शुक्रवार, 30 मई 2014

अच्छे दिन कब आयंगे ,पूंछ रहे हैं लोग?



   भृष्टाचार से लबालब ,मध्यप्रदेश भरपूर।

   लोकायुक्त की विफलता ,शासन  को मंजूर।।


  नौकरशाही भृष्टतम ,मध्यप्रदेश की आज।

  कार्यवाही की अनुमति , नहीं देते  शिवराज।।


 नमो-नमो सब कोई कहे ,शिव-शिव कहे न कोय।

     जो  वंदा  शिव-शिव कहे ,व्यापम -शापं  होय।। 


   अरविन्द -टीनू  जैसे  , अरबपति धनवान।

   महाभृष्ट हैं दर्जनों  ,आईएएस महान।।


 मंत्री- अफसर  कर  रहे  , सत्ता का दुरूपयोग।

अच्छे दिन कब आयंगे ,पूंछ  रहे    हैं   लोग।।

            
       श्रीराम तिवारी
 

गुरुवार, 29 मई 2014

क्या मौजूदा दौर को मोदी युग का प्रारम्भ' भी कह सकते हैं?



  अंततोगत्वा  श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने  दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक राष्ट्र -भारत का  'प्रधानमंत्री'  बन कर असंभव को सम्भव करके  दिखा ही दिया । उन्होंने यह लक्ष्य  न केवल भाजपा ,न केवल एनडीए,न केवल एक  गैरकांग्रेस वादी  - दक्षिणपंथी पार्टी को  बहुमत दिलाकर  हासिल किया है,बल्कि एक 'चाय वाले ' ने , 'संघ' के एक साधारणस्वयं सेवक ने , भारत के प्रधानमंत्री के रूप में अपने आप को  प्रतिष्ठित करवा कर कर अपनी अजेय शैली का डंका बजाया  है। उन्होंने दुनिया भर के आलोचकों और विरोधियों  से अपनी नेतत्व क्षमता का 'लोहा  मनवा ही  लिया' है।  भारत के  प्रधानमंत्री पद  पर प्रतिष्ठित होने  का माद्दा और नेतत्व का हौसला  दिखा कर  मोदी जी ने  उम्मीदों के अनेक   चिराग भी रोशन किये  हैं।वेशक उनके इस अभियान में ,चुनावी अश्वमेध यज्ञ में  समस्त 'संघ परिवार'का अविरल सहयोग मिलता रहा है। उन्हें भारतीय  भूतपूर्व सामंतों और  उद्द्योगपतियों का संस्थागत सहयोग भी  प्राप्त हुआ है। कार्पोरेट नियंत्रित  मीडिया घरानों का और खुद श्री मोदी के मीडिया  मैनेजमेंट का भी  इस दौर में शानदार तालमेल  रहा है।  राष्ट्रव्यापी मेराथॉन -विराट आम सभाओं और 'चाय  चौपाल'जैसी युक्तियों से उन्होंने देश की अधिसंख्य जनता से जो सीधा संवाद बनाया,जिसकी बदौलत २८२ कमल खिले और उन्होंने  अपने-अंदर बाहर के विरोधियों को जिस 'चाणक्यनीति ' से  शांत किया है वह वेशक श्री नरेंद्र भाई मोदी के  वैयक्तिक  खाते में ही  जमा  किये जाने योग्य है। इसीलिये अभी तो वक्त मोदी जी का ही है। इस दौर में वे भारत के सर्वाधिक शक्तिशाली नेता है। अतएव इस मौजूदा दौर को मोदी युग का प्रारम्भ' भी  कह सकते हैं।

                 आशा है कि अटल युग की भूलों को दुहराया नहीं जाएगा।
         
                       हालांकि इससे  पूर्व इसी 'संघ परिवार' के एक खास चेहरे के रूप में  श्री अटल बिहारी बाजपेई  भी  भारत के प्रधानमंत्री रह  चुके हैं । किन्तु  उनकी एनडीए -प्रथम सरकार ने अर्थात  २२ दलों की खिचड़ी  सरकार ने १९९९ से २००४ तक  के कार्यकाल को  केवल कांग्रेस के अपराध  गिनाने और सरकारी सम्पत्ति को निजी हाथों में बेचने में  ही जाया किया था । अरुण शौरी ,यशवंत सिन्हा और स्वर्गीय प्रमोद महाजन की तिकड़ी ने ऐंसा गुल खिुलाया था कि सर्वत्र  'फील गुड' होने लगा था। उसी गफलत का परिणाम था कि २००४ के आम चुनाव  में एनडीए की शर्मनाक हार  हुई। अटल युग का  'शायनिंग इंडिया' अभी भी  भारत को मुँह  चिढ़ा रहा है।  उसी के कुप्रभाव का परिणाम था कि न केवल २००४ में यूपीए -प्रथम बल्कि २००९ में यूपीए -द्वतीय की हांडी बार-बार सत्ता के चूल्हे पर चढ़ती रही।   'अबकी बार - मोदी सरकार 'के  नारे ने २०१४ के आम चुनाव में ,५४५ की संसद में, एनडीए का  आंकड़ा 'बहुत बड़ा' [३३२] कर दिया है। मोदी जी की बदौलत  भाजपा  को २७२  का नहीं बल्कि २८२ का अपना  स्पष्ट बहुमत गौरवान्वित करता प्रतीत हो रहा है। इसलिए इस बार यही आशा है कि अटल युग की भूलों को दुहराया नहीं जाएगा। 'अबकी  बार-मोदी सरकार '  सार्थकता तभी रेखांकित की जाएगी जब वे अपने [संघ के]एजेंडे को लागू करके दिखाएंगे। जब वे जम्मू-कश्मीर से  धारा ३७०हटा देंगे  , अयोध्या में 'राम -लला ' का  भव्य मंदिर बना देंगे ,आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करवा देंगे ,मेंहगाई  खत्म कर देंगे ,४० लाख करोड़  का कला धन [बकौल स्वामी रामदेव] वापिस भारत ला देंगे , भृष्टाचार -रिश्वतखोरी खत्म कर देंगे ,बेरोजगारों को नौकरी दिल देंगे ,किसानों को उचित संरक्षण तथा मुनाफाखोरों -मिलावटियों  को फांसी दे देंगे।पूरे भारत को गुजरात  ब्राइबेंट से  भी आगे -सिंगापुर,चीन ,जापान या हालेंड बनादेंगे। वेशक मोदी सरकार  जरूर ऐसा  कुछ बेहतर करके दिखाएगी कि न केवल भारत की जनता,बल्कि  दुनिया भी देखती रह जाएगी। क्योंकि उन्हें ऐतिहासिक प्रचंड बहुमत अर्थात स्पष्ट जनादेश मिला है। तब  मोदी सरकार के बेहतरीन परफार्मेंस को देखकर विश्व जनमत भी 'कहेगा की मोदी सरकार - भारत की ही नहीं दुनिया की श्रेष्ठतम सरकार !
दरसल निषेध की शक्तियों ने ज़रा  ज्यादा ही  भूमिका निभाई है  , इन चुनावों में  भाजपा को जिताने में।
   
               वेशक  अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता,लेकिन श्री मोदीजी अपवाद हैं। वे कर सकते हैं। जिसे पानी से  आधा भरा  ग्लास भी शेष हवा से भरा नजर आता है वह परम आशावादी और सृजनशील है,वह प्रचंड   उद्द्य्मशील  है।ऐसे  श्री नरेंद्र भाई मोदी को जिन्होंने भी आगे  बढ़ाया हो - फिर वे चाहे जो हों ! संघ परिवार के मोहनराव  भागवत हों ! एम वैद्द्य हों !संघ  के अन्य सभी बौद्धिक हों !अरुण जेटली हों ,राजनाथ हों, राम  लला  हों !काशी विश्वनाथ हों ,गंगा मैया हों , या 'हीरा बा'जैसी माता हों ! स्वामी रामदेव हों ,सुब्रमण्यम स्वामी हों ,साधु-संत हों !आधुनिक  विकाशवादी हाई  टेक युवा  हों !अल्पसंख्यकवाद और आरक्षणवाद से पीड़ित बहुसंख्यक हिन्दू हों !अल्पसंख्यक वोट बैंक के ठेकेदार -आजमख़ाँ ,ममता,मुलायम और मायावती हों या कांग्रेस हो ! इन चुनावों से पूर्व  गुजरात -मुंबई या विदेशों में बैठे 'नमो ' समर्थक भारतीय पूँजीपति  हों ! सभी ने इस बार के आम चुनाव में  एक शानदार काम  किया है  कि भारत को एक स्थिर सरकार देकर उपकृत  किया है।  भारत की आने वाली पीढ़ियां अवश्य ही इन सभी का शुक्रिया करेंगी !विधि-निषेध -दोनों का ही 'मोदी सरकार'के निर्माण में प्रत्यक्ष या परोक्ष सहयोग रहा  है। दरसल निषेध की शक्तियों ने ज़रा  ज्यादा ही  भूमिका निभाई है  , इन चुनावों में  भाजपा को जिताने में।

कमजोर और निर्बल इस गलाकाट प्रतिद्वंदिता में ज़िंदा रहने के लिए  के लिए प्रयास करेंगे।
  
      अपनी शपथ ग्रहण के मौके पर पाकिस्तान सहित दक्षेश नेताओं को आमंत्रित कर मोदी जी ने  न केवल भारत  की जनता में   बल्कि पड़ोसियों के  मन में भी एक- दूसरे के  प्रति सौजन्यता ,अमन और विश्वाश  के पैगाम का संचार किया है। राष्ट्रीय स्तर पर घोर रूढ़िवादी और कटटर पूँजीवादी  होने के बरक्स आर्थिक और वैदेशिक नीति के अमलीकरण  में श्री मोदी जी सशक्त भारत के शांति-मैत्री वाले 'अटल सिद्धांत' पर चलते हुए प्रतीत हो रहे हैं। वे अपने गुजरात के अनुप्रयोगों में  जापान ,कोरिया  सहित दक्षिण पूर्व एशिया के 'एशियन टाइगर्स ' के समृद्धशाली वैभव के अनुभवों को भी शामिल करने के पक्षधर हैं। प्रत्याशा की जा सकती है कि वे  जनता के कल्याणकारी मदों में कटौती करेंगे  तथा 'देश के नवरत्नों' को निजी धन्ना सेठों के हाथों में सौंप देंगे। कट्टर पूँजीवादी -मिनिमम गवनमेंट -मैक्सिमम गवर्नेस का  सिद्धांत  केवल पूंजीपतियों और ठेकेदारों के हितों की स्वार्थपूर्ति  के काम आता है। आवाम का बड़ा तबका ,निर्धन ,बेरोजगार और अनिकेत जन को इस बाजारीकरण -उदारीकरण या भूमंडलीकरण से कुछ भी हासिल नहीं होना है।   इस सिद्धांत से जो विकसित तथा समृद्ध  हैं वे और ज्यादा तरक्की करेंगे। कमजोर और निर्बल इस गलाकाट प्रतिद्वंदिता में ज़िंदा रहने के लिए  के लिए प्रयास करेंगे।
                                     'नमो' को ललकारने  वाले की ताकत खत्म हो जाती है तथा  वे और ज्यादा  'सुर्खरू' होकर परवान चढ़ते जाते हैं।
   
                  बीते दिनों  के घटनाक्रम पर नजर डालने पर हम स्पष्ट देख सकते  हैं कि श्री नरेंद्र मोदी जी ने जितने भी तीर अभी  तक चलाये हैं उनमें से शायद ही कोई अपने लक्ष्य से भटका हो ! भाजपा में  न केवल अपने  समकक्ष बल्कि वरिष्ठ प्रतिद्व्न्दियो  का  भी उन्होंने  जिस सफलता  और सलीके से सामना किया  वो किसी भी राजनैतिक दल  के लोकतांत्रिक इतिहास में नहीं मिल सकता। उन्होंने एनडीए के  रूठे साथियों को  बड़ी कुशलता से अपने पाले में ला  खड़ा किया। जबकि चुनाव पूर्व  भाजपा के ही कुछ बड़े नेता आस लगाए बैठे थे कि  शायद भाजपा को समुचित बहुमत न मिल पाये और  त्रिशंकु संसद की सूरत में एनडीए के साथी श्री मोदी को नापसंद कर किसी अन्य 'सेकुलर' किस्म के  भाजपा नेता को समर्थन देने पर अड़ जाएं. किन्तु  अफ़लातूनों  के अरमान धरे रह गए और श्री मोदी 'मलंग' हो गए !क्योंकि मोदी जी के अभी तो सभी ग्रह  अनुकूल हैं ! वे सुग्रीव के बड़े भाई -सूर्यपुत्र बाली की तरह हैं, जो कोई  भी उनके सामने शत्रु भाव से आता है या उनके रास्ते में  आड़े  आता है वह फना  हो जाता   है। 'नमो' को ललकारने  वाले की ताकत खत्म हो जाती है तथा  वे और ज्यादा  'सुर्खरू' होकर परवान चढ़ते जाते हैं।

 'नमो' एक 'धर्मयोद्धा'  याने क्रूसेडर से  राजनीति  में परवान चढ़े हैं ,
                  यह सुखद आभास है कि  सत्ता प्राप्ति के उपरान्त 'नमो' सिर्फ वही नहीं कर रहे हैं जो 'संघ' को पसंद है। बल्कि वे वह  भी करने पर आमादा हैं जो देश  की आवाम को  पसंद  है। वे अपने चुनावी वादे भूलने वाले नेताओं में से नहीं लगते। उनका हिन्दी प्रेम  भी उन्हें भारत की जमीनी सच्चाइयों  को नजदीक से जानने -समझने में मदद्गार हो रहा है। चूँकि  'नमो' एक 'धर्मयोद्धा'  याने क्रूसेडर से  राजनीति  में परवान चढ़े हैं ,चूँकि वे आम आदमी से खास बनकर  दुनिया के सामने प्रकट हुए हैं , चूँकि वे फर्श  से अर्श पर पहुंचे हैं ,चूँकि वे एक मामूली 'चाय वाले से भारत के प्रधानमंत्री ' बने हैं ,चूँकि उन्होंने भाजपा को इतिहास में सर्वोच्च विजय दिलाई है ,चूँकि वे कांग्रेस को उसके किये -धरे के लिए निर्ममता से दण्डित करने में सफल रहे हैं ,इसलिए यह आशा की जा सकती है कि  वे देश की जनता को  ,भारतीय लोकतंत्र को और नयी पीढ़ी को निराश नहीं करेंगे। चूँकि श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने किसी वंशवाद ,किसी स्वार्थजन्य  आरामदायक  फिरकापरस्ती या किसी हनुमान कूंद से यह ऐतिहासिक सफलता नहीं पाई है बल्कि उन्होंने पंडित दिनदयाल उपाध्याय ,महात्मा गांधी ,सरदार पटेल और सुभाष चन्द्र  बोस  के बलिदान को ह्रदयगम्य किया है। वे चरैवेति-चरैवेति के उपासक हैं ,वे किसी भी तरह के भाई भतीजावाद ,भृष्टाचार और कालेधन के खिलाफ हैं। आशा की जा सकती  है कि भारतीय इतिहास  में 'मोदी युग'  ही वास्तविक स्वर्णयुग  सावित होगा ! श्री नरेंद्र  भाई मोदी -प्रधान मंत्री - भारत सरकार -की समष्टिगत संफलता ही देश की सफलता है! 'नमो' की यह आर्थिक-सामाजिक -वेदेशिक - राजनैतिक -सांस्कृतिक और सर्व समावेशी विकाश की सफलता ही भारत के सम्मान की गारंटी है !
                     
                श्रीराम तिवारी

 

बुधवार, 28 मई 2014

मेग्ज़िमम मोदी हुए ,मिनिमम है सरकार।।




   जनतंत्र के क्षितिज पर ,बेहतर हैं  आसार।

  मेग्ज़िमम   मोदी हुए   ,मिनिमम  है  सरकार।।

  मिनिमम  है सरकार ,  शक्तियाँ  पीएम ओ में सारी।

  मंदिर -कश्मीर -विवाद  ,आरक्षण की मारामारी। 

  नक्सलवाद आतंक, सुलझेंगी  समस्याएं अब  सारी

 अच्छा किया जनता ने ,देकर जनादेश यह भारी।।


 श्रीराम तिवारी

 

'गुड गवर्नेस ' की कुछ तो मिशाल पेश कीजिये हुजूर !



     स्पष्ट जनादेश , भरपूर बहुमत , आधुनिक भामाशाहों के  -तन -मन -धन की स्वाभाविक उत्तराधिकारणी      नयी भारत  सरकार ने,शायद  ज्योतिष्यों की सलाह पर ही शपथ ग्रहण  की होगी !लेकिन इस सरकार  को उसके हर कदम पर अपशकुन  से सामना हो रहा  है।   वेशक देश की अवाम याने  आम जनता को तो इस सरकार से और खास तौर  से  मोदी जी से  बहुत  सी  उम्मीदें हैं।  लेकिन बदकिस्मती से  उन अनचाही घटनाओं ने बिल्ली बनकर रास्ता काटना शुरूं कर दिया है जो इस सरकार की  'वैचारिक' कोख से ही  उत्पन्न हो रहीं हैं।  कश्मीर से संबंधित धारा ३७०  पर  पक्ष-विपक्ष  की अप्रिय बयानबाजी  से दुनिया भर में, भारत के नए नेत्तव की अपरिपक्व छवि बड़ी  तेजी  उभरने लगी  है। सकारात्मक सन्देश और बेहतरीन अभिनन्दन से गदगद  -  पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और अन्य दक्षेश नेताओं  के अपने-अपने देश वापिश पहुँचने के २४ घण्टे के अंदर ही  भारतीय नेतत्व की यह अनिष्णांत छवि दरपेश होने लगी है।कि  जनता का  एक-एक क्षण युगो-युगो के बराबर बीत रहा है।  चूँकि पूर्ववर्ती सरकार ने जनता का कचूमर निकाल दिया था ,और  नयी  सरकार से लोगों को अनेक आशाएं  बंधी हुई हैं। किन्तु कुछ अप्रत्याशित दुर्घटनाओं और राजनीतिक फैसलों   से जनता  में ,मीडिया में  नकारात्मक सन्देश  पहुंचा है। नयी  सरकार और नेतत्व  की सफलता  पर संदेह के बादल मंडराने लगे हैं।
                   विगत ४८ घंटों के अंदर न केवल जमीन पर ,न केवल आसमान में ,न केवल  समुद्र में  बल्कि नयी  सरकार के प्रभा मंडल पर  भी 'अप्रिय'  हादसे की अनुगूंज ध्वनित हुई है।३६ घंटे पूर्व  उत्तरप्रदेश में -गोरक्षधाम एक्सप्रेस  -भयानक  रेल दुर्घटना में भीषण जान-हानि , २४ घंटे पूर्व बहरीन और दुबई के बीच समुद्री लुटेरों द्वारा -भारतीय युद्धपोत पर हमला, ४० घंटे पूर्व -आसमान  से  मिग-२१  का धरती पर  भूलुंठित होना,२४ घंटे पूर्व -बरेली के पास बहराइच से दिल्ली जा रही प्राइवेट बस का दुर्घटनाग्रस्त होना और बीसियों लोगों की अकाल मौत । घायल और अंग-भंग की हालात दयनीय। इन हादसों की और शायद सरकार का ध्यान हो किन्तु यह बहुत मर्मान्तक है कि उस  नेत्त्वकारी क्षमता का नितांत अभाव  परिलक्षित हो रहा है जो चुनावी सिंह गर्जना  के रूप में  देखी -सुनी गई है। इन बदतरीन हालात को देखकर कहा जा सकता है कि मनमोहनसिंह सरकार शायद इससे अच्छी थी।यदि मनमोहनसिंह या किसी और की सरकार में इतने हादसे ३६ घंटों में हुए होते तो अब तक भाजपा वालों ने १० बार त्यागपत्र मांग लिया होता।
   केवल मानवीय या प्रशासनिक अक्षमताओं का ही मसला नहीं है। मसला ये भी है कि  'गाँव वसा  नहीं और मांगने वाले पहले पहुँच गए' याने अभी से शिवसेना की नाराजगी या उनके सामने झुकने की खबरें आने लगी हैं। भाजपा में अनेक सुशिक्षित -संस्कारित और  अनुभवी नेतत्व उपलब्ध होते हुए भी  मंत्रीमंडल में  कम अनुभव या कम  शैक्षणिक योग्यता  वाले चहरों को किस फार्मूले पर  तरजीह क्यों दी गई यह भी आम चर्चा और आलोचना का विषय बन गया है।  वेशक नयी सरकार को उचित समय  दिया जाना चाहिए।उसके रिपोर्ट कार्ड का आधार  ७२ घंटे नहीं हो सकते।  किन्तु यह भी जरूरी है कि जो वादे किये हैं उन्हें आप भले  ही पूरा न कर  सकें  किन्तु कम  से कम दुर्घटनाओं को ,हिंसा को ,बलाकार को और मंहगाई को  रोकने की कोशिश करते हुए तो  दिखाई दीजिये । 'गुड गवर्नेस '  की कुछ तो मिशाल पेश कीजिये  हुजूर ! अब कांग्रेसी प्रवक्ता अजय माकन  क्या कहते हैं,उमर अब्दुल्ला क्या कहते हैं ,दिग्विजयसिंह क्या कहते हैं ,  इससे बौखलाने की क्या जरुरत है ? याद रखिये अब आप सत्ता पक्ष में हैं.आपको विपक्ष जैसा व्यवहार नहीं बल्कि सत्ता पक्ष  की  गंभीरता दिखानी है।    विपक्ष की आलोचना  तो लोकतंत्र की  प्राण वायु है उससे  प्रेरणा या नसीहत लेना ही समझदारी  है ।  प्रत्याक्रमण  की जरुरत उनके खिलाफ है जो लोकतांत्रिक दायरे से बाहर हैं।आप अपनी रेखा बड़ी करके दिखाएँ न कि हारे हुए लोगों से तुलना  करें। हारने वाले तो हारे ही इसलिए हैं कि  उन्होंने आपको बेहतर माना।
अब आप  ही सरकार हैं ,आप ही सर्वशक्तिमान हैं ,आप ही की बारी है कि कुछ बेहतर करके दिखाएँ !
 ताकि जनता जनार्दन  कह  उठे  'बढियां सरकार -मोदी सरकार ! 'अबकी बार -बेहतर सरकार '

    श्रीराम तिवारी 
       


           शपथ ग्रहण  की वानगी ,देख हुआ जग दंग।

          भले स्वजन  रूठे रहें , या  मजबूरन  संग।। 



          रूठी   दिखी  वसुंधरा ,    आडवाणी बैचेन।

          मुरली मनोहर  की व्यथा,आंसू ढरते नैन  ।।


            शपथग्रहण  शामिल हुए , नेता सब दक्षेश।

           भारत-पाक  मिल-बैठकर  ,दूर करेंगे  द्वेष ।।


           ममता -माया -मुलायम ,नीतीश -जया -नवीन।

           इनके बिना भी बज रही ,'नमो 'नाम की बीन।।


  
            मनसे -जया -उद्धव -अगप , करें सभी विश्राम।

              राजद वसपा सपा संग  ,जदयू  नींद हराम।।



          'नमो''नमो'  के जाप से , भगवा दल खुश हाल ।

           कौन  हैं राहुल -सोनिया ,कौन केजरीवाल।।



           सी बी आई शस्त्र से, खूब कराई जांच।

          फिर भी 'नमो' की विजय पर ,तनिक न आई आंच।।



         माताएं  संसार की ,यह चाहत सब   कोय।

         'हीरा-बा' सा यश मिले ,पुत्र 'नमो' सा होय।।




   श्रीराम तिवारी

 

 

रविवार, 25 मई 2014

शपथ ग्रहण से हो गया , मेरा देश महान।।



   मगन मीडिया हो रहा  ,गावे मंगलाचार।

   दक्षेश नेता  गा  रहे  ,जय दिल्ली दरवार।।


  हाफिज सईद बकता  रहा ,होना नहीं शरीक।

 पर  वो  क्यों न आएंगे  , जिनका  नाम शरीफ।।


   मंत्री पद  वे पा गए  , जिनने किया गुणगान।

   शपथ ग्रहण  से हो गया  , मेरा देश महान।।

                   श्रीराम तिवारी

 

यह तो एक मामूली लहर की आकस्मिक झाँकी है ,असल जनादेश अभी बाकी है !



     भारत में अभी-अभी युगांतकारी  सत्ता परिवर्तन हुआ है।  वैचारिक और नीतिगत  नजरिये से यह परिवर्तन वेशक दक्षिणपंथी एवं पूँजीवादी कहा जा सकता है। किन्तु वर्तमान व्यवस्था के भीतर ही वैयक्तिक या  दलगत  सत्ता परिवर्तन  के उपरान्त  भी  देश में एक उमंग और आशावादी लहर संचरित हो रही है।आवाम का यह क्षणिक  वर्चुअल  आशावाद महज एक आकस्मिक लहर की झाँकी है। असल जनादेश तो अभी भी बाकी है।   इस वर्तमान  जनादेश के पीछे छिपी अपेक्षाओं का विराट रूप इतना दयनीय   है कि उसे   'हाड-मांस 'का कोई'लौह पुरुष'या वीरोचित गुणों से सम्पन्न कोई खास  व्यक्ति तो क्या कोई ' दैवी -  चमत्कार 'भी युगों-युगों तक पूरा नहीं कर पायेगा। विगत दिनों चुनावी घमासान की  रश्मिरथियों  पर सवार मतदाताओं का आइन्दा जब भी  मोहभंग होगा तब वह किसी  'दल-बदलू'  नेता की मानिंद नहीं बल्कि लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी की तरह उसमें अपनी साझेदारी के बरक्स इस  सद्द विजयी निजाम को भी घर बिठाने में कोताही नहीं बरतेगा।
                        चूँकि किसी भी राजनैतिक व्यवस्था  का कालखण्ड अजर-अमर नहीं है । अतीत के अध्यन सहित - विश्व की तमाम आधुनिक राज्य-संस्थाओं और व्यवस्थाओं पर नजर डालें तो वेशक सामंतशाही  या तानाशाही का दौर भले ही कुछ दीर्घजीवी रहा हो. किन्तु लोकतंत्र में सत्ता परिवर्तन का जीवन तो नितांत अल्पजीवी ही हुआ करता है।  इसलिए भारत में  अभी ताजातरीन चुनाव परणामों के बरक्स ठीक उसी की तर्ज पर  यह  भी  संभव है कि  आइन्दा  किसी दौर में  अंततोगत्वा जनता का 'वास्तविक जनादेश भी लोकतंत्र को पुष्ट कर दे। देश की प्रबुद्ध आवाम आइन्दा  किसी और दीर्घकालीन बेहतर परिवर्तन  के लिए  भी लालायित हो सकती  है। यह  भी  संभव  है  कि  बाज मर्तबा वह जनादेश और ज्यादा प्रतिगामी हो जाए या  किसी आत्मघाती   कबीलाई व्यवस्था की ओर फिसलता चला जाये। कभी यह भी  संभव है कि किसी दौर की चैतन्य पीढ़ी अपने दौर की  व्यवस्था को उखाड़ फेंके या  किसी तदनुरूप बेहतर प्रगतिशील उच्चतम क्रांतिकारी परिवर्तन को अपना लक्ष्य घोषित कर दे।तब वह न केवल अपने जातीय, भाषायी ,साम्प्रदायिक आर्बिट से बाहर आकर न   केवल अतिरिक्त राष्ट्रीय ऊर्जा का उत्सर्जन कर सकेगी बल्कि   सत्ता -परिवर्तन के  लिए  'व्यवस्था  - परिवर्तन'  के लिए भी तैयार हो  सकेगी ! आज के  उत्तर - आधुनिकतावादी, समाजशाश्त्री और राजनैतिक विश्लेषक  शायद अनुमान नहीं  लगा सकेंगे कि वर्तमान दौर का 'राजनैतिक परिदृश्य' तो आगामी दौर की  राजनैतिक यात्रा के पूर्व की एक प्रतिगामी  फिसलन मात्र  है।
                       वेशक अच्छे सपने देखने -दिखाने  वाले  और उन्हें पूरे करने के लिए आत्मोत्सर्ग की बात करने वाले ,सर्व समावेशी विकास और गुड गवर्नेस की बात करने वाले नीतिविहीन और आधारहीन  तथ्यों पर हवाई महल बनाने की  हद तक अतिश्योक्तिपूर्ण वाग्मिता के लिए तो अवश्य ही  जिम्मेदार हैं। वरना कौन नहीं जानता कि केवल लच्छेदार भाषणों से  चुनाव तो जीते जा  सकते हैं किन्तु सूखा पीड़ित ,ओला-पाला पीड़ित किसान के परिवार का ,बेरोजगार गरीब -मजदूर का ,निजी क्षेत्र में लगभग गुलामी की हद तक १२ से १८ घंटे काम करने वाले  आधुनिक युवाओं का  पेट नहीं भरा जा सकता। सेंसक्स बढ़ने ,रूपये और डॉलर की नूरा-कुस्ती तथा खर्चीले  'शपथ ग्रहण समारोह' की नाटकीय  भव्यता  से किसी अमीर के  आनंद में इजाफा तो हो सकता है किन्तु किसी गरीब भारतीय  की तकदीर नहीं बदल सकती । इन  'महानायकवादी'प्रदर्शनों से लगता है कि एक और नई गुलामी का जुऑ देश के मेहनतकशों पर लादा जाने वाला है। शायद  ही वे कह सकें किउनके  अच्छे  दिन आ गए  हैं। महज  भड़काऊ  - दिखाऊ,प्रशासनिक आडम्बरों से  भारत के करोड़ों ठेका -मजदूरों का,  बदनसीब अनाथ आबाल-बृद्धों का , पिछड़े इलाके की ग्रामीण जनता  का उद्धार  कैसे हो सकता है? इस तरह के अपव्ययी आडम्बर से निर्धन  भारत की वास्तविक  तस्वीर   कैसे बदल सकती है? ऊँचे सिंहासन चढ़ने वाले यह अवश्य  स्मरण  रखें कि उनकी  इस विजय के हक में केवल देश के ३१% मतदाता ही  उनके सहयात्री रहे  हैं। बाकी के ६९% मतदाताओं  ने  अर्थात वास्तविक बहुमत आवाम ने तो उस  बिखरे हुए विपक्ष को ही  वोट किया है जो मर्मान्तक  हार  से आक्रान्त है।  यही तो भारतीय लोकतंत्र की बिडंबना ही है कि  न केवल इस बार बल्कि अनेकों बार इसी तरह बेहतरीन 'वोट मैनेजमेंट ' और तात्विक ध्रवीकरण  के जरिये संसद में बहुमत  पाने वाले विजेताओं ने जनता का वास्तविक जनादेश शायद ही कभी प्राप्त किया हो!संसदीय संख्या में अप्रत्याशित सफलता और स्पष्ट बहुमत पाने वालों को भी अभी  वास्तविक चुनावी विश्लेषण की दरकार है। 
                   इस १६ वीं लोक सभा के चुनाव में भाजपा ने भले ही अपने बलबूते २८३ सीटों का प्रचंड बहुमत हासिल किया है। किन्तु यह भी काबिले गौर है कि ५४५ में से २८३ सीटें पाकर भी कुल मतदाताओं कामात्र  ३१% वोट ही उसे  प्राप्त  हुआ है।  यह तो  कांग्रेस की बदमिजाजी  और बदकिस्मती का परिणाम है कि १९.३ % वोट पाकर भी वह ४४ सांसद ही जिता  पाई है।  जबकि  २००९ के आम चुनाव में भाजपा को मात्र १८. ५ % वोट मिले थे और उसने ११६ सीटे  जीतीं थीं। इस बार कांग्रेस और भाजपा दोनों का सम्मिलित वोट  टोटल मतदाताओं का %५० से कम ही है. जबकि  गैरकांग्रेस और गैर भाजपा दलों अर्थात लेफ्ट,और अन्य दलों   को मिले  कुल  वोट ५०% से अधिक हैं फिर भी वे आपसी अलगाव और विचारधारात्मक मतैक्य के कारण  संसद की सीटों में संतोषजनक आंकड़ा प्राप्त नहीं कर सके। यह स्मरणीय है कि  इस आम चुनाव  में १० मतदाताओं में से केवल  ४ ने ही एनडीए को वोट किया है ।  'संघ परिवार ' का अथक परिश्रम ,स्वामी रामदेव का 'भारत स्वभिमान ',मोदी जी के मीडिया मैनेजर्स , राजनाथसिंह ,अमित शाह जैसे कद्दावर नेताओं की मेहनत  और स्वयं  मोदी जी की सतत आक्रामक -मैराथन चुनाव सभाओं  के साथ-साथ  - देश  - विदेश के साधन  सम्पन्न अभिजात्य वर्ग  का तन -मन -धन से समर्थन होने के वावजूद यदि भाजपा को मात्र ३१% वोट  ही मिल पाये हैं. तो यह उनके लिए भी चिंतनीय है। वेशक सीटें २८३ मिल गई हों ! किन्तु  क्या यही  वास्तविक जनादेश है ?यदि नहीं तो यह सभी के सोचने का विषय है। यदि ६९% वोट पाकर भी कांग्रेस ,लेफ्ट और  शेष गैरभाजपा दल  बारहबाँट हो चुके हैं और सब मिलकर भी २५० सीट नहीं प्राप्त कर सके तो यह हरल्लों की  चुनावी चूक नहीं तो और क्या है ?क्या यह  भारतीय लोकतंत्र की बिडंबना नहीं  है ? हालांकि इस पूंजीवादी संसदीय प्रजातंत्र में इस तरह की  हार जीत को अंतिम सत्य किसी  ने कभी नहीं  माना ! १९८४ में भाजपा को १८ % वोट मिले थे जबकि उसे  मात्र दो सीटें ही मिली सकीं  थीं । लेफ्ट का तो आजादी के बाद से ही देश में बोलवाला रहा है। अभी भी उसकी मैदानी ताकत ज्यों की  त्यों बरकरार है। केवल गफलत यह हुई की वोट %बढ़ाने के वाबजूद सीटसंख्या नहीं बढ़ा सके। त्रिपुरा में माकपा को शानदार विजय मिलीहै। केरल में संतोषजनक सीटें मिली है।  केवल बंगाल में गच्चा खा गए। इसमें सारा कसूर केवल वाम का ही नहीं है । ममता  और उसकी तृणमूल गुंडा वाहिनी ने बंगाल  में जो पोलिंग बूथ केप्चर किये  हैं ,नृसंस  हत्याएं कीं हैं वे भारतीय लोकतंत्र के लिए बेहद घातक और   शर्मनाक हैं। ममता ने बांग्लादेश के घुसपैठियों को केवल वोटर मानकर महज अपनी जीत के लिए नरेंद्र मोदी  को भी जरुरत से ज्यादा हौआ बनाकर पेश किया। इसी वजह से बंगाल केशतप्रतिशत  मुसलमान ममता  को मुस्लिमों का रक्षक मानकर तृणमूल  को जिताने में जुट गए।  यदि वामपंथ ने  भी ओरों की तरह जाति -धर्म यासामाजिक  ध्रवीकरण की  घटिया राजनीति की होती तो शायद वे भी  बंगाल में ३०-३५ सीटें आराम से जीत जाते। संसद में भले ही कमजोर हों किन्तु संघर्ष के मैदान में वामपंथ अभी भी शेर है।
                      हालाँकि  यूपीए -२ की नाकामी,हद दर्जे के 'ढीले' प्रधानमंत्री मनममोहनसिंह का प्रधानमंत्रित्व तथा 'आम आदमी पार्टी 'का भृष्टाचार उन्मूलन राग भी एक महत्वपूंर्ण फेक्टर है जिसने भाजपा और मोदी जी का काम आसान किया है। महँगाई ,भृष्टाचार और मीडिया द्वारा निर्मित वर्चुअल इमेज ने भी  कांग्रेस सहित अन्य   स्थापित दलों का पाटिया उलाल किया है।  मौजूदा दौर में यह अत्यंत आवश्यक  है कि  जब तलक  व्यवस्था परिवर्तन का सवाल देश के 'बहुमत -जन'को आंदोलित नहीं करता तब तलक इसी व्यवस्था के अंतर्गत 'क्रांति के मूल्यों ' की सुरक्षा उसी तरह जरूरी है जैसे  कि दुर्भिक्ष्य काल में भी किसान अपने 'बीजों' की  प्राणपण से सुरक्षा करता है।

        श्रीराम तिवारी    

शनिवार, 24 मई 2014



        यूपीए पतझड़ हुआ  ,कमल खिले चहुँ ओर ।

        केशरिया रंग  में रँगी  , राजनीति की भोर  ।।


      

     पिछड़े-दलित  के नाम का ,चला न कोई दाँव ।

    माइनर्टीज की धोंस को ,मिला न कोई भाव ।।


     यूपीए की नीतियाँ ,जन -जन हुईं कुख्यात।

    इसीलिये आवाम ने ,  उनको   मारी लात ।।


    वसपा -सपा -जदयू  चुके  , क्षत्रप  चुके   तमाम।

    परिवर्तन की  लहर   से   , बीजेपी गुलफाम।।


       सम्मुख कठिन  चुनौतियाँ ,हावी है धनतंत्र।
                                        
     जो जनता ग़ाफ़िल रही ,तो खतरे में  गणतंत्र ।।


     सुघड़ सुशासन चाहिए ,राष्ट्र विकास के काम।

     जनता से वादे किये ,  पूरे करो तमाम।।


    भारी जीत चुनाव की ,ज्यों आंधी के बेर।

    सत्ता तो चंचल सदा ,  छिनत न लागे देर।।



          श्रीराम तिवारी के [दोहे]
     

   

शुक्रवार, 23 मई 2014

कुछ लोगों का तो वर्तमान साम्प्रदायिक और उन्मादी माहौल ने भेजा पूरी तरह 'विकृत' कर डाला है।




   १४ मई को  जोधपुर  कोर्ट में  यौन उत्पीड़न के आरोपी -संत श्री [?]आसाराम की पेशी हुई । उसी दिन दोपहर को देश  के  अधिकांस चैनलों पर एग्जिट पोल  की धूम मची हुई थी।  सभी चेनल्स  के अपने-अपने अलग  - अलग आंकड़े थे। किन्तु भाजपा और एनडीए को बहुमत  मिलने या  जीतने में किसी भी चैनल  को संदेह नहीं था। भाजपा की जीत की खबर पाकर  सिर्फ देश के दक्षिणपंथी साम्प्रदायिक  उन्मादी ही नहीं बल्कि  ऐय्यास  आसाराम  जैसे जेल में बंद कैदी ,विवादास्पद योग गुरु  स्वामी रामदेव भी बड़े  मदमस्त हो रहे थे , जिन्होंने  न केवल दलितों का  बल्कि  कभी अपने गुरु  का भी मजाक उड़ाया था । इनके अलावा  देश भर की जेलों में बंद  बहुत सारे हत्यारे-बलात्कारी और उपद्रवी भी  बहुत खुश हो रहे थे  कि अब उन सभी के  "अच्छे दिन आने वाले हैं " जब किसी पत्रकार ने जोधपुर  कोर्ट में आसाराम  से पूँछा  कि इस जीत से आप क्या उम्मीद करते हैं तो उनकी प्रतिक्रिया थी "दो दिन  और ठहरो  अब  सब ठीक हो जाएगा " याने उनका भी यही मंतव्य था कि१६ मई के बाद  उनके भी  "अच्छी दिन आने वाले हैं "
                  आज २४-मई -२०१४ को  नई दुनिया के पेज -१८ [अंतिम पेज  पर संछिप्त में छापने के निहतार्थ?]एक दुखद और  भयावह खबर छपी है :-किशोरी के यौन शोषण मामले में जेल में बंद आसाराम के खिलाफ कई मामलों में गवाही देने वाले वैद्द्य अमृत प्रजापति को राजकोट में कल  शुक्रवार को अज्ञात बाइक सवारों ने दिन  -  दहाड़े गोली मार दी है । हमलावर फरार हैं। वैद्य जी गंभीर हालात में राजकोट के "वाक हार्ट'अस्पताल में भर्ती हैं।  हत्यारे वही हैं जो इन दिनों वेहद  'फील गुड''में हैं !  इसीलिये उनके अंदर का शैतान जाग चूका है !ये  बदला ,खून,हत्या , बलात्कार और मुनाफाखोरी  जैसी पैशाचिकता की जद  में आने वाले सभी इन दिनों कह रहे  हैं की "अब अच्छे दिन आ गए हैं " "चलो काम पर लग जाएँ "
             यह ज्ञातव्य है कि यही वैद्द्य जी कभी आसाराम  के अहमदावाद स्थित 'मोटेरा आश्रम ' में चिकत्सीय सेवायें दिया करते थे। आश्रम में चलने वालीं अवैध  गतिविधियों,हवाला कारोबार  और स्वयं आसाराम  - नारायण साईं[पिता-पुत्र] की नई -नई  रास लीलाओं  का उन्होंने वहीं  पर पहले तो डटकर विरोध किया, किन्तु जब  आसाराम  ने  वैद्द्यजी  से  नित्य नई -नई कामोत्तेजक ,मादक ओषधियों की मांग  की तो वे  उनकी इस चारित्रिक कमजोरी से आजिज आकर विरोध पर उतर आये ।  लेकिन अन्तः आसाराम   के कुटिल साम्राज्य  की असीम  दौलत और  साम्प्रदायिक नेताओं से उसके सम्बन्ध ने अमृतु प्रजापति को वहाँ से भागने पर मजबूर कर दिया । जब आसाराम पर जोधपुर कोर्ट में  नाबालिग किशोरी  के यौन उत्पीड़न का मुकदद्मा चला तब प्रमुख गवाह यही वैद्द्यजी थे।  अन्याय और व्यभिचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले -अमृत प्रजापति पर  गुजरात की पुलिस ने  'गुड गवर्नेस'  वाली गुजरात सरकार ने -पागल  कुत्ते  छोड़ दिए हैं। स्वामी रामदेव ,सुब्रमण्यम स्वामी ,श्री श्री रविशंकर ,अशोक सिंघल ,प्रवीण  तोगड़िया  और 'संघ परिवार' तो सिद्धांतः आसाराम के समर्थक और प्रशंशक ही हैं। ये सब बहुत  लाचार हैं कि  घृणित   अपराधियों - ऐय्यास स्वामियों -पाखंडी बाबाओं  के खिलाफ कुछ बोल नहीं सकते ! किन्तु  देश की न्याय प्रिय क्रांतिकारी -चरित्रनिष्ठ - आवाम की क्या मजबूरी है कि  इन  हत्यारे -व्यभिचारियों के खिलाफ आवाज उठाने से डरती  है ?  देश की प्रबुद्ध और सुसंष्कृत  शुशिक्षित  युवा पीढ़ी  उस नकारात्मक  विचारधारा के ख़िलाफ़ मौन  क्यों है जो निकृष्ट ,निर्लज्ज,असामाजिक अनैतिक  और साम्प्रदायिक पाखंडी  पैदा करती है।
                       इस जघन्य अपराध में  वे भी कसूरवार हैं जो केवल शक्तिशाली शासक वर्ग के  मात्र चारण -भाट  हैं। अमृत प्रजापति पर हुए कायराना हमले की निंदा करने मात्र से पवित्र नहीं हो जाएगी गुजरात सरकार ! कुछ तो कसूर उनका भी है जो अभी-अभी  अपनी 'कीर्ति  पताका' फहराकर  ' विजयोन्माद' में आकंठ  डूबे हैं । आनंदी बेन  जब २४ घंटे में ही विफल हो गई तो आगे  अब 'ईश्वर' ही गुजरात का मालिक है ! हालाँकि  देश  के हालात भी गंभीर ही हैं। बस तसल्ली यही है कि "अब अच्छे दिन आने ही वाले हैं "लेकिन अच्छे दिन जब आयंगे तो सबको मालूम पड़  जाएगा  अभी तो न केवल गुजरात , न केवल मध्यप्रदेश ,न केवल छग बल्कि राजस्तान में जितना भृष्टाचार ,लूट  और हत्या की घटनाएँ बढ़ी हैं उतनी और कहीं शायद ही हुई हों ! हद तो ये हो गई कि भोपाल में परसों मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान की माताजी पर ही चोरों ने हमला कर दिया और उनकी 'चैन 'झपट कर ले गए।  हालाँकि  इस घटना को 'दवाने' की कोशिश की गई किन्तु अल-सुबह जिन्होंने 'माताजी'  को  न केवल लूटते हुए बल्कि सड़क पर कराहते हुए देखा  वे  कहाँ -कुछ छिपाने वाले हैं ?  हालाँकि इस आधुनिक दौर में कुछ तो इतने  निर्लज्ज और चरित्रहीन हैं कि  अमृत प्रजापति वैद्द्य पर हुए हमले को भी नकार देंगे। शिवराजसिंह जी की माताजी पर हुए'चेन-झपट' हमले को  भी नकार देंगे।  शायद   कुछ 'अक्ल के ठेकेदारों ' को मेरे इस  आलेख  में किसी राजनीती की 'बू' ही आ  जाएगी। क्योंकि कुछ लोगों का  तो वर्तमान  साम्प्रदायिक और उन्मादी माहौल ने भेजा पूरी तरह 'विकृत' कर डाला है। कुछ तो ऐसी टिप्पणी कर  डालेंगे कि  मानों  आसाराम ,नारायण  साईं  जैसे बलात्कारी  उनके सगे - संबंधी हों !  भोपाल में मुख्यमंत्री की माताजी की चेन लूटने वाले  मेरे आलोचकों के  दामाद हों ! छग में निर्दोश जनता को गोलियों से भूनने वाले उनके बहनोई हों !

      श्रीराम तिवारी 

गुरुवार, 22 मई 2014




    भृष्टाचार के नाम पर ,'आप' ने   किया  धमाल।

     किन्तु सत्ता वे चढ़े   ,जिनने  चल दी 'चाल।।


    धरना  दिए अनेक  तुम  ,करी  भूँख  हड़ताल।

    फिर क्यों दुर्गति 'आप'की , हुई केजरीवाल।।


    कांग्रेस और भाजपा ,  अब नहीं  एक समान।

   हार-जीत का फर्क तो, करता यही  बखान ।। 

                   श्रीराम तिवारी

  

 

बुधवार, 21 मई 2014

भारत में नरेंद्र भाई मोदी तो क्या कोई भी,कभी भी तानाशाह नहीं बन सकता !



