रविवार, 11 मई 2014

दिग्भर्मित भीड़ का जनादेश बाकी है।



        लोक सभा के चुनाव तो  फ़क़त लोकतंत्र की झाँकी  है।

      लहरों ,आँधियों,सुनामियों  का परिणाम अभी  बाकी है।।

       कुछ  वोटों से  होगी जब किसी की जीत, किसी की हार ,
     
      तब क्यों न कहें कि  दिग्भर्मित  भीड़  का  जनादेश बाकी है।

     मानवीय मूल्यों का घोर पतन, जाति -धर्म की पूँछ -परख,

    कुछ फासिज्म की सिहरन भी  इस  मुल्क ने आंकी है।

     हो सकता है  विचारक इसे  मात्र परिकल्पना  ही  कहते रहें  ,

     और कहते रहें कि अभी तो इसका  अनुप्रयोग भी  बाकी है ।

     मानवीय संवेदनाओं के बरक्स जो खास  बात  है इस मुल्क में

    गंगा -जमुनी तहजीव और  सहिष्णुता ,वो  बात मैने आंकी है।

   आने वाली  आँधियाँ वेशक मगरूर दरख्तों को गिरा देंगी ,

   लेकिन  उन शाखों का कुछ न बिगड़ेगा ,जिनमें लचक बाकी है।

                  श्रीराम तिवारी

  

   

  

   

     

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