लोक सभा के चुनाव तो फ़क़त लोकतंत्र की झाँकी है।
लहरों ,आँधियों,सुनामियों का परिणाम अभी बाकी है।।
कुछ वोटों से होगी जब किसी की जीत, किसी की हार ,
तब क्यों न कहें कि दिग्भर्मित भीड़ का जनादेश बाकी है।
मानवीय मूल्यों का घोर पतन, जाति -धर्म की पूँछ -परख,
कुछ फासिज्म की सिहरन भी इस मुल्क ने आंकी है।
हो सकता है विचारक इसे मात्र परिकल्पना ही कहते रहें ,
और कहते रहें कि अभी तो इसका अनुप्रयोग भी बाकी है ।
मानवीय संवेदनाओं के बरक्स जो खास बात है इस मुल्क में
गंगा -जमुनी तहजीव और सहिष्णुता ,वो बात मैने आंकी है।
आने वाली आँधियाँ वेशक मगरूर दरख्तों को गिरा देंगी ,
लेकिन उन शाखों का कुछ न बिगड़ेगा ,जिनमें लचक बाकी है।
श्रीराम तिवारी
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