 नरेंद्र दामोदरराव  मोदी   को संसद में पहली बार प्रवेश करते हुए , संसद की सीढ़ियों को मत्था टेकते हुए  जिन्होंने नहीं देखा ,मोदी जी को  संसद के केंद्रीय कक्ष में  पहली दफा अति-विनम्र होकर -राग -द्वेष से  परे  होकर-सम्बोधित करते हुए जिन्होंने नहीं देखा , सार्वजनिक तौर से नरेंद्र भाई मोदी को  जिन्होंने 'हिचकी' लेते हुए -आँसू रोकते हुए नहीं देखा , उन्हें कोई हक नहीं की  वे यह उम्मीद करें कि  नरेंद्र मोदी  एक दवंग तानाशाह , हिटलर -मुसोलनी या 'बर्बर' -शासक  हो सकते हैं। मेरा निवेदन मोदी  समर्थकों और विरोधियों -दोनों से  है    'नमो नाम केवलम' का नित्य जाप करने वाले 'संघनिष्ठ'  अर्थात मोदी भाई के अंध समर्थक यदि  मोदीजी से यह उम्मीद करते हैं कि  वे खूखार होकर ,निर्मम होकर अल्पसंख्यकों का नाश करेंगे और केवल 'हिंदुत्व' या हिन्दू पद पादशाही के लिए  समर्पित होकर क़टटर हिदुत्ववाद का भगवा ध्वज भारत में लहराएंगे तो यह उम्मीद करना छोड़ दें।
                मेंरा मंतव्य उनसे भी है जो नरेंद्र भाई मोदी के  धुर विरोधी हैं , आलोचक हैं ,मोदीजी का चेहरा देखते ही टी वी बंद  कर देते हैं। ऐसे लोग भी रंच मात्र यह उम्मीद करना छोड़ दें कि नरेंद्र  भाई मोदी कोई ऐंसा काम  करने वाले हैं जिससे उनके आलोचकों को या कि  प्रतिपक्षियों को  कहने का अवसर मिल सके कि "देखों दुनिया वालो हमने तो पहले ही कहा था कि  ये 'नमो' फासिस्ट हैं ,तानाशाह हैं ,नाजी हैं ,चंगेजखान हैं ,दुर्रानी हैं अब्दाली हैं " वेशक  वे साम्प्रदायिक परिवेश में पले -बढ़े और आम से ख़ास हुए हैं , हो सकता है कि उनके मन में  'हिन्दू   राष्ट्र' की  भावना प्रवलता से हिलोरें ले रही हो,किन्तु वे लाख चाहते हुए  भी भारत को न तो कभी विशुद्ध हिन्दू राष्ट्र  बना  पाएंगे और न ही वे भारत में 'निरंकुश शासन' अर्थात अधिनायकवादी शासन स्थापित कर पाएंगे। क्योंकि इस  देश की मिट्टी में वे तत्व   हैं ही नहीं जिनसे हिटलर ,मुसोलनी ,चंगेज खान ,ईदी अमीन या हलाकू पैदा हो सकें।  वेशक नरेंद्र भाई मोदी बहुत सम्भव है कठोर निर्णय लें ,लोकतांत्रिक प्रक्रिया  का उल्लंघन कर अपने वैयक्तिक निर्णयों को तरजीह दें,अपने  पूर्ववर्ती प्रधान मंत्रियों से बेहतर सुशासन दें और वैश्विक पटल  पर कुछ अनोखा और अद्व्तीय करें.  बहुत संभव है कि वे कुछ गंभीर भूलें और अक्षम्य गलतियां भी  करें किन्तु इन सभी संभावनाओं के सृजन का मूल में नरेंद्र  भाई  मोदी का वह सहज स्वभाव ही परिलक्षित होगा जो उन्होंने संसद में पहली बार पेश किया है।
                                  इस अवसर पर  भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी  ने जब लगभग  आंसू बहाते हुए  करुण   गाथा  पेश की  ,अपने अतीत के संघर्षों और 'संघ परिवार '  के शुरूआती दौर  के साथियों के त्याग-बलिदान की करुण कहानी सुनाई  और वर्तमान ऐतिहासिक विजय को 'मोदी जी की 'कृपा'  बताकर उन्हें विनम्र  प्रणाम' किया तो न केवल भाजपा ,न केवल एनडीए के सांसद बल्कि सारे सुधी दर्शक-श्रोता भी हक्के-बक्के  रह  गए। किन्तु जब नरेंद्र  भाई मोदी ने उन्हें उत्तर देते हुए  कहा कि आडवाणीजी आपने जो 'कृपा' प्रणाम ' शब्द मेरे लिए इस्तेमाल किये हैं वे आइन्दा न करें। मैं जिस तरह अपनी माँ  को सम्मान देता हूँ ,भारत  को अपनी माँ  समझता हूँ उसी तरह 'भाजपा' भी मेरी माँ  ही है। मैं अपने वरिष्ठों के त्याग-बलिदान को नमन करता हूँ !तभी मुझे लगा कि अभी 'नमो ' का चारित्रिक  तथा सार र्रूप में तात्विक मूल्यांकन  होना बाकी है। भाजपा को ऐसा विनम्र नेता मिला इस पर मुझे घोर ईर्षा हो रही है किन्तु संतोष की बात है कि जो विराट बहुमत प्राप्त करने में सफल रहा वो अपनी हिमालयी सफलता से  मदांध नहीं 'हुआ ,ऐसा नेता कभी हिटलर,मुशोलनी या फासिस्ट तानाशाह कैसे हो  सकता है ?प्रायः देखा  गया है कि 'प्रभुता पाय काही मद नाहीं'?
                   नरेंद्र भाई मोदी  के इस भाषण में ऐंसा कुछ भी नहीं था जो अलोकतांत्रिक हो,गर्वोक्तिपूर्ण  हो , तानाशाहों वाला हो,तुनुक मिजाज वाला हो,पूरे भाषण में 'मोदीजी ' ने जो भावात्मकता ,कृतज्ञता और आशावादी दृष्टिकोण पेश किया उसमें  भारतीय नैतिक मूल्यों की झलक अवश्य थी किन्तु किसी तरह के फासिज्म  की  अंध हिन्दुत्ववाद की  दूर-दूर तक  कहीं -कोई अनुगूँज नहीं थी।  वेशक संघ के प्रतिगामी एजंडे के अलावा  भाजपा और मोदी जी की   आर्थिक नीतियां घोर पूँजीवादी  और सर्वहारा विरोधी  भी हैं ,वे कार्पोरेट लाबी के चहेते हैं , फिर भी उन्हें धनबल वाले -प्रचार-प्रशार के मैनेजमेंट ने इस मर्तबा हिन्दू वोटों को एकजुट कर भाजपा को , एनडीए को बम्फर जीत दिलाई है। फिर भी इतना तो अवश्य ही उनको श्रेय दिया जाना चाहिए कि कांग्रेस के कुशासन से  तो बहरहाल उन्होंने अभी -अभी देश को मुक्त कराकर कोई बुरा काम नहीं किया है।
                  मेरा मानना है कि  संसद के हॉल में दिया गया 'नमो' का  अश्रुपूर्ण -प्रथम भाषण किसी भी तरह से नाटकीय नहीं था। इसीलिये उपहास या आलोचना के लिए भी वह मौजू नहीं है।इस अवसर पर भावुक 'नमो' को देखकर मन  ही मन गुनगुनाना पड़ा -की ''नहीं मैं नहीं देख सकता तुझे रोते हुए " वेशक चुनाव के दरम्यान और अन्य कई मौकों पर वे जुबान से  बार-बार फिसले हैं. उन्होंने गुजरात विकाश का झूंठा प्रचार किया है।  मैने  हर बार उनके हर झूंठ का निरंतर पुरजोर विरोध किया है।  कभी भी 'नमो' के किसी अवांछित वक्तव्य या कृतित्व का  समर्थन नहीं किया। मैं उनके तानाशाह-साम्प्रदायिक स्वरूप  को लोकतंत्र के खतरे के रूप में देखा करता था  . लेकिन  संसद के इस प्रथम भाषण में उनकी आँखों में आये वास्तविक आँसुओं  की अनदेखी मैं  नहीं कर सका !दिल के  किसी कोने से आवाज आई कि संशय  मत  करो -यही मोदी की  असल तस्वीर है! जो  उनकी आँखों में विनम्रता और कृतज्ञता  के साथ अश्रुपूरित है। संसद  में उनका यह विशुद्ध भारतीय और विनम्र रूप यदि वास्तविक ,निर्मल ,पवित्र और निष्पाप है तो उनके   तमाम समर्थकों और  विरोधियों  -दोनों को ही  नरेंद्र भाई मोदी के बारे में अपनी स्थापित 'अवधारणा' पर पुनर्विचार करना पडेगा !
                 जब  भारत के बहुमत जन को उम्मीद है कि नरेंद्र भाई मोदी - न  केवल प्रधानमंत्री के रूप में बल्कि एनडीए के नेता के रूप में -भारत के लोकतंत्र की  प्राणपण से रक्षा करेंगे,तो इसमें किसी को शक तब तक नहीं करना  चाहिए  जब तक कोई ठोस कारण मौजूद न हो।  इसीलिये मुझे यकीन है कि मेरे देश में अभी तो कम - से -कम -  निरंकुश तानाशाही का बहरहाल कोई खतरा नहीं है ।  वेशक  दक्षिणपंथी कटटर पूंजीवाद के ,मंहगाई के  ,शोषण के ,उत्पीड़न के  भयावह राक्षस मुँह  बाए खड़े हैं।  भारत के  करोड़ों मेहनतकशों के हितों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं ,अतएव लड़ाई केवल 'नमो' बनाम शेष नहीं बल्कि'शोषित जनता वनाम शोषक शासक' की होनी चहिये !लड़ाई व्यवस्था परिवर्तन की होनी चाहिए। यथास्थतिवादियों को मुबारकवाद !  क्योंकि नरेंद्र भाई मोदी जी वर्तमान व्यवस्था के बेहतरीन पहरुए सावित होंगे ! इसका संतोषजनक अर्थ यह भी है कि पूँजीवादी  संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम रखने  को मोदीजी मजबूर रहेंगे। तब उन पर तानाशाही की  तोहमत या अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की बात बेमानी है !  चूँकि  भारतीय मानसिकता  ही लोकतांत्रिक है। इसके मूल्य ही जनतातंत्रिक हैं,तब भारत में  नरेंद्र भाई  मोदी  तो क्या कोई भी,कभी भी तानाशाह नहीं बन सकता !
                                        श्रीराम तिवारी 

मंगलवार, 20 मई 2014

केवल लच्छेदार भाषण देकर 'नमो'भारत का उद्धार कैसे कर सकेंगे ?

 जब स्वयं नरेंद्र भाई मोदी संसद के केंद्रीय हाल में अपने भाजपाई सांसदों और एनडीए के साथियों को सम्बोधित करते हुए  कहते हैं कि "ये विजय हमारी पांच पीढ़ियों के बलिदान का परिणाम है ''अर्थात संघ परिवार के १०० साल की 'संघर्ष यात्रा ' का परिणाम है [बल हमारा]तो वे सही कहते हैं। लेकिन इसका यह अर्थ भी तो होता है कि  इन चुनावों में बाकई  कोई मोदी लहर  नहीं थी। वेशक जीतने वालों की जीत और हारने वालों की हार पर अनेक तर्क-वितर्क किये जा सकते हैं। मिथक गढ़े जा सकते हैं।  किन्तु जब एनडीए ,भाजपा या नरेंद्र मोदी के बाहरी -भीतरी  आलोचक[इनमे आडवाणीजी सुषमाजी को भी शामिल करें ] कहते हैं  कि "ये मोदी लहर ही  नहीं बल्कि कांग्रेस और सत्तारूढ़ यूपीए तथा  अन्य जातिवादी -धर्मनिरपेक्ष दलों के खिलाफ जबरदस्त एंटी इन्कम्बेंसी फेक्टर  का भी  परिणाम है।  तो  'संघ परस्तों' के माथे पर बल क्यों पड़  जाते हैं।सर्व विदित है कि  चूँकि आम जनता का बहुमत  बहुत नाराज था ,जिसे 'संघ परिवार'ने  अपनी अनुषंगी राजनैतिक पार्टी  भाजपा के पक्ष में बेहतरीन ढंग से भुना लिया है " वेशक  उन्होंने इतिहास में पहली बार  बहुसंख्यक  हिन्दू आवाम के वोटों की ताकत  को एकजुट करने में जबरदस्त  सफलता पाई है।  'नमो' नाम केवलम के कटटर अनुयाइयों को  ओरों का यह विश्लेषण  नागवार  क्यों गुजरता है  ?जबकि  नरेंद्र मोदी जी ने स्वयं  अपनी पार्टी की इस पहली संसदीय  बैठक में वही सब कहा है जो उनके आलोचक कहते आये हैं। जिन्हे कोई शक हो वे  आज  दिनांक २०-मई को संसद  के केंद्रीय हाल में दिए गए  'नमो'के  भाषण की वीडियो रिकॉर्डिंग देख-सुन  सकते हैं।
       आलोचकों का कहना है कि  नमो' के नेतत्व में'संघ परिवार'और  भाजपा ने इन आम चुनावों  के मद्देनजर जो  'मिशन-२७२' रखा था उसमें 'राम मंदिर 'धारा -३७० ,सामान नागरिक संहिता या दक्षिणपंथी अर्वाचीन अजेंडे पर भले ही  कोई  विशेष जोर नहीं दिया हो  किन्तु  उन्होंने खुले तौर पर तो  चुनाव प्रचार में जुटे अपने हमदर्द-हमसोच  मीडिया सेल  ,जरखरीद -समस्त संचार  माध्यमों और दुमछल्ले - नेटवर्क को  इस प्रोपेगंडा में लगा ही  दिया  था कि वह  समृद्ध भारत, गुजरात विकाश मॉडल , युवाओं के लिए बेहतरीन सुहाने  सपने , बेहतर   सुशासन  , राष्ट्रीय सुरक्षा , एवं  'कांग्रेस मुक्त भारत  का तिलस्म पेश करते रहें । इसके साथ-  साथ  'संघ' की विशाल सेना  को 'लाम' पर आदेश था कि   परोक्षतः  'हिन्दुत्व  की एकता'  को वोटों में बदलने का काम करने में जुटी  रही ।प्रकारांतर से श्री  मोदी जी ने यह  स्वयं अपने  उपरोक्त भाषण में स्वीकार किया है।
                                  उन्होंने पंडित दीन दयाल उपाध्याय जैसे बलिदानियों को याद कर 'चरैवेति-चरैवेति' को याद कर  उनका अनुग्रह स्वीकार किया यह उनकी ज़र्रानवाज़ी है। उन्हें याद करते हुए मोदी जी ने कहा- ये चुनाव परिणाम 'संघ' की सालों पुरानी साधना का परिणाम हैं। तो मैं क्यों न कहूँ कि  नरेंद्र मोदी तो मात्र  "निमित्तमात्र :च भवसव्य साचिन्ह "  ही हैं। फिर मेरे कथन पर किसी को आपत्ति क्यों होनी चाहिए ?  जो मेरे जैसे छुद्र  की टिप्पणी पर एतराज करते हैं वे मोदीजी के इस भाषण का अधीन जोर कर लें। उसका  सारांश भी वही है जो उनके  आलोचक कहते आये हैं। एक ओसत बुद्धि का आम आदमी भी जानता है कि  भारत  दुनिया का वो अमीर मुल्क है जहां दुनिया के सर्वाधिक गरीब रहते हैं.भारत  को पूंजीपतियों -भूस्वामियों ने बंधक बना रखा है. भारत को  इन पूंजीपतियों -बड़े जमींदारों ,भृष्ट ठेकेदारों और कमींन -ऐयाश  अफसरों से मुक्त कराने पर ही 'नमो' अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। चूँकि वे इस विषय पर मौन हैं ,उन्हें भारत के भृष्ट अमीरों ने चुनाव में पैसा दकर जकड़ लिया है। उनसे मुक्त हुए बिना केवल  लच्छेदार भाषण देकर  'नमो'भारत का उद्धार कैसे कर सकेंगे ?
                विगत कुम्भ मेले से लेकर नरेंद्र मोदी की  'वनारसी शोभा यात्रा ' तक जिस  समस्त 'संत समाज' ने  उनके पक्ष में  महती भूमिका अदा  की है  वो  इस भृष्ट व्यवस्था  के खिलाफ आवाज क्यों नहीं   उठाता ?   जिस  विश्व हिन्दू परिषद ने,'संघ ' के तमाम अन्य आनुषंगिक संगठनों ने - प्राणपण से भरपूर  चुनावी मदद की और  'नमो'  के  'मिशन २७२ '  को मिशन ३२२  तक ले जाने में महत्वपूर्ण  भूमिका अदा की वो भृष्ट पूँजीपतियों और रिश्वतखोर अफ़सरशाही के खिलाफ  मौन क्यों है  ? भारत को  विश्व पटल पर ससम्मान स्थापित कराने और देश का आगामी ५ साल में कायकल्प करने का संकल्प व्यक्त कर 'नमो' ने अपने पहले  ही संसदीय सम्बोधन में यह सन्देश देने में  बहले ही सफलता प्राप्त कर ली  हो कि  उन्हें  केवल 'गोधरा काण्ड' वाला मोदी न समझा जाए।  हो सकता है कि वे इससे आगे  अपना कोई विशेष विजन भी  रखते  हों ! किन्तु खेद की बात है कि  मोदी जी  के  इस शानदार,भावनात्मक ,कृतग्यतापूर्ण - ऐतिहासिक भाषण में केवल कोरे आदर्शवाद और वितंडावाद का ही बोलबाला रहा। उनके  इस भाषण में  देश के गरीबों-किसानों की , देश की  आर्थिक दुरावस्था  की ,मंहगाई की , भृष्टाचार -रिश्वत और कदाचार से निपटने की,ह्त्या -बलाकार -लूट से निपटने की   कोई मंशा जाहिर नहीं  हो सकी। 
           
         श्रीराम तिवारी    

सोमवार, 19 मई 2014

नीतीश नहीं भूले तो ये भारतीय अस्मिता की पूँजी है।



  आम चुनाव में करारी हार  के उपरान्त जहां एक ओर  कांग्रेस और उसके  'नेता ' बचकानी हरकतें करते हुए - अपना भेजा फिराई करने मे व्यस्त हैं ,  अप्रत्याशित चोट से बिलबिलाये तमाम अन्य हरल्ले नेता और पार्टियाँ अवसाद ग्रस्त हो रहीं हैं ,जिस दौर में कार्पोरेट नियंत्रित दक्षिणपंथी  वेशर्म  मीडिया केवल चाटुकारिता और पाखंडजनित विजयगान में मस्त है। इन  बदतर हालात में जबकिउन्मादी  और  खतरनाकतेज बहाव के साथ   मुर्दे भी  तिर  रहे  हैं , इस दशा में भी  देश के राजनैतिक क्षितिज पर लोकतांत्रिक -धर्मनिरपेक्ष जनता को भारत के बेहतर भविष्य और आशा की एक किरण दिखाई दे रही है।  छले गए लोगों को 'सत्य' पर यकीन रखना चाहिए। झूंठ थोड़े समय के लिए ही  परवान चढ़ सकता है ,हमेशा के लिए नहीं। जिनके पास लोकतंत्र समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता की समझ है वे  इस प्रतिगामी कठिन दौर में  भी  अडिग हैं।  इस नकारात्मक   प्रचण्ड  राजनैतिक आंधी के झंझावात में ,समय के तेज  और विपरीत  प्रवाह  में उस के प्रतिकूल  तैरने में ,जो अपना धैर्य बनाये  रखने और सही निर्णय लेने में सक्षम रहे हैं उनमें बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और जदयू नेता नीतीश का नाम इतिहास के पन्नो पर स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। नीतीश ने न  केवल  बिहार की राजनीति को ,न केवल सम्पूर्ण भारत  राजनीति  को  बल्कि भारत के पक्षपाती महापाखण्डी - पूंजीवादी मीडिया को भी मजबूर कर दिया कि  वो ३० % वोट पाकर इतरा रहे तथाकथित विजेयताओं का या  किसी खास नेता  के काल्पनिक पराक्रम का  उसके व्यक्तित्व का महिमा मंडन तो खूब करे किन्तु इस सबसे उसे थोड़ी  फुर्सत मिले तो देश की जनता - उसके संघर्षों और उसके सवालों को  भी  अपने कवरेज में स्थान देने का कष्ट करे !
            चुनावी हार की नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार कर नीतीश ने वही किया जो सच्चे और श्रेष्ठ नेता किया करते हैं।  जीतराम मांझी को  बिहार का मुख्यमंत्री बनवाने और स्वयं  पद से त्याग पात्र देकर नीतीश ने न केवल राजनैतिक परिपक्वता का परिचय दिया  ,चारित्रिक नैतिकता का प्रमाण दिया है, बल्कि यह भी स्थापित किया है कि धर्मनिरपक्ष - 'जनवादी-समाजवादी' विचारधारा  ही वास्तविक लोकतंत्र  के आधारभूत स्तम्भ हैं।  ये मूल्य सर्वकालिक हैं और सदैव प्रसांगिक हैं। वेशक इस मर्तवा सत्ता पक्ष के खिलाफ बेजा 'एंटी इन्कम्बेंसी फेक्टर था , जो नेता और पार्टी साधन सम्पन्न थी ,विकल्प में उपस्थित थी वो   बहुसंख्यक समाज के वोटों  का साम्प्रदायिक और जातीय  ध्रवीकरण  करने में सफल रही। अल्पसंख्यक वोटों के ठेकेदार और दलित-पिछड़ी जातियों के जागीरदार इतने बदनाम  हो चुके हैं की इनमे से जो इस बार जीते हैं वे भी 'सवर्ण' समाज की असीम अनुकम्पा से अभिभूत हैं। इस रौ में वे  यह भूल रहे हैं कि इसमें कार्पोरेट पूँजी की बाजीगरी  का कितनास्वार्थी और   खतरनाक रोल है?  नीतीश नहीं भूले तो ये भारतीय अस्मिता की पूँजी है। बहुसंख्यक समाज के सबल  - जातीय -साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के  परिणामस्वरूप  काठ की हांडी इस बार तो सत्ता के चूले  पर अवश्य ही चढ़ गई  है किन्तु  यह सभी को याद रखना चाहिए कि 'सदा तुरैया न फूले और  सदा न सावन होय  ! सदा न क्षत्रिय रण चढ़े ,सदा न जीवे कोय ! ! परिमालरासो  का यह उद्धरण किसी  की समझ में ना आये तो एक और  उद्धरण पेश है :-

                  ' 'रहिमन हांडी काठ की चढ़े न दूजी बार "

                    श्रीराम तिवारी 

जो कभी औरों का 'चंवर'डुलाया करते थे वे अब खुद का 'चवर'डुलवा रहे हैं।



 आरएसएस की  आनुषंगिक  राजनैतिक आकांक्षा के रूप में कभी  जनसंघ को , कभीं जनता पार्टी को और कभी  वर्तमान  बिकराल अमरवेलि रुपी 'कमल'छाप ,मदमाती - भाजपा को जिन दिग्गजों ने अपने खून पसीने से सींचा है,उनमें -अटल बिहारी बाजपेई , नानाजी देशमुख, दींन  दयाल उपध्याय ,मुरली मनोहर जोशी ,जशवंत सिंह ,विजया राजे सिंधिया ,कुशा भाऊ  ठाकरे  , उमा  भारती , गोविंदाचार्य  ,लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज  के नाम उल्लेखनीय  हैं ।  इनमें से कुछ दिवंगत हो चुके हैं कुछ विभिन्न कारणों से गुमनामी के अँधेरे में जबरन धकेल  दिए गए  हैं। क्योंकि अभी तो अधिनायकवाद  का भूत ,विजय की  आत्ममुग्धता ,सत्ता के लालचियों का दासत्वबोध -चरम पर है। सट्टा  बाजार में,मीडिया में ,साहित्य में  ही नहीं बल्कि राजनीति परिदृश्य पर  भी ये नाम 'अस्पृश्य'  और त्याज्य होते जा रहे हैं। यहाँ तक कि 'कमल पार्टी आफिस' में भी इनका नाम  लेने से लोग डरते हैं ,कि  कहीं 'साहब'नाराज न हो जाएँ ! अब तो कोई महाचमचा,महापातकी,महाशिखंडी कृतघ्न ही कह सकता है कि अच्छे दिन आ गए हैं।  वो कहावत है कि"१२ साल में तो घूरे के  भी दिन भी फिरने लगते हैं " वही भो रहा है। जो कभी अर्श पर थे वे अब फर्श पर हैं। जो कभी  अर्श पर थे वे अब फर्श पर हैं ।  जो   कभी  औरों का  'चंवर'डुलाया करते  थे वे अब खुद का 'चवर'डुलवा रहे हैं।  इसी का नाम पूँजीवादी साम्पदायिक   राजनीति  है। यही दकियानूसी वितंडावाद और वैचारिक पाखंडवाद है। इस धनबल से प्राप्त चुनावी विजय की  मृगमरीचिका याने माया महाठगनी की जय हो !भाजपा की यह  महाविजय  कोई अप्रत्याशित चमत्कार या अनहोनी घटना नहीं है. बल्कि 'संघ परिवार ' की १०० साल से भी ज्यादा पुरानी  निरंतर चली आ रही  'अघोर' तांत्रिक साधना  रुपी  पुरोगामी राजनीती का परिणाम  है. हजारों संघियों और लाखों धर्मांध लोगों ने  समय-समय पर इसधर्मान्धता के  'तामस यज्ञ' में  अपने प्राणों की आहुति दी है। अब कहीं जाकर २०१४ में उसे कुछ संतोषजनक प्रतिसाद  मिला है। लाखों की कुर्बानी का श्रेय जब एक व्यक्ति को दिया जाएगा तो  इस महाझूंठ  पर साक्षात शैतान भी मचलने  लग जाएगा।  इंद्र का 'इंद्रासन' भी डोलने लगेगा। यदि बेलगाडी के नीचे चलने वाला 'पिल्ला'  सोचने लगे कि गाड़ी में ही  हाँक रहा हूँ तो इसमें उसकी अक्लमंदी क्या है ? ये तो उसका भरम ही हैं न !
   
अर्ज किया है ;-

 तेल जरे बाती  जरे ,नाम दिया का होय।

लल्ला खेलें  और के ,नाम पिया का होय।।

          अर्थात बीज बोता कोई और लेकिन 'फसल' काटता कोई और है !

 वेशक अटलजी  को तो वो सब मिल गया जिसके वे हकदार थे। अब भूतपूर्व  प्रधानमंत्री होकर स्वाश्थ लाभ कर रहे हैं। जशवन्तसिंह के साथ जो हुआ ईश्वर ऐसा किसीदुश्मन  के साथ भी न करे। 'राजमाता' तो रही नहीं किन्तु उनकी बेटियां 'फील गुड' में हैं।  पोता जरूर कुछ 'असहज' है । स्व. कुशाभाऊ  ठाकरे  ,दीन दयाल उपाध्याय जी एवं   नानाजी  देशमुख की आत्मा को ईश्वर शांति दे की वे यह 'महालालची'मंजर देखने के लिए अब इस दुनिया में नहीं हैं। यदि वे जीवित  होते तो आज की यह  अडानी-अम्बानी वाली भाजपा का -कार्पोरेट पूँजी की क्रीत दासी का वीभत्स  स्वरूप देखकर बेमौत मर गए होते ! पार्टी कतारों में इन दिवंगत  नेताओं कोई नाम लेवा  भी नहीं बचा है ।एक बेहतर विचारक  गोविंदाचार्य को किनारे लगाने वाले  भी आज खुद ही 'गर्दिश' में हैं। मुरली मनोहर जोशी और लालकृष्ण आडवाणी,सुषमा स्वराज और उमा भारती ,संजय जोशी   जैसे आत्महन्ताओं के ऊपर  जो गुजर रही है उसके लिए कुछ पंक्तियाँ पेश है।

 १- दिल   में  फफोले  पड़  गए ,सीने के दाह से । इस घर को आग लग गई ,घर के चिराग से। [मुरली मनोहर जी को समर्पित]

२-दिल के अरमा आंसुओं में बह गए [आदरणीय आडवाणी जी को समर्पित]

 ३-तूँ [प्रधानमंत्री की कुर्सी] हमारी थी ,जान से प्यारी थी. . . . और की क्यों हो गई [सुषमाजी को समर्पित]

४-जब वक्त ने मांगी कुर्बानी तो सर हमने दिया ,अब गुलशन आबाद है तो कहते हैं ,मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है ?[ उन सभी भाजपाइयों को समर्पित जो चुनचुनकर आइन्दा किनारे लगाए जाने वाले हैं ]

         श्रीराम तिवारी 

रविवार, 18 मई 2014

इसलिए देश का बहुमत मोदी को जिताने के लिए 'कमल 'के साथ हो लिया है !

 भारत  के वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य पर कोई  अवधारणा प्रस्तुत  करने से पहले, मैं विगत  १७ मई-२०१४  को  भोपाल में घटित  एक घटना  की तरफ सभी प्रबुद्धजनों का  ध्यानाकर्षण  चाहूंगा। मध्यप्रेदश की राजधानी भोपाल की अदालत में कल १७-मई को उस समय माहौल गरमा गया जब कड़ी सुरक्षा के बीच  सिमी के  १५  -आतंकवादियों को पेशी कराकर वापिस जेल ले जाया रहा था।  तभी उन्होंने अचानक उग्र नारेबाजी शुरू कर दी। नारेबाजी की शुरुआत फैजल नामक आतंकवादी ने की। उसने कहा "वी वांट तालिवान ,अल्लाह सुपर पॉवर है,अब मोदी का नंबर है "इतना सुनते ही शेष सभी आतंकियों ने भी 'तालिवान जिन्दावाद' लगाए। सुरक्षाकर्मियों ने जैसे -तैसे  स्थति को नियंत्रित किया और उन सभी  आतंकियों को जेल वाहन में ठूंसकर  वापिस  जेल ले गए। कोर्ट परिसर में मोदी को जान से मारने की धमकी देने और तालिवान के समर्थन में नारे लगाने वाले आतंकी अबु फेजल समेत सभी आतंकियों के खिलाफ एम पी नगर थाना, भोपाल  पुलिस ने धारा २९५-ए ,१५३-डी के तहत मामला दर्ज  कर लिया है। इस घटना से  देश और दुनिया  को  क्या संदेश मिलता है यह तो मुझे नहीं मालूम किन्तु में  इस्लामिक आतंकियों  की इस हरकत को  भाजपा के पक्ष में  ही देखता हूँ। वेशक वे जितना उग्र होंगे ,हिन्दू समाज उसके व्युत्क्रमानुपाती उद्देलित होगा। वो कटटर हिंदुत्वाद के रूप में 'संघ परिवार' की और ध्रवीकृत होगा।   'अल्लाह सुपर पॉवर है ' इसमें किसको शक है ?सभी जानते हैं सभी मानते हैं किन्तु  'अब मोदी का नंबर है '  या 'वी वांट तालिवान'   जैसे हिंसक और राष्ट्रघाती  नारे लगाओगे तो फिर  कोई भी यह भी नहीं   कहगी  कि  खुदा खैर  करे !
                  सिमी आतंकियों ने न्यायालय परिसर  में देश की अखंडता को ठेस पहुंचाने वाले नारे लगाए  , एक  लोकतांत्रिक  तरीके से विजयी सांसद [प्रस्तावित पीएम ]श्री नरेंद्र मोदी  को  भी उन्होंने अपना 'टारगेट '  बताया तो अब  सवाल है की देश की जनता क्यों चुप रहेगी। यदि हिंसा और आतंक से डरकर कुछ न कर सकेगी  तो कम-से कम उन्ही को  जिता   देगी जो कुछ कर सकते हैं। चूँकि लोगों को लग रहा है  कि मोदी इन आतंकियों को ठीक कर सकते हैं, इसलिए देश का बहुमत  मोदी को जिताने के लिए  'कमल 'के  साथ  हो लिया  है ।  जो-जो दल और नेता  इन आतंकियों के पक्ष में बोलते रहे  हैं या तठस्थ होने का  कायराना स्वांग रचते रहे हैं वे सब  इस चुनाव में ठिकाने  लगा दिए गए है । वेशक नरेंद्र मोदी की विचारधारा से  मैं  भी सहमत नहीं  हूँ । अन्य  धर्मनिपेक्षतावादियों की मानिंद  मैं भी संघ परिवार ,भाजपा और एनडीए का   प्रवल  विरोधी  हूँ ,किन्तु मैं इस आधार पर  यह दावा नहीं कर  सकता कि  जिन्होंने  'अबकी बार -मोदी  सरकार ' का नारा लगाकर भाजपा और एनडीए को भरपल्ले से बहुमत में जिताया वे सब कसूरवार हैं। मैं यह दवा भी नहीं कर सकता कि  वे दल  और नेता  जो बुरी तरह हार गए वे सब के सब साक्षात देवदूत ही  हैं।  वेशक जो हार गए हैं उनकी नीतियां बेहतर हो सकतीं हैं। वेशक जो जीत गए हैं, हो सकता है कि  उनकी नीति और नियत में खोट हो। बहुत संभव है कि  नरेंद्र   मोदी  भी पूरी तरह पाक-साफ़ न हों।  किन्तु यह साफ़ है किअब  'नमो'किसी ख़ास व्यक्ति का नाम भर नहीं है ,बल्कि  वह एक  खास किस्म की   विचाधारा के प्रतिनिधि भी हैं। भले ही वो विचारधारा कटटरवाद और साम्प्रदायिकता की ही हो। किन्तु  यदि  इस देश के बहुमतजन  को  वह विचारधरा पूसा रही है तो इसके कारणों की खोजबीन की जानी चाहिए।  कहीं ऐसा तो नहीं कि  सिमी  जैसे आतंकी संगठनों , कश्मीर या अन्य क्षेत्रों के अलगाववादियों ,पाकिस्तान की आईएसआई  की  दहशतगर्दी  और भारत  विरोधी गतिविधियों से आजिज आकर अधिसंख्य हिन्दू मतदाताओं ने भाजपा को रिकार्ड जीत दिला दी हो ? भोपाल जिला कोर्ट में मौजूद कटटरवादी  सिमी आतंकियों और विभिन्न शहरों में  परिलक्षित अल्पसंख्यक-  धर्मान्ध -  दहशतगर्दों की ओर  -कांग्रेस ,सोनियाजी ,राहुल या मनमोहनसिंह की अंगुली ज़रा  कम ही उठी है।   इसी तरह अन्य धर्मनिरपेक्ष और जनतंत्र वादी दलों ने  या तीसरे मोर्चे   के नेताओं ने  भी अल्पसंख्यक वोटों की   खातिर हमेशा घातक चुप्पी साध  रखी  है।  इस तरह के दोगलेपन  से  नाखुश होकर भारत  के  बहुसंख्यक धर्मनिपेक्ष हिन्दू  मतदाताओं ने  भी 'संघ परिवार' के अनुषंगी  राजनैतिक संगठन  भाजपा को मजबूरी में  यदि चुन लिया हो  तो कौन  सा आसमान फैट पड़ा है। ? भोपाल  जिला कोर्ट  की  कल की  घटना तो यही इंगित कर रही  प्रतीत  होती  है कि साम्प्रदायिक ध्रवीकरण में इस बार अल्पसंख्यक वोटों के तलबगार नेता  गच्चा खा गए हैं।       
              मौजूदा आम चुनाव में भाजपा को मिली बम्फर जीत और कांग्रेस सहित अन्य  दलों की मर्मान्तक हार से न केवल हारने वाले बल्कि जीतने वाले भी भौचक्के हैं। हारने वाले अपनी करारी हार से  क्षत-विक्षत हैं और जीतने वाले  अपनी अप्रत्याशित जीत से गदगदायमान हो रहे हैं। इन ऐतिहासिक  चुनावी परिणामों  की अपने-अपने मिजाज और सोच के अनुसार  शल्य क्रिया भी जारी  है।  जीतने वालों  ने  तो बयानबाजी के भी रिकार्ड तोड़ डाले हैं। कुछ तो  जीत के जोश में होश   खोकर  अल्ल  - बल्ल  भी  बकने लगे हैं। कुछ शर्मनाक हार से हताश-निराश होकर 'शमशान वैराग्य' को प्राप्त हो रहे हैं।  सही मायने में चुनाव  परिणामों की प्रतिक्रिया का आकलन अभी भी अपेक्षित है।  वेशक   श्री लाल कृष्ण आडवाणी - श्रीमती   सुषमा स्वराज  की प्रतिक्रिया जरूर वास्तविकता के  करीब  कही जा सकती है । उनके कथन का  भावार्थ  यदि यह है की यह यूपीए और कांग्रेस की नाकामयियों का परिणाम है । यह चुनाव परिणाम -मंहगाई ,भृष्टाचार तथा  कुशासन के खिलाफ परिवर्तन की लहर है।  जिस ने भाजपा को जिताया है तो  यह निष्कर्ष  काफी हद तक सही है। हालांकि  संघ परिवार ने इस दफे  ज़रा ज्यादा   ही  कड़ी मेहनत  की है ।
                        इस महा बिकराल परिणाम में  कुछ  'नमो' का प्रशश्ति गान  और बहुत  कुछ वो  हिन्दुत्ववादी ध्रुवीकरण भी सहायक रहा है  जिसे  सिमी  जैसे उन्मादियों   ने सुलगाया और कटटर हिन्दुत्तवादियों ने हवा दी।  ये ऐतिहासिक  चुनाव  इस मायने में  भी बेमिशाल  रहे हैं।  कई लोक सभा क्षेत्रों में  मुस्लिम -दलित  -पिछड़ा वर्ग के वोटों  की  घटिया  राजनीति का  क्षरण  स्पस्ट दिख रहा है। अल्पसंख्यक वोटों पर या दलित वोटों को अपनी जागीर समझने वाली बहिनजी आज  कोमा में हैं। आजमगढ़ ,मुजफ्फरनगर, मेरठ पश्च्मिी उत्तर प्रदेश  के  साम्प्रदायिक  दंगों   के लिए यदि 'संघ परिवार' जिम्मेदार था  तो रालोद का सूपड़ा साफ़ क्यों हुआ ? अजीतसिंह तो 'पाक-साफ' थे न !वे तो हेमा मालिनी से गए  गुजरे निकले। उत्तर भारत में इस्लामिक  आतंकवाद  के  उफान का  प्रत्यक्ष प्रभाव  यह रहा कि  सीधा फायदा नरेंद्र मोदी को  ही मिला है। उत्तर भारत का  सवर्ण और सभ्रांत  समाज बहुत दिनों से पिछड़ी-दलित -मुस्लिम युति से आहात था। चूँकि उसे कार्पोरेट   पूँजी नियंत्रित अनुदारवादी दक्षिणपंथी 'संघ परिवार' इस दौर में मुफीद लगा  इसलिए बहुसंख्यक  सवर्ण समाज ने एकजुट होकर भाजपा , एनडीए  और 'नमो'   को अपने समथन से मालामाल कर दिया।
                चूँकि विगत तीस साल  से  उत्तर प्रदेश  ,बिहार, झारखंड  को  क्षेत्रीय दलों ने  बुरी तरह छत-विक्षत कर रखा था। समूचे उत्तर और मध्य भारत को जाति  की राजनीति में बुरी तरह  झोक डाला था, निम्न वर्ग केवल  वोटर वनकर रह गया था  इससे  न केवल  बहुसंख्यक  हिन्दू  सवर्ण समाज  बल्कि आरक्षण से वंचित अधिकांस दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक भी  इस बार  एक स्वर  में बोल गए -'अबकी बार ,मोदी सरकार '  गुजरात ,गोधरा , मुजफ्फरनगर,मुंबई,मेरठ,जम्मू,श्रीनगर,असम ,कोकराझार तथा  उत्तर-पश्चिम  सीमा पार से हुई भारत विरोधी कार्यवाइयों को , देश  भर में विभिन्न स्थानों पर हुई साम्प्रदायिक घटनाओं को सीमाओं  पर  और  पाकिस्तान में हिन्दुओं पर किये जा रहे अत्याचार को ,बांग्लादेश में हिन्दुओं के कत्ले आम को 'संघ परिवार' ने इन चुनावों में  जमकर भुनाया।  इसके अलावा उनकी इस चुनावी  सफलता के लिए अल्पसंख्यक आतंकवाद   भी  जिम्मेदार है।
                 इस्लामिक आतंकवाद की प्रतिक्रियास्वरूप   'हिन्दुत्ववादी ताकतों  ने इन चुनावों  के  माध्यम से  देश में  'फासिज्म' की नीव रख दी है। सब कुछ हिटलर के उदय और जर्मनी के 'नाजीवाद' की ओर  बढ़ने की तरह घटित हो रहा है। उस समय  वहाँ  प्रशा और जर्मनी में यहूदियों की जर्मन  साम्राज्य से अनिष्ठा थी तो यहाँ इस दौर में सिमी के आतंकवादी ही नहीं बल्कि और भी है जो देश की जड़ें खोद रहे हैं।  इसीलिये  इस्लामिक उग्रवाद पर संदेह के बादल मंडरा रहे हैं।  यही वजह है कीआज  बहुसंखयक हिन्दू समाज एकजुट होकर 'संघ परिवार' के साथ  खड़ा हो गया है। गरीबी ,मेंहगाई ,बेकारी और भुखमरी से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। कोई भी मोदी समर्थक अभी १५ साल तक कुछ नहीं बोलने वाला।  'संघ परिवार' और 'नमो' ने बड़ी चतुराई से अब लड़ाई   'राष्ट्रवाद' बनाम  आतंकवाद की   है। पेट्रोल के दाम दुगने कर दो ,बिजली -पानी मंहगा कर दो, ,लोग भूंखे रह लेंगे,भीख मांग लेंगे पर  कोई आंदोलन  नहीं करेंगे , भले ही अम्बानी-अडानी मालामाल होते रहें ,गरीब और गरीब होकर भूखे प्यासे मरते रहें ,लेकिन कोई चूं चपड़ नहीं कर पायेगा क्योंकि उन्हें भारी  बहुमत दिलाने  -विजय प्राप्त करने  के लिए जो पैसा पानी की तरह बहाना पड़ा  वो इन्ही सरमायेदारों का था।
               वे आतंकवाद का हौआ और राष्ट्रवाद का 'बिजूका' दिखाकर जनता के सवालों को उलझाते रहेंगे।  जन सरोकारों या जनता के सबालों पर  संगठित मजदूर आंदोलन और  वामपंथ के अलावा कोई  आंदोलन नहीं करने   वाला। यही बात आज 'नमो' के पक्ष में जा रही है।  कहने का तात्पर्य ये की भारत में धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र आज   यदि खतरे में है तो इसके लिए केवल फासीवादी ताकतें ही नहीं बल्कि   जाति  - मजहब  ,क्षेत्रीयतावाद  और कार्पोरेट पूँजी की बेजा भूंख  भी  इस पतन के लिए  जिम्मेदार है.  'संघ परिवार'  भाजपा  और 'नमो' द्वारा इन चुनावों में  इन   कमजोर कड़ियों का अखूबी   इस्तेमाल  किया  गया    है। उसी के बलबूते  इतनी बड़ी जीत  हासिल हुई  है। जिससे की   विजेता अब 'मलंग' हुए जा रहे हैं।  वेशक  यूपी बिहार, महाराष्ट्र और झारखंड  में 'नमो' का कुछ व्यक्तिगत प्रभाव अवश्य  पड़ा है। बंगाल,केरल त्रिपुरा ,तमिलनाडु और उड़ीसा में भाजपा को अभी   भले ही कोई उल्लेखनीय सफलता न मिली हो किन्तु  , मध्यप्रदेश,गुजरात ,राजस्थान  छग  में उसे जो विजय हासिल हुई है वो अद्भुत और अप्रत्याशित है।  इन राज्यों में  मोदी का कम भाजपा और आरएसएस का सर्वाधिक योगदान रहा है। आने वाले बरसों में ,आगामी १५ सालों में बंगाल  में तृणमूल  का भी  नामोनिशान नहीं रहेगा।  तमिलनाडु से एआईडीएमके या डीएमके  को हम 'ढूढ़ते रह  जायंगे  'नवीन पटनायक और चन्द्र बाबू भी  फना  हो  जायंगे। आखरी द्वन्द इस  देश में केवल पूंजीपतियों  और सर्वहारा के बीच ही होगा।    जाहिर है पूँजीपतियों  के सेनापति  कोई  'संघनिष्ठ' ही  होंगे और देश  के सर्वहारा का  नेतत्व उसका 'हरावल दस्ता करेगा।  वेशक यह फाइनल संघर्ष अभी दूर है।  अभी तो १५ साल केवल; भाजपा और  नमो  के लिए 'नियति' ने सुरक्षित कर  रखे हैं।

                             इतिहास में  संभवतः पहली बार भारत के सहिष्णु-धर्मनिरपेक्ष -हिन्दू समाज ने अपने आक्रोश  को साम्प्रदायिक आधार पर अभिव्यक्त किया है।  इस चुनाव परिणाम से एक आशा भी जगी है कि  जातीयता की राजनीति को भी  हिंदुत्व की इस आंधी  हिलाकर  कर  रख दिया है। अब उस आरक्षण पर भी   सवाल उठना स्वाभाविक है जिस के कारण करोड़ों दलित-आदिवासी आजादी के ६७ साल बाद भी नंगे -भूंखे है और  चंद दलित नेता और दलित अधिकारी वंशानुगत इस आरक्षण की वैशाखी का बेजा मजा लूटते जा  रहे हैं।  इस  जातिवादी  विचारधारा की राजनीतिक ने धर्मनिरपेक्षता की अनुगूँज को खतरे में डालने का काम भी  किया है। अब  सभी हरल्ले  केवल मुसलमानों को कोस रहे हैं।  मानों   धर्मनिरपेक्षता का ठेका केवल मुसलमानों ने ही ले रखा  हो।मायावती,मुलायम, नीतीश और कांग्रेस की हार तो वेशक अल्पसंख्यक वोटों की बंदरबाँट  से ही हुई है। बंगाल में वेशक तृणमूल कांग्रेस ने बेजा चुनावी धांधली की है , न सिर्फ वाम मोर्चा बल्कि भाजपा ने भी उसकी लिखित शिकायत की है किन्तु यह भी एक कटु सच्चाई है की ममता बेनर्जी  ने  मुस्लिम मतदाताओं  को रिझाने के लिए  नरेंद्र मोदी को   न केवल मुसलमानों  का  बल्कि बंगालियों का भी दुश्मन  बताया।   इस चुनाव में  दीदी ने पानी-पीकर  वामपंथ और  'नमो' को जो  गालियां दीं हैं वे तृणमूल  के सांसदों के  रूप में संसद में मौजूद रहेंगी।  नरेंद्र मोदी  भी इस सदन के नेता होंगे।  याने भारत के प्रधानमंत्री होंगे। यह  बहुत संभव है कि  वामपंथ के बजाय ममता को अपना हितेषी मानकर बंगाल के [बांग्लादेशियों ने भी] के मुसलमानों ने ममता को  इकतरफा समर्थन दिया हो।
                    भारत में आज जो लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता पर  संकट  के बादल मंडरा रहे हैं  उसके लिए बहुत हद तक पाकिस्तान में हिन्दुओं का कत्ले आम और सीमाओं पर पाकिस्तानी फौज की नृशंसता भी परोक्ष रूप से जिम्मेदार है। बांग्लादेश ,श्रीलंका नेपाल ,चीन और अमेरिका सभी ने भारत को लहूलुहान कर रखा है , सब ओर  से परेशान -हैरान -पढ़े-लिखे नौजवान अब सब्र नहीं कर सकते। वे मीडिया के प्रचार और बाजार के पाखण्ड से प्रभावित होकर  भारत को विश्व मंच पर चमत्कारिक ढंग से उपस्थति  दर्ज कराने के  लिए लालायत हैं।  उनके इस अभीष्ट या मकसद  यदि  नरेंद्र मोदी  फिट हैं तो वे उन को समर्थन क्यों नहीं देंगे ?  यह  केवल  कांग्रेस ,डॉ  मनमोहनसिंह ,सोनिया गांधी या राहुल गांधी  का ही कसूर नहीं हैं  बल्कि यह कुछ दोष उनका भी है जो जीत की ख़ुशी में अपने दामन के दाग छुपा रहे हैं। इतिहास अवश्य पूंछेगा की  अधिसंख्य  धर्मनिरपेक्ष  हिन्दू समाज को  साम्प्रदायिक आधार पर ध्रवीकृत करने के कारक कौन-कौन थे। वे कौन से तत्व हैं जिन्होंने अधिसंख्य हिन्दू समुदाय को एकजुट  होकर भाजपा और मोदी के पक्ष में  मतदान के लिए मजबूर किया है ।यदि यह संभव हुआ है तो भी वह  अपावन कैसे हो सकता है ?जब तक अल्पसंख्यक वोट पाने वाले सत्ता सुख भोगने वाले आपवन घोषित नहीं कर दिए जाते। तब तक 'नमो'  और भाजपा की इस मौजूदा जीत के लिए जिम्मेदार  बहुसंखयक  हिन्दू मतदाताओं  को कैसे कसूरवार   ठहराया जा सकता   है ?
                   भारत में जिन लोगों ने इस १६ वीं संसद के चुनाव तक - इस्लामिक  कट्टरवाद  को कमतर और हिन्दू कट्टर वाद को ज्यादा खतरनाक- मानकर राजनीति  की है  वे वास्तविकता से बहुत दूर हैं। मायावती आज यदि रुदाली  बनकर मुसलमानों की आपसी फूट तथा  मुस्लिम वोटों के 'बिखरने' पर  करुणक्रन्दन या  स्यापा कर रहीं हैं तो   यह उनका मानसिक  दिवालियापन है। उन्हें किसने कहा था कि  वे मुसलमान या दलित  वोटों  को अपनी खानदानी जागीर समझती रहें ? उन्हें यह जानना -समझना चाहिए कि  यदि वे  सच्ची दलित नेता हैं या थीं  तो  उनके पास 'नॉनट्रान्सफरेबल 'करोड़ों दलित वोट और  अरबों रुपयों का अम्बार  होते हुए भी  वे बुरी तरह  क्यों  हार  गईं ? भगीरथ- प्रसाद, उदितराज ,रामदास आठवले ,  पासवान  जगदम्बिका पाल  जैसे सारे के सारे दलित-पिछ्डे , दल -बदलू   नेता - जिन्हे मायावती ने हमेशा दुत्कारा। वे 'संघ' परिवार  का  नाम और  'स्पर्श'  पाकर चुनाव जीत गए हैं !  भले ही 'मोदी सरकार' के कारण 'मजदूरों' गरीबों  के  अच्छे   दिन ना आ  सकें किन्तु  यह  अकाट्य सत्य है  कि जातिवाद की राजनीति करने वालों के बुरे दिन आने वाले हैं !आतंकवाद   के दिन   भी जरूर लदने वाले   हैं ! यदि हम वाकई सत्य के पक्षधर हैं तो सच कहने का माद्दा भी हममें होना चाहिये !
                                 श्रीराम तिवारी 

शुक्रवार, 16 मई 2014

भारत के 'मजदूर नंबर-वन ' श्री नरेंद्र भाई मोदी को 'लाल सलाम ' !



   मैं  जानता हूँ की  उक्त शीर्षक  के माध्यम से , मैंने 'नमो' को जो 'लाल सलाम ' किया है, वो शायद ही किसी को रास आये। मोदी जी के अंध भक्तों को तो इस तरह  के क्रांतिकारी अभिवादन में भी  किसी कपट-छल की बू आयगी  ही , क्योंकि  उनकी  पाँचों भौतिक इन्द्रियाँ  और पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ नितांत  'नमोमय'  ही नहीं बल्कि  तात्कालिक 'फीलगुड' के इस दौर में  तो पूर्णतः 'संघमय' ही हो रहीं  हैं।  वर्तमान नकारात्मक और  दिग्भ्र्म के   राजनैतिक  परिदृश्य में  वे भी मुझसे कदापि सहमत नहीं होंगे जो मेरे  हमराह -हम सोच हैं। वे शायद  इस समय ततकाल ही इस  तरह की सात्विक सहिष्णुता के लिए तैयार नहीं होंगे।  चूँकि इन सब  चीजों से बड़ा देश है इसलिए देश को मद्देनजर रखते हुए मैं श्री नरेंद्र भाई मोदी के वैयक्तिक अवदान को रेखांकित करते हुए 'लाल सलाम' पेश करता   हूँ।
                  अभी-अभी   ऐतिहासिक चुनावी जीत के तत्काल बाद  वड़ोदरा [वड़ोदा ]  और अहमदावाद  की   'आभार' सभाओं को सम्बोधित करते हुए 'अति-विनम्र' श्री नरेंद्र भाई मोदी ने जो  कुछ भी फरमाया वो सब अक्षरशः कबूल करने योग्य  भले ही ना हो किन्तु असहमति के लिए भी उसमें कुछ भी नहीं है। उन्होंने  इस  अवसर पर दो बहुत  उल्लेखनीय वाक्य  विशेष रूप से इस्तेमाल किये हैं । एक तो उन्होंने बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का पुण्य स्मरण किया है  और भारत के  सामाजिक उत्थान में उनकी महती भूमिका को सराहा है. इसका तात्पर्य यह है कि  बहिन मायावती   जी अब 'दलित' राजनीती से  अपना बोरिया बिस्तर बाँध लें। 'नमो'  ही बाबा साहेब के सच्चे उत्तराधिकारी हैं। इसके अलावा उनके सम्बोधन में  एक वाक्य विशेष और विशेष  रूप से प्रतिध्वनित हुआ  उन्होंने कहा है  - "मैं भारत का मजदूर नंबर-वन ' हूँ। याने पूँजीपति  भीं अपना बोरिया बिस्तर बाँध  लें। यदि ये संभव नहीं तो पांच साल बाद भाजपा और 'नमो' भी अपना बोरिया बिस्तर बाँदते नजर आयंगे। राजनीती संभावनाओं का नाम है। जो अभी-अभी घटित हुआ है वो आइन्दा भी घटित हो सकता है। जब अच्छे दिन आने वाले हों तो स्वागत क्यों न करें ?
         चूँकि मैं एक मजदूर -किसान और सर्वहारा परास्त भारतीय नागरिक हूँ इसलिए श्री नरेंद्र भाई मोदी को 'साथी -मोदी ' 'कामरेड मोदी'  कहते हुए लाल सलाम पेश करता  हूँ। उन्हें जीत की मुबारकवाद देता  हूँ। आशा करता हूँ की  चुनाव के दौरान उन्होंने जो-जो वादे किये हैं -याने महँगाई ख़त्म हो जायेगी ,भृष्टाचार  समाप्त हो जाएगा ,सारा भारत 'गुजरात जैसा' हो जाएगा ,पाकिस्तान घुघु बनकर दड़वे  में दम दवाकर छुप जाएगा,चीन डरकर सीमाओं से भाग जाएगा ,भारत के मजदूर-किसान -नौजवान सभी को समान रूप से गरिमामय मानवीय  जीवन के अनुरूप  सामाजिक ,आर्थिक और राजनैतिकअवसर प्राप्त होंगे।  हमारी हार्दिक -हार्दिक   शुभकामनाएं हैं कि  श्री नरेंद्र भाई मोदी 'बिना राग -द्धेष ' के बिना पक्षपात के  सफलतापूर्वक  अपने 'राजधर्म' का पालन करेगे। चूँकि वे  प्रचंड बहुमत पाने  वाले भारत के पहले गैर कांग्रेसी  प्रधानमंत्री  होंगे इसलिए उनसे देश के १२५ करोड़ लोगों को ढेरों आशाएँ  होना स्वाभाविक है.
                               यह जग जाहिर है कि भारत में अभी तो एकमात्र  'नमो'  ही हैं जो कार्पोरेट लाबी के  परमप्रिय हैं। आरोप है लगाया   जा रहा है कि  इस कार्पोरेट  -सरमायेदार  लाबी के १० हजार करोड़ विजयी पार्टी के  चुनाव प्रचार में खर्च हुए हैं। इस पूँजी की बदौलत  ही  'नमो' ने राष्ट्रव्यापी प्रचंड आक्रामक  धुंआधार  चुनाव प्रचार  किया।सबको विदित है कि  इस अकूत धन और डॉ मनमोहनसिंह सरकार के बदनाम कार्यकाल  की बदौलत  ही  भाजपा को-मोदीजी को  बम्फर जीत हासिल हुई है।  अब  यदि  यह कार्पोरेट लाबी कल से ही अपनी बेजा मांगे 'नमो ' के समक्ष रखने लगे तो कोई अचरज की बात नहीं !  मुझे ख़ुशी है  कि इस महती चुनावी  विजय के उपरान्त मोदी जी ने  भारत के  मेहनतकशों के बीच अपने आप को 'एक मजदूर ' के  रूप में खड़ा करने  का जज़बा पेश किया है। यदि वे वाकई सर्वहारा परस्त  कोई सोच रखते हैं या गरीब   किसानों -मजदूरों  के  हित  की कोई नीति बनाते हैं तो उन्हें सबसे पहले निजीकरण,ठेकाकरण,बाजारीकरण और मुनफाखोरी पर आक्रमण करना होगा। चूँकि ये सारे तत्व उस कार्पोरेट लाबी रुपी तोते में वास्ते हैं जो मोदी भाई के खैरख्वाह हैं। क्या 'नमो' में हिम्मत है कि इन लालची अडानियों-अम्बानियों की 'धनलिप्सा' पर लगाम लगा सकें?  वे ऐसा नहीं कर पाएंगे बल्कि   डॉ मनमोहनसिंह की विनाशकारी नीतियों को 'दवँगता' से लागू  करेंगे। ताकि  उन पूंजीपतियों को संतुष्ट कर  सकें जिन्होंने सत्ता के शिखर पर बिठाया है।  भारत के जिन  करोड़ों मजदूर-किसान ,बेरोजगार और परेशान  युवाओं ने मोदी जी को और उनकी पार्टी -भाजपा को  प्रचंड समर्थन दिया है वो सिर्फ इतने में ही खुश हो लें कि 'नमो' ने माना है कि 'मैं मजदूर नंबर -वन हूँ'  !  वे कैसे जीते ?उनकी नीतियां क्या  हैं?'संघ परिवार' ने हिंदुत्व का ध्रुवीकरण कैसे किया ?अल्प्संखयक और खास  तौर  से मुस्लिम वोटों का बटवारा कैसे हुआ ? राजस्थान ,मध्यप्रदेश तथा उत्तर भारत  के बदनाम  कांग्रेसियों ने हाराकिरी  कैसे की ?  'आप' ने  , ममता ने ,जय ललिता ने, आंध्र के विभाजन ने, कांग्रेस की क्या-क्या  दुर्गति की  इन मुद्दों पर तो कांग्रेस ही जवाव दे सकती है. किन्तु यह परम सत्य है की नरेंद्र मोदी ने उत्तरप्रदेश  और बिहार को जीतकर अपना 'राजसूय' यज्ञ दिल्ली में सम्पन्न कर  लिया  है।  इस यज्ञ में कार्पोरेट लाबी के अकूत धन  के अलावा ,अमित शाह  जैसे नेताओं की बुद्धिमत्ता -कार्यकुशलता  और संघ परिवार के साथ-साथ दक्षिणपंथी मीडिया  का भी बेहतरीन योगदान रहा है।  जो भी हो भारत की जनता  के बहुमत ने एनडीए ,भाजपा और 'नमो' को भारत का शासन बड़ी  भारी जीत के रूप में  सौंपा है इसमें कोई शक नहीं है ।उम्मीद है  कि इस सरकार के बेहतर मंसूबों के लिए , जन -कल्याण के लिए   , राष्ट्र -निर्माण क लिए  तथा भारत निर्माण के लिए  पूरा देश इस 'मोदी  सरकार' के साथ कदम से कदम मिलकर  चलेगा. ताकि  भारत को  न केवल विश्व  शक्ति बनाने में  बल्कि गरीबी -भुखमरी से निजात दिलाने में  भी हम कामयाब  हो सकें।  वेशक मैं 'संघ परिवार', भाजपा  , एनडीए या 'नमो '  की साम्प्रदायिक विचारधारा का कभी समर्थक नहीं रहा। किन्तु यदि वे महँगाई  पर अंकुश लगाने में ,भृष्टाचार रोकने में और मेहनतकशों पर  हो रहे पूँजीवादी  जुल्म को रोकने में कामयाब होते हैं तो वे न केवल एनडीए ,न केवल भाजपा ,न केवल संघ परिवार बल्कि देश के वास्तविक बहुमत -जन के  'राष्ट्र नायक' भी बन सकते हैं।अभी जो कयाश लगाए जा रहे हैं कि  पेट्रोलियम उत्पाद और बिजली के दामों को  बढाए जाने की पूरी तैयारी है ,तो मैं उम्मीद करूंगा कि  मोदीजी इन कयासों को झुठलाने में कामयाब हों।  
        इस अवसर पर पुनः   भारत के नव-निर्वाचित प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र भाई मोदी को उनकी प्रचंड जीत की  बधाई देते हुए  'लाल सलाम' करता  हूँ  !

   श्रीराम तिवारी
                 
               

बुधवार, 14 मई 2014



       इस तरह   मेरे देश के  अब अच्छे दिन आने वाले हैं।
   
        उत्साही नेता जी आसमान से तारे तोड़कर लाने वाले हैं।


     छल -कपट से चुनाव में जीतने वाले ढ़पोरशंखी ,
  
    सात-रेस कोर्स रोड से जादुई छड़ी घुमाने वाले हैं

   
    उनके समर्थक खुश हैं कि होंगे  खुशहाल मालामाल ,

   नंगे-भूंखे -निर्धन आबाल -बृद्ध  सब 'अडानी' होने  वाले हैं।


    अब नहीं   कर सकता  कोई शिकायत भृष्टाचार  की ,
   
    क्योंकि रिश्वतखोर -मुनाफाखोर   खुद सत्ता में आने  वाले हैं।


    अब  डर  नहीं  कोई महिलाओं -छात्राओं -अबलाओं को ,

   क्योंकि शासक  ही  खुद अब उनका पीछा करने वाले हैं।


  अब झंझट नहीं महंगाई- बेकारी और जीवन रक्षा की , 

क्योंकि अब  तो साक्षात् जमदूत   सत्ता में आने वाले हैं।


जिन्होंने  जगाई थी आशा मुल्क में 'इंकलाब' की  बरसों से ,

 उनके सिद्धांत और नीतियां  हम लोग  कहाँ समझने  वाले हैं।


  जो थे  सनातन से जन्मना  सर्व समर्थ -सत्ताधिपति कल तक ,

  वे  अब विपक्ष में बैठकर अपने  अतीत  का  गुणगान  करने वाले हैं।


 लाख जतन करे कोई कि  वे राजनीति  छोड़ दें ,शादी  कर लें,

  लेकिन वे  शहजादे ठहरे ,इसलिए नानी के घर  नहीं जाने वाले हैं।


  जिन्होंने  मचाया था शोर कल तक   भृष्टाचार उन्मूलन का ,

बुरी तरह हारने के बाद अब  वे लोकपाल का झुनझुना  बजाने वाले हैं।


जो हैं क्षेत्रीय क्षत्रप  स्वयंभू  सत्ता लोलुप सभी एन-केन -प्रकारेण ,

 वे अब 'नमोराग' की धुन पर मोदी का चँवर  डुलाने  वाले हैं


 इस तरह मेरे देश के अब अच्छे दिन आने वाले हैं !!


  श्रीराम तिवारी





   


 

मंगलवार, 13 मई 2014



    हवा निकल गई थी कभी  स्थापित दलों की ,'आप' के  आने के बाद।

   अब  हवा निकल  रही है 'आप' की  आम चुनाव  में पिट जाने  के बाद।।

            :-श्रीराम तिवारी 

जिन्हे बम्फर जीत का 'फील-गुड' हो रहा हो वे जरा पीछे मुड़कर २००४ का 'इंडिया शाइनिंग ' भी याद रखें !




   चुनाव परिणाम आने से पूर्व ही  देशी-विदेशी निवेशक  बाजार [सेंसेक्स]को  'तेजी'दे रहे हैं। महँगाई  बढ़ाकर  'नमो' को नमस्कार कर रहे हैं। एग्जिट पोल के प्रायोजक  जो पहले  भी  २००४, २००९ में जूते खा चुके हैं, वे  भी  समवेत स्वरों में बड़ी ही वेशर्मी से  'नमो' का प्रसस्तिगान कर रहे हैं। इस विजयगान किंबहुना  'नमोगान' का दक्षिण पंथी मीडिया घराने निरन्तर  बखान  कर रहे हैं। कांग्रेस यूपीए ओर डॉ मनमोहनसिंह  के १० सालाना कार्यकाल से निराश-  भारत के न केवल  मध्य्मवर्गीय दिग्भर्मित युवाओं ने, बल्कि जातियों-खापों और धार्मिक  उन्मादियों  की भीड़ ने  भाजपा और 'संघ'  परिवार के प्रतिनिधि श्री नरेन्द्र मोदी पर 'दाँव ' लगा  रखा  था।
                        वेशक यूपीए -२ का कार्यकाल उसकी नीतियां ओर राष्ट्रव्यापी भृष्टाचार  ने  भी जबर्दस्त एंटी-इन्कम्बेंसी  फेक्टर का  निर्माण किया है।  चूँकि निराश -दिग्भ्रमित अल्प्संखयक वर्ग  ने माया  , ममता  , मुलायम , नीतीश  और  कांग्रेस  के अलावा भाजपा को भी वोट किया है।उधर  दलित-पिछड़ा ओर अल्पसंख्यक वोट इस बार  बिखर    चुका है ,वहीँ 'नमो' के इर्द-गिर्द न केवल सवर्ण समाज बल्कि अधिसंख्य बहुजन समाज और अल्पसंख्यक  भी  एकजुट होते चले गए  हैं. इसलिए   स्पष्ट है की  कांग्रेस और यूपीए का अभी२०१४ के लोक सभा चुनाव में तो कोई  'चांस' नहीं है। यह देश का बच्चा -बच्चा जानता है।  इसमें किसी एग्जिट पोल की महारत का कोई  सवाल  नहीं।  इस संदर्भ में मीडिया की 'अतिशय' प्रस्तुति  भी  महज उबाऊ और  निरर्थक  ही है। सही तस्वीर वोटिंग पर्सेंटेज से आंकी जाएगी। केवल कुछ मतों से किसी की जीत ओर कुछ मतों से किसी की हार लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अहम हिस्सा हो सकता  है. किन्तु किसी की' बम्फर जीत ओर किसी का सूपड़ा साफ़ ' ये शब्दावली लोकतंत्रात्मक नहीं कही जा सकती। इस तरह की   हिंसक शब्दावली  वो भी परिणाम आने से पूर्व ही प्रस्तुत करना एक तरह की मानसिक अय्याशी ही  है। सबको दिख रहा है कि  कुछ  मौकापरस्त राजनैतिक पार्टियाँ  अलायन्स पार्टनर्स के रूप में , भाजपा के नेतत्व  में  एनडीए  की ओर मुखातिब   हो चली हैं।  इसलिए 'संघ परिवार'को  उत्तर  भारत में  कांग्रेस को निपटाने में कुछ  सफलता अवश्य मिलेगी। मोदी के नेतत्व में  सरकार बनाने की संभावनाएं भी फिलवक्त सबसे ज्यादा हैं। क्योंकि अभी तो कोई और विकल्प ही  मैदान में  ही  नहीं है। फिर भी  नरेन्द्र   मोदी को या भाजपा को  उतनी  सफलता नहीं मिलने जा रही है जितनी  की एग्जिट पोल में बताई जा रही  है.यदि एग्जिट पोल इस बार मानलो सही साबित हो भी गए तो उसे  देखने-दिखाने में जिन्हे बम्फर जीत का 'फील-गुड' हो रहा  हो  वे जरा पीछे मुड़कर २००४ का 'इंडिया  शाइनिंग ' भी याद रखें !

                       :-श्रीराम तिवारी  

रविवार, 11 मई 2014

दिग्भर्मित भीड़ का जनादेश बाकी है।



        लोक सभा के चुनाव तो  फ़क़त लोकतंत्र की झाँकी  है।

      लहरों ,आँधियों,सुनामियों  का परिणाम अभी  बाकी है।।

       कुछ  वोटों से  होगी जब किसी की जीत, किसी की हार ,
     
      तब क्यों न कहें कि  दिग्भर्मित  भीड़  का  जनादेश बाकी है।

     मानवीय मूल्यों का घोर पतन, जाति -धर्म की पूँछ -परख,

    कुछ फासिज्म की सिहरन भी  इस  मुल्क ने आंकी है।

     हो सकता है  विचारक इसे  मात्र परिकल्पना  ही  कहते रहें  ,

     और कहते रहें कि अभी तो इसका  अनुप्रयोग भी  बाकी है ।

     मानवीय संवेदनाओं के बरक्स जो खास  बात  है इस मुल्क में

    गंगा -जमुनी तहजीव और  सहिष्णुता ,वो  बात मैने आंकी है।

   आने वाली  आँधियाँ वेशक मगरूर दरख्तों को गिरा देंगी ,

   लेकिन  उन शाखों का कुछ न बिगड़ेगा ,जिनमें लचक बाकी है।

                  श्रीराम तिवारी

  

   

  

   

     

सोलहवीं संसद के चुनाव कुछ अजीब है।


            धर्मनिरपेक्षता का स्वांग  भी अजीब है ,

          धर्मभीरु जनता पाखंडियों के करीब है।



       हिन्दू -राष्ट्रवाद का  सिद्धान्त  भी अजीब  है ,

      पिछडा -दलित   'मनुवाद'  के करीब हैं ।


  
     मुसीबतों से घिरा मुल्क लोकतंत्र पस्त है ,

      जनता  ही मांगे  तानाशाही की सलीब है।

  

      भारतीय  लोकतंत्र  कुटा -पिटा -धनतंत्र ,

      दलाल  जो अमीरों  के वो सत्ता के करीब हैं।


    गणतंत्र गुम  हुआ  हुड़दंगियों की भीड़ में ,

   जात -पाँत -मजहब  जिनको  मुफीद है।


 नहीं कोई नीतियां न ही  कोइ कार्यक्रम ,

 सोलहवीं संसद   के चुनाव  कुछ  अजीब है।


   श्रीराम तिवारी



  

 

शनिवार, 10 मई 2014

क्रांतिकारी अभिवादन! लाल सलाम !! श्रद्धाँजलि !!!



 आज [१० -मई]को  भारत  का  प्रथम स्वाधीनता संग्राम  दिवस है। आज ही के दिन  गुलाम  भारत में पहली बार  लोक बिख्यात  महान  बलिदानी 'मंगल पाण्डेय' ने '१८५७'की इस क्रांति का बिगुल मेरठ छावनी में बजाया    था। तमाम शहीदों  को सादर श्रद्धांजलि।


आज १० मई को महान  क्रांतिकारी शायर  ,  'प्रोलेटेरियत ' कैफ़ी आजमी साहब की बारहवीं पुण्य तिथि है ! क्रांतिकारी अभिवादन! लाल सलाम !! श्रद्धाँजलि !!!

                                  श्रीराम तिवारी 

शुक्रवार, 9 मई 2014

मीठा-मीठा गप ,कड़वा-कड़वा थू क्या यही 'नमो' का सिद्धांत और यही विचाधारा है ?



      वर्तमान आम  चुनाव के दौरान  हुये निराशाजनक  राजनैतिक  कुकरहाव के लिए सिर्फ राजनैतिक नेता  , राजनैतिक पार्टियाँ  और बाजारू मीडिया  ही  जिम्मेदार नहीं है।  इनके अलावा  बाबाओं   , गुरु  - घंटालों  , मुल्लाओं -मौलवीयों ,स्वामियों,सन्यासियों तथा  शंकराचार्यों से लेकर विवादास्पद -सेवानिवृत्त - स्वार्थी नौकरशाहों ने भी इस 'चुनावी -गटरगंगा' में स्नान किया है। विश्व के  इस  तथाकथित लोकतंत्र के इस महायज्ञ की चुनावी  आहुति  में  जो योगदान संघ परिवार और नरेंद्र मोदी का रहा है वो बेमिशाल है।
       भृष्टाचार ,पक्षपात,वंशवाद,जातीयतावाद,सम्प्रदायवाद ,क्षेत्रवाद ,भाषावाद ,पूंजीवाद ,पिछड़ापन ,गरीबी,
बेकारी ,अशिक्षा ,बाजारीकरण ,निजीकरण ,ठेकाकरण ,लूट,ह्त्या ,बलात्कार तथा  सम्पूर्ण  व्यवस्था में पतन के गंभीर सिम्टम्स मौजूद होने के बावजूद मेरे जैसे 'आशावादियो' को न केवल बड़ा अभिमान हो चला था बल्कि यह  गुमान भी  हो चला था कि  दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र  भारत में  'स्वतंत्र ,निष्पक्ष,निर्भीक ' मतदान कराये जाने के लिए भारतीय चुनाव आयोग तो कम से कम कटिबद्ध है ही ! अधिकांस  भारतीयों को टी एन शेषन  युग से लेकर वी एस संपत तक की निष्ठा -योग्यता  पर जरा ज्यादा ही  भरोसा  हो चला था।  भारतीय लोकतंत्र की तमाम खामियों के वाबजूद कम से कम  भारतीय चुनाव आयोग  की  उज्ज्वल -धवल छवि  दिनों-दिन निखार पर  दिखने लगी थी !कुछ-कुछ   भारतीय उच्चतम  न्यायलय   जैसी हो चली थी। भारतीय सर्वोच्च न्यायलय ने और  भारतीय चुनाव आयोग ने अपनी  विश्वश्नीयता , न्यायप्रियता और  उत्कृष्टता  के   झंडे न केवल भारत में बल्कि  सारे संसार में  गाड़ दिये थे। अचानक नरेंद्र मोदी जी ने हम सभी  मूर्ख भारतीयों को बताया कि भारतीय चुनाव आयोग वैसा नहीं है जैसा कि हम समझ रहे थे बल्कि वो तो बड़ा  बईमान,पक्षपाती तथा गैरजिम्मेदार है।याने मोदी जी सत्ता में आएंगे तो चुनाव आयोग को ठीक {?} कर देंगे !
                             चूँकि  इस दौर में तो 'संघ परिवार'और भारतीय जनता पार्टी की नजर में  मोदी से ज्यादा योग्य ,ईमानदार, देशभक्त  तथा कद्दावर कोइ ओर नेता नहीं है.होगा तो भी उसे खंडित और  दण्डित किया जा सकता है।  इसलिए  कोई कारण नहीं की ये लोग 'नमो'  द्वारा चुनाव आयोग पर लगाए गए  इन आरोपों पर यकीन  नहीं   करेंगे ! चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाले  'नमो' के इस  बयान  से दुनिया में भारतीय लोकतंत्र का जो  आघात पहुंचा है वो तो अपनी जगह घोर त्राषद है ही किन्तु  इसके अलावा  एक अप्रिय प्रश्न  ओर भी उठता है कि संघ परिवार और भाजपा   ने   इसी  तथाकथित नाकाबिल  ,पक्षपाती  और गैरजिम्मेदार चुनाव आयोग  की बदौलत  ही विगत ६-७ माह पहले चार राज्यों में  जो सरकारें  बनाईं  हैं , क्या   भाजपा की ये उपलब्धियां  भी इसी पक्षपाती ओर नाकाबिल चुनाव आयोग की  या षड्यंत्रपूर्ण चुनाव प्रणाली का  ही परिणाम हैं ?
                       सभी दूर  चर्चा है कि  'अबकी बार -मोदी सरकार ' सर्वे - मर्बे  को मारो गोली। डंके की चोट  उसके विरोधी भी कह रहे हैं कि  १६ मई को  आने वाले रिजल्ट में यूपीए का तो  सूपड़ा साफ़ होने जा रहा है ,कांग्रेसी तो क्या बेचारे प्रधानमंत्री डॉ मनमोहनसिंह भी ७-रेस कोर्स रोड त्यागने की जल्दी में हैं।  हो सकता है की एनडीए की सरकार बने न बने किन्तु भाजपा को तो  २०० से ज्यादा  सांसदों की सीटें  जीतने का  अवश्य ही  अनुमान है । इन विरोधाभाषी हालातों मे  मोदी जी से  देश की जनता को पूंछना चाहिये कि क्या यह संभावित ऐतिहासिक उपलब्धि  इसी  तथाकथित -पक्षपाती ,पूर्वाग्रही ओर निकम्मे  चुनाव आयोग की  बदौलत मानी जाएंगी ? यह कौन नहीं जानता  क़ि न केवल गुजरात ,मध्यप्रदेश में तीन -चौथाई से ज्यादा सांसद भाजपा  के ही जीतकर आने वाले हैं। बल्कि दक्षिण भारत में भी  इस बार उसका खाता खुलने वाला है।  क्या  भाजपा को मिलने वाले ये सुखद परिणाम भारतीय चुनाव आयोग का षडयंत्र मानकर नकार दिये जायेंगे ?क्या मध्यप्रदेश की २९ में से २९ सीटों पर जीत  का दावा करने वाले शिवराजसिंह चौहान  भी 'नमो' से सहमत  होंगे ? यदि मध्यप्रदेश में चुनाव आयोग कांग्रेस के साथ मिला  हुआ होता तो  क्या कांग्रेस का इतना बुरा हाल होता ? कहीं ऐंसा तो नहीं कि  मोदीजी  ही सही  फ़रमा  रहे हो और गुजरात का अपना निजी अनुभव बाँट रहे हों ?कहीं ऐंसा तो नहीं कि मध्यप्रदेश में भी शिवराज को  चुनाव आयोग की  इसी तथाकथित  पक्षपाती नीति से ही न केवल  विधान सभा चुनाव में  बल्कि अब लोक सभा चुनाव में भी विराट सफलता मिलने जा रही हो ? भाजपा के हिसाब से  चुनाव आयोग मध्यप्रेदश ,गुजरात और  राजस्थान में तो निष्पक्ष ओर स्वतन्त्र  है  किन्तु बनारस ,बंगाल या वहाँ  जहाँ भाजपा को जीत की सम्भावना नहीं वहां पक्षपाती ओर अयोग्य है।  हमारा  सवाल है मोदी जी से की चुनाव आयोग जब भाजपा  शाषित राज्योँ मे निष्पक्ष चुनाव  करा सकता है तो सम्पूर्ण भारत में क्यों नहीं ? भाजपा के वे नेता जो जानते हैं कि  मोदी के आरोप  ना केवल सतही  बल्कि निराधार,मनघड़ंत और असत्य हैं   उन्हें 'नमो' की इस  गलत बयानी   पर  शर्म नहीं है। यदि उनमें लोकतंत्र के  प्रति जरा भी आस्था है तो वे इस तरह के राष्ट्रविरोधी वयानों  का मुखर विरोध क्यों नहीं करते ?राजनाथसिंह ,जेटली ,सुषमा ,शिवराजसिंह ,वसुंधरा राजे , रमनसिंह ,प्रकाशसिह  बादल  या मोहन भागवत  क्यों नहीं कहते कि मोदी  भाई बस करो -चुनाव आयोग  पर तोहमत लगाने से पहले  वहाँ भी तो नजर दौड़ाओ  जिधर से हम बम्फर  जीत हासिल  करने जा रहे हैं!  क्या यह भी चुनाव आयोग की अयोग्यता ओर पक्षपात का परिणाम है ?मीठा-मीठा गप ,कड़वा-कड़वा  थू क्या यही 'नमो' का सिद्धांत और  यही विचाधारा है ?
                   
       श्रीराम तिवारी