मंगलवार, 13 मई 2014

जिन्हे बम्फर जीत का 'फील-गुड' हो रहा हो वे जरा पीछे मुड़कर २००४ का 'इंडिया शाइनिंग ' भी याद रखें !




   चुनाव परिणाम आने से पूर्व ही  देशी-विदेशी निवेशक  बाजार [सेंसेक्स]को  'तेजी'दे रहे हैं। महँगाई  बढ़ाकर  'नमो' को नमस्कार कर रहे हैं। एग्जिट पोल के प्रायोजक  जो पहले  भी  २००४, २००९ में जूते खा चुके हैं, वे  भी  समवेत स्वरों में बड़ी ही वेशर्मी से  'नमो' का प्रसस्तिगान कर रहे हैं। इस विजयगान किंबहुना  'नमोगान' का दक्षिण पंथी मीडिया घराने निरन्तर  बखान  कर रहे हैं। कांग्रेस यूपीए ओर डॉ मनमोहनसिंह  के १० सालाना कार्यकाल से निराश-  भारत के न केवल  मध्य्मवर्गीय दिग्भर्मित युवाओं ने, बल्कि जातियों-खापों और धार्मिक  उन्मादियों  की भीड़ ने  भाजपा और 'संघ'  परिवार के प्रतिनिधि श्री नरेन्द्र मोदी पर 'दाँव ' लगा  रखा  था।
                        वेशक यूपीए -२ का कार्यकाल उसकी नीतियां ओर राष्ट्रव्यापी भृष्टाचार  ने  भी जबर्दस्त एंटी-इन्कम्बेंसी  फेक्टर का  निर्माण किया है।  चूँकि निराश -दिग्भ्रमित अल्प्संखयक वर्ग  ने माया  , ममता  , मुलायम , नीतीश  और  कांग्रेस  के अलावा भाजपा को भी वोट किया है।उधर  दलित-पिछड़ा ओर अल्पसंख्यक वोट इस बार  बिखर    चुका है ,वहीँ 'नमो' के इर्द-गिर्द न केवल सवर्ण समाज बल्कि अधिसंख्य बहुजन समाज और अल्पसंख्यक  भी  एकजुट होते चले गए  हैं. इसलिए   स्पष्ट है की  कांग्रेस और यूपीए का अभी२०१४ के लोक सभा चुनाव में तो कोई  'चांस' नहीं है। यह देश का बच्चा -बच्चा जानता है।  इसमें किसी एग्जिट पोल की महारत का कोई  सवाल  नहीं।  इस संदर्भ में मीडिया की 'अतिशय' प्रस्तुति  भी  महज उबाऊ और  निरर्थक  ही है। सही तस्वीर वोटिंग पर्सेंटेज से आंकी जाएगी। केवल कुछ मतों से किसी की जीत ओर कुछ मतों से किसी की हार लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अहम हिस्सा हो सकता  है. किन्तु किसी की' बम्फर जीत ओर किसी का सूपड़ा साफ़ ' ये शब्दावली लोकतंत्रात्मक नहीं कही जा सकती। इस तरह की   हिंसक शब्दावली  वो भी परिणाम आने से पूर्व ही प्रस्तुत करना एक तरह की मानसिक अय्याशी ही  है। सबको दिख रहा है कि  कुछ  मौकापरस्त राजनैतिक पार्टियाँ  अलायन्स पार्टनर्स के रूप में , भाजपा के नेतत्व  में  एनडीए  की ओर मुखातिब   हो चली हैं।  इसलिए 'संघ परिवार'को  उत्तर  भारत में  कांग्रेस को निपटाने में कुछ  सफलता अवश्य मिलेगी। मोदी के नेतत्व में  सरकार बनाने की संभावनाएं भी फिलवक्त सबसे ज्यादा हैं। क्योंकि अभी तो कोई और विकल्प ही  मैदान में  ही  नहीं है। फिर भी  नरेन्द्र   मोदी को या भाजपा को  उतनी  सफलता नहीं मिलने जा रही है जितनी  की एग्जिट पोल में बताई जा रही  है.यदि एग्जिट पोल इस बार मानलो सही साबित हो भी गए तो उसे  देखने-दिखाने में जिन्हे बम्फर जीत का 'फील-गुड' हो रहा  हो  वे जरा पीछे मुड़कर २००४ का 'इंडिया  शाइनिंग ' भी याद रखें !

                       :-श्रीराम तिवारी  

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