


            धर्मनिरपेक्षता का स्वांग  भी अजीब है ,

          धर्मभीरु जनता पाखंडियों के करीब है।



       हिन्दू -राष्ट्रवाद का  सिद्धान्त  भी अजीब  है ,

      पिछडा -दलित   'मनुवाद'  के करीब हैं ।


  
     मुसीबतों से घिरा मुल्क लोकतंत्र पस्त है ,

      जनता  ही मांगे  तानाशाही की सलीब है।

  

      भारतीय  लोकतंत्र  कुटा -पिटा -धनतंत्र ,

      दलाल  जो अमीरों  के वो सत्ता के करीब हैं।


    गणतंत्र गुम  हुआ  हुड़दंगियों की भीड़ में ,

   जात -पाँत -मजहब  जिनको  मुफीद है।


 नहीं कोई नीतियां न ही  कोइ कार्यक्रम ,

 सोलहवीं संसद   के चुनाव  कुछ  अजीब है।


   श्रीराम तिवारी



  

 

